नई दिल्ली, । अमेरिकी एयर स्ट्राइक में ईरान के जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या का असर पूरी दुुनिया पर पड़ा है। यही वजह है कि पूरी दुनिया दो हिस्सों में बंट गई है। रूस और चीन समेत तमात शक्तियां ईरान के पक्ष में हैं तो इजरायल ने खुलकर अमेरिका का पक्ष लिया है। उधर, पाकिस्तान ने बड़ी चतुराई से अमेरिका को संयम बरतने की अपील करते हुए निकल गया। कई यूरोपीय देशों में इसकी निंदा हुई तो कहीं प्रमुख देश चुप्पी साध कर बैठे हैं। इजरायल ने इसकी खुलकर प्रशंसा की है। हालांकि, इजरायल ने तीन वर्ष पूर्व ही सुलेमानी की हत्या की पटकथा लिख दी थी। लेकिन अमेरिका के हस्तक्षेप के बाद यह मामला टल गया था। इसके अलावा यह देखना भी दिलचस्प होगा कि इस पूरे मामले में भारत का नजरिया क्या होगा। भारत का अमेरिका और ईरान दोनों से अच्छे संबंध हैं। अमेरिका, भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है तो र्इरान के साथ उसके काफी पुराने और मधुर संबंध हैं।
भारत र्इरान संबंधों की मजबूत बुनियाद
अमेरिका के इस एक्शन से भारत को निश्चित रूप से मुश्किलें बढ़ी हैं। खाड़ी देशों में करीब 80 लाख भारतीय हैं। ऐसे में लाजमी है कि मध्य एशिया में सैन्य संघर्ष बढ़ने से उन पर असर पड़ेगा। इतना ही नहीं भारत ने पाकिस्तान को नजरअंदाज करते हुए मध्य एशिया एवं अफगानिस्तान तक पहुंच के लिए वैकल्पिक रास्ता निकालने के फिराक में है यह ईरान के चाबहार पोर्ट से होकर गुजरता है। इसके अलावा भारत-ईरान के बीच पुराने मजबूत सांस्कृतिक रिश्तें हैं। पाकिस्तान मतभेद को लेकर तमाम अंतरराष्ट्रीय मंच पर वह तटस्थता की भूमिका में रहा है। एेसे में इस मामले में भारत भी बहुत फूंक-फूंक कर कदम रख रहा है।
ईरान से तेल आयात लगभग रोका
भारत ने अमेरिका के दबाव में पहले ही ईरान से तेल आयात लगभग रोक दिया है। अब इराक भारत के बड़े तेल निर्यातकों में शुमार हो चुका है। ऐसे में क्षेत्र में सैन्य कार्रवाई बढ़ी तो भारत का तेल आयात प्रभावित हो सकता है। ऐसे में भारत को अपनी रणनीति पर नए तरीके से विचार करना चाहिए। भारत को इसे क्षेत्र में शांति एवं सुरक्षा का माहौल सुनिश्चित करने के लिए राजनयिक भूमिका निभाने की अपनी ताकत का इस्तेमाल करना चाहिए।
तो तीन वर्ष पूर्व ही सुलेमानी की हत्या की लिखी गई थी पटकथा
सुलेमानी इजरायल का जानी दुश्मन था। इजयारल विरोधी शक्तियों को एकजुट करने में सुलेमानी की अहम भुमिका रहती थी। इस क्रम में 2016 में सुलेमानी ने तेहरान में हमास के प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी। 2018 में अमेरिका ने कथित तौर पर सुलेमानी की हत्या के लिए इजरायल को हरी झंडी दी थी। तीन वर्ष पूर्व इजरायल ने सुलेमानी पर कार्रवाई का मन बनाया था, लेकिन उस समय अमेरिका ने ईरानी नेतृत्व को चेतावनी दे दी थी। इजरायल के खिलाफ जंग को लेकर सुलेमानी हमेशा मुखर रहते थे। 2019 में उन्होंने कहा था कि यह ईरान और इजरायल का आखिर संघर्ष है।
उनके इस बयान पर इजरायल ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी। इजरायल ने सुलेमानी को सावधान किया था। दरअसल, 1998 में सुलेमानी कुद्स सैन्य बल के प्रमुख बने थे। इसके पूर्व 1992 में ब्यूनस आयर्स में इजरायली दूतावास पर हमले के लिए हिज्बुल्लाह की मदद देने का आरोप कुद्स बल पर ही लगा था। 2006 में इजरायल और हिज्बुल्लाह के बीच हुए युद्ध में हिज्बुल्लाह को ईरान की मदद के लिए सुलेमानी ही जिम्मेदार थे।
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