महर्षि दयानन्द ने अपने उद्बोधन, पत्रों तथा अन्यान्य लेखन में सर्वत्र महिला-उत्पीडऩ के विरुद्ध कार्य करने के निर्देश दिए हैं। यद्यपि महाभारत युद्ध के बाद समाज में अनेक दुर्गुणों का समावेश हो गया था और जहाँ राजधर्म विखण्डित हुआ वहीं समाज में विभिन्न प्रकार की दुर्नीतियाँ प्रचलित हो गईं। 8वीं शताब्दी के बाद इस्लामी आक्रमण के प्रारम्भ होने से भारतीय समाज में नारी की दशा और भी दयनीय होती गई। पुरुषों का वर्चस्व और नारी को हेय मानने की प्रवृत्ति बढ़ती ही गई। जबकि प्राचीन भारतीय सत्शास्त्रों में नारी की गौरवमयी स्थिति विद्यमान थी, जिसके अनुसार नारियाँ सभा और समिति में भाग लेती थीं, युद्धों में और खेलों में उनकी भागीदारी थी, विदुषी और ब्रह्मवादिनी महिलाओं के नाम भारतीय इतिहास में बिखरे पड़े हैं। इसलिए यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सामान्यतया महिलाओं के अधिकार सुरक्षित थे, भले ही वैदिक शास्त्रों से इतर ग्रन्थों में यत्र-तत्र उनके अधिकारों का अतिक्रमण किया गया हो, लेकिन वे वैदिक सिद्धान्तों के विरुद्ध होने के कारण स्वीकार नहीं किए जा सकते।
महर्षि ने नारी की दशा को देश में भ्रमण करते हुए अनुभव किया था। इसीलिए उन्होंने स्त्री-शिक्षा, स्त्री के विवाह की उम्र, स्त्री की समाज में सक्रियता, उनकी शिक्षा इत्यादि के संबन्ध में लिखा और अपने भाषणों में भी इस विषय पर पर्याप्त प्रवचन किया। उन्हीं के उपदेशों का अनुसरण कर बाद के आर्य नेताओं ने कन्या-गुरुकुल, कन्या डीएवी कॉलेज, स्त्री आर्यसमाज इत्यादि संगठनों का निर्माण किया और महिलाओं के बीच जागृति उत्पन्न करके उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे का महनीय कार्य किया। उदाहरण रूप में हम चर्चा करें, तो एक साहसी महिला थी हरदेवी। इस अप्रसिद्ध-सी विधवा महिला ने 1881 में स्त्री-विलाप नामक एक कविता लिखी थी जिसके द्वारा तत्कालीन महिलाओं की स्थिति को बखूबी समझा जा सकता है। महिला सुधार हेतु उपर्युक्त हरदेवी का योगदान महत्त्वपूर्ण है। ये प्रसिद्ध रायबहादुर कन्हैयालाल की पुत्री थीं। कन्हैयालाल जी लाहौर के आधुनिक भवन-निर्माताओं में से थे। हरदेवी पहली ऐसी महिला थी जिसका महर्षि दयानन्द के उपदेशों के बाद विधवा-विवाह आर्यसमाज के प्रसिद्ध विद्वान् और एडवाकेट रोशनलाल, बैरिस्टर एट लॉ के साथ बहुत विरोधों के बावजूद हुआ। बाद में रोशनलाल आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब के मंत्री चुने गए जिन्होंने इंग्लैण्ड से वकालत की डिग्री प्राप्त की थी। वे गौरक्षक और प्रसिद्ध समाजसुधारक थे। इन्हीं आर्यसमाजी रोशनलाल ने जब समाज के विरोध के बावजूद इस विधवा महिला से विवाह किया तो उसका कारण इस महिला के द्वारा महिला कल्याण के लिए किए जा रहे कार्यों से प्रभावित होना ही था। तत्कालीन एक अन्य प्रसिद्ध महिला जानकी देवी ने हरदेवी के विषय में लिखा था कि ”हरदेवी लाहौर के बैरिस्टर रोशनलाल की पत्नी, समाजसेविका, हिन्दी पत्रिका ‘भारत-भगिनीकी सम्पादिका थीं जो क्रांतिकारियों के मुकदमों में धन इक_ा करके सहायता देती रहीं। आर्यसमाज के इतिहास में सत्यकेतु विद्यालंकार ने पटियाला षड्यंत्र केस में हरदेवी द्वारा प्रकाशित समाचारपत्र ‘भारत-भगिनी को राजद्रोहात्मक साहित्य मानकर उसे जब्त करने का उल्लेख किया है तथा रोशनलाल के योगदान को रेखांकित किया। स्पष्टत: हरदेवी ने आर्यसमाज और महर्षि दयानन्द के साथ-साथ पण्डिता रमाबाई से भी महिला कल्याण की प्रेरणा ली थी। हरदेवी को पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड भेजा गया और यह माना जाता है कि वे पहली ऐसी हिन्दीभाषी महिला थीं जिन्होंने लंदन में जाकर बालिकाओं के लिए किण्डर गार्डन पद्धति से शिक्षा का अध्ययन किया। हरदेवी ने भाग्यवती, सासपतोहु वामाशिक्षक, लंदन यात्रा, हुकुमदेवी-हिन्दू धर्म की उच्चता में एक सच्ची कहानी, सीमन्तनी उपदेश, स्त्रियों पर सामाजिक अन्याय, पुनर्विवाह से रोकना, भारत-भगिनी, स्त्री-विलाप इत्यादि अन्यान्य पुस्तकों और पत्रकों की रचना की।
मुख्य संपादक, उगता भारत