योगेश कुमार गोयल
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) द्वारा एक के बाद एक जिस प्रकार उच्च तकनीक वाली रक्षा प्रणालियों के जरिये भारतीय सेना को मजबूती प्रदान की जा रही है, उससे हर भारतवासी गौरवान्वित है। पिछले दिनों रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने कहा था कि कई पाबंदियों और सीमित क्षमताओं के बावजूद डीआरडीओ भारतीय सेना की ताकत को बढ़ाने के लिए कई प्रणालियां, उत्पाद तथा प्रौद्योगिकियां विकसित करने में सफल रहा है। उसने देश को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से समृद्ध किया है। पिछले ही महीने अग्नि-2 और अग्नि-3 बैलिस्टिक मिसाइलों के सफल परीक्षण के बाद डीआरडीओ द्वारा अब ओडिशा के चांदीपुर स्थित इंटिग्रेटेड टेस्ट रेंज में सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस का सफल परीक्षण किया गया है। ब्रह्मोस मिसाइल का नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी तथा रूस की मस्कवा नदी के नाम पर रखा गया है। यह भारत तथा रूस के संयुक्त प्रयासों द्वारा विकसित की गई अब तक की सबसे भरोसेमंद आधुनिक प्रक्षेपास्त्र प्रणाली है, जिसने भारत को मिसाइल तकनीक में अग्रणी देश बना दिया है। रूस द्वारा इस परियोजना में प्रक्षेपास्त्र तकनीक उपलब्ध कराई जा रही है, जबकि उड़ान के दौरान मार्गदर्शन करने की क्षमता डीआरडीओ द्वारा विकसित की गई है।ब्रह्मोस को 17 दिसम्बर को सफलतापूर्वक लांच किया गया। जमीन पर मार करने में सक्षम इस मिसाइल ने पूर्व निर्धारित मानदंडों के अनुरूप अपने लक्ष्य को सटीक तरीके से भेद दिया। उसके बाद मिसाइल के हवाई संस्करण का दूसरा प्रक्षेपण भारतीय वायुसेना द्वारा एसयू-30 एमकेआई मंच से एक समुद्री लक्ष्य के खिलाफ किया गया। वह भी सभी मापदंडों पर खरा उतरा। जमीन पर मार करने में सक्षम जिस आर्मी वर्जन का मोबाइल ऑटोनॉमस लांचर से परीक्षण किया गया, वह ब्रह्मोस का नया विकसित संस्करण है। इन परीक्षणों के बाद ब्रह्मोस अब जल, थल और नभ तीनों ही जगह दुश्मन पर बेहद सटीक वार करने में सक्षम हो गई है। नौसेना और वायुसेना में पहले से ही ब्रह्मोस मिसाइलें शामिल हैं। अब इसे थल सेना के बेड़े में शामिल किया जाएगा।ब्रह्मोस मध्यम दूरी तक मार करने वाली रैमजेट इंजन युक्त सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। जिसे पनडुब्बी, जहाज, लड़ाकू विमान अथवा जमीन से अर्थात कहीं से भी लांच किया जा सकता है। अभी तक चीन और पाकिस्तान के पास ऐसी क्रूज मिसाइल नहीं है, जिन्हें जल, थल और नभ तीनों ही जगह से दागा जा सकता है। क्रूज प्रक्षेपास्त्र वे होते हैं, जो कम ऊंचाई पर बहुत तेज गति से उड़ान भरते हैं और दुश्मन देशों के रडार की नजरों से बचे रहते हैं। ब्रह्मोस 10 मीटर की ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है। यह रडार के अलावा किसी अन्य मिसाइल पहचान प्रणाली को भी चकमा देने में सक्षम है। इसीलिए इसे मार गिराना लगभग असंभव माना जाता रहा है। भारतीय सेना के तीनों अंगों के लिए ब्रह्मोस मिसाइल के अलग-अलग संस्करण बनाए गए हैं। थल सेना, वायु सेना और नौसेना की जरूरतों के हिसाब से ब्रह्मोस को अलग-अलग उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है। ब्रह्मोस के नए संस्करण का प्रोपल्शन सिस्टम, एयरफ्रेम, पावर सप्लाई सहित कई महत्वपूर्ण उपकरण देश में ही विकसित किए गए हैं। 290 किलोमीटर रेंज वाली करीब 9 मीटर लंबी नई ब्रह्मोस मिसाइल ध्वनि की गति से करीब तीन गुना ज्यादा रफ्तार से वार करने में सक्षम है। यह एक बार में 200 किलोग्राम वजनी युद्धक सामग्री ले जा सकती है। इसकी विशेषता है कि यह अपने लक्ष्य के करीब पहुंचने से महज 20 किलोमीटर पहले भी अपना रास्ता बदल सकने वाली तकनीक से लैस है। यह दुनिया में अपनी तरह की ऐसी एकमात्र क्रूज मिसाइल है, जिसे सुपरसोनिक स्पीड से दागा जा सकता है। यह पलक झपकते ही दुश्मन के ठिकाने को नष्ट कर सकती है। ब्रह्मोस के नए संस्करण को डीआरडीओ और रूस के एनपीओएम मशीनोस्ट्रोयेनिया ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। यह रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है। इसकी मारक क्षमता अचूक होती है। रक्षा विशेषज्ञों के अनुसार यदि किसी मिसाइल की क्षमता 100 किलोमीटर दूरी तक है तो उसे इस इंजन की मदद से बढ़ाकर 320 किलोमीटर तक किया जा सकता है। आम मिसाइलों के विपरीत ब्रह्मोस हवा को खींचकर रैमजेट तकनीक से ऊर्जा प्राप्त करती है और 1200 यूनिट ऊर्जा पैदा कर अपने लक्ष्य को तहस-नहस कर सकती है। ब्रह्मोस हवा में ही मार्ग बदलकर चलते-फिरते लक्ष्य को भी भेदने में सक्षम है। बहरहाल, नई तकनीक से विकसित ब्रह्मोस के नए संस्करणों के सफल परीक्षण के बाद भारतीय सेना के तीनों अंगों की मारक क्षमता और बढ़ गई है। अब ब्रह्मोस की बदौलत भारत जमीन, जल तथा आसमान तीनों ही जगह अपने लक्ष्य को सटीकता के साथ भेदने की क्षमता हासिल कर चुका है। आगामी दस वर्षों में भारत द्वारा करीब दो हजार ब्रह्मोस मिसाइलें बनाने का लक्ष्य रखा गया है। आने वाले वर्षों में भारतीय सेना के बेड़े में ब्रह्मोस का अत्याधुनिक हाइपरसोनिक वर्जन ‘ब्रह्मोस-2’ भी शामिल होगा, जो करीब 7 मैक की गति से छह हजार किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार के साथ 290 किलोमीटर दूरी तक लक्ष्य भेदने में सक्षम होगी।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार तथा कई पुस्तकों के लेखक हैं, उनकी हाल ही में पर्यावरण संरक्षण पर 190 पृष्ठों की पुस्तक ‘प्रदूषण मुक्त सांसें’ प्रकाशित हुई है)