नई दिल्ली। ईरान के जनरल सुलेमानी की हत्या के बाद खाड़ी के क्षेत्र में जो नए समीकरण बन रहे हैं उसको लेकर भारत को अब ज्यादा सतर्क रहने की जरुरत है। खास तौर पर जिस तरह से अमेरिका ने पाकिस्तान से संपर्क किया है वह भारत के लिए कठिनाई पैदा कर सकता है। सोलेमानी की हत्या के कुछ ही घंटे बाद अमेरिका के विदेश मंत्री माइकल पोम्पिओ ने पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से बात की और हालात पर चर्चा की।
इसके कुछ ही घंटे बाद अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने ऐलान किया कि पाकिस्तान सेना के साथ सैन्य शिक्षण व प्रशिक्षण के संपर्क को फिर से बहाल किया जा रहा है। जानकार मान रहे हैं कि खाड़ी में हालात बिगड़ने की स्थिति में अमेरिकी सेना को एक बार फिर पाकिस्तान की मदद चाहिए, ऐसे में पाकिस्तान भी मोल-भाव करेगा। यह भारत के हितों को प्रभावित कर सकता है।
अमेरिका ने पाकिस्तान को दूसरी सैन्य सहायता पर रोक बरकरार रखी है इसके बावजूद जानकार मान रहे हैं कि सैन्य प्रशिक्षण संबंधी रिश्तों को दोबारा शुरु करने के भी बड़े मायने हैं। देश के प्रमुख रणनीतिक विश्लेषक ब्रह्मा चेलानी का कहना है कि कि धीरे धीरे अमेरिका पाकिस्तान के साथ सामान्य रिश्तों की तरफ बढ़ रहा है। इंडो-पैसिफिक (हिंद-प्रशांत) क्षेत्र के लिए अमेरिका भले ही भारत की अहमियत समझता हो लेकिन भारत के पड़ोस (अफगानिस्तान व पाकिस्तान) में दोनो देशों की सुरक्षा चिंताओं में काफी अंतर है।
एक अन्य रणनीतिक विश्लेषक उदय भास्कर तो यह मानते हैं कि विदेश मंत्री पोम्पिओ ने जिस तरह से पाक आर्मी चीफ से बात की है वह आतंकवाद को लेकर भारत और अमेरिका के बीच के बुनियादी मतभेद को भी बाहर ला दिया है। भारत को बेहद सतर्क रहना होगा क्योंकि पाकिस्तान का अगर अमेरिका इस्तेमाल करता है तो पाकिस्तान उसकी कीमत भी वसूलेगा। ईरान को लेकर अमेरिका जितना सक्रिय होगा पाकिस्तान की अहमियत उतनी ही बढ़ती जाएगी।
विदेश मंत्रालय ने इस बारे में बार बार पूछने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन जानकार मान रहे हैं कि अमेरिका व पाकिस्तान के बीच अगर सैन्य सहयोग बढ़ता है तो वह दो तरह से भारत के हितों को प्रभावित करेगा। सबसे पहले तो आतंकवाद को लेकर भारत ने पाकिस्तान पर दबाव बनाने की जो रणनीति बना ली थी उस पर आंच आ सकती है। भारत की इस लड़ाई में अमेरिका ने कई बार मदद की है। जैसे पाक में रहने वाले आतंकियों पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने या एफएटीएफ की तरफ से कार्रवाई करने में। लेकिन अगर पाकिस्तान अमेरिकी सेना की मदद करता है तो वह बदले में आगे आतंकवाद रोधी कार्रवाइयों से बचने की उम्मीद कर सकता है।
भारत को दूसरा झटका अफगानिस्तान में लग सकता है। पाकिस्तान सेना ने शुक्रवार को कहा भी है कि अमेरिका को अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया नए सिरे से जारी रखनी चाहिए। पाकिस्तान अफगानिस्तान में तालिबान की अगुवाई में नई सरकार के गठन की मांग काफी पहले से कर रहा है। यह मांग भारत के हितों के बेहद खिलाफ है। तालिबान की वापसी अफगानिस्तान में अभी तक किये भारत के विकास कार्यो को भारी क्षति पहुंचा सकती है। तालिबान पहले भी पाकिस्तान के साथ मिल कर भारत के हितों को नुकसान पहुंचाता रहा है।
जानकारों का यह भी कहना है कि अमेरिका को खाड़ी क्षेत्र में युद्ध होने की स्थिति में कई तरह से पाकिस्तान की मदद चाहिए। मसलन, वह पाकिस्तान के हवाई अड्डों का इस्तेमाल करने से लेकर अपने सैन्य ठिकानों को सुरक्षित करने के लिए भी पाक सेना की मदद चाहेगा। सितंबर, 2001 में अफगानिस्तान स्थित अल कायदा के ठिकानों पर हमला करने और तालिबान को भगाने के लिए भी अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद ली थी। इसके बदले पाकिस्तान को काफी सैन्य मदद व आर्थिक मदद भी दिया गया था।
मुख्य संपादक, उगता भारत