प्रवीण गुगनानी
गाजियाबाद । ( ब्यूरो डेस्क ) तो अंततः देश विभाजन के तुरंत बाद किया जाने वाला बहू प्रतीक्षित व प्राकृतिक न्याय वाला कार्य अब पूर्ण हुआ और संसद ने नागरिकता संशोधन बिल पारित कर दिया। चाणक्य ने कहा था कि ऋण, शत्रु और रोग को समय रहते ही समाप्त कर देना चाहिए। जब तक शरीर स्वस्थ और आपके नियंत्रण में है, उस समय आत्म साक्षात्कार के लिए उपाय अवश्य ही कर लेना चाहिए, क्योंकि मृत्यु के पश्चात कोई कुछ भी नहीं कर सकता। चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरु और विश्व के नीतिशास्त्र व अर्थशास्त्र के प्रणेता कौटिल्य को यदि आज के संदर्भों मे पढ़ें तो राज्य का रोग तुष्टिकरण की राजनीति ही होता है। यदि राजनीति सही चली होती या रोगपूर्ण न होती तो धर्म के आधार पर भारत का विभाजन न हुआ होता और आज नरेंद्र मोदी सरकार को नागरिकता संशोधन बिल लाने की आवश्यकता न पड़ती। देश विभाजन के समय से लेकर आज तक हिंदुओ के साथ हो रहे सामाजिक, राजनैतिक अत्याचारों को रेखांकित करते हुये अमित शाह ने इस विधेयक के पारित होने के दौरान लोकसभा मे कहा कि
1947 में पाकिस्तान में 23 फीसदी हिंदू थे लेकिन वहीं साल 2011 में ये आंकड़ा 1.4 प्रतिशत रह गया है. पड़ोसी देशों में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचारों को देखते हुए भारत मूकदर्शक नहीं बना रह सकता। जहां इन पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान मे हिंदू अल्पसंख्यकों की संख्या चिंतनीय स्तर पर कम हुई है वहीं, भारत मे मुस्लिम आबादी के प्रतिशत में असामान्य बढ़ोतरी हुई है।
बांग्लादेश, अफ़गानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदाय हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिक्ख लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है इस बहू प्रतीक्षित अधिनियम मे जिससे इन तीनों घोषित रूप से इस्लामिक देशों मे अत्याचार सह रहे हिंदुओं के भारत आने व यहां की वैध नागरिकता प्राप्त करने का स्व्पन साकार हो सकेगा।
तथाकथित तौर पर कई राष्ट्रवादी नेताओं के मत की अनदेखी करके नेहरू ने लियाकत अली खान के साथ जो समझौता किया था वह प्रारंभ से ही दरक गया था। इस समझौते के अनुसार कभी भी हिंदुओं को पाकिस्तान मे किसी भी प्रकार की सुरक्षा या सरंक्षण नहीं मिला और सबसे बड़ी बात विगत सत्तर वर्षों मे भारतीय सरकारों ने कभी भी इन देशों मे छूट गए हिंदुओं की चिंता नहीं की। यहां छूट गए हिंदू अत्याचार सहते सहते या तो धर्मांतरण को मजबूर हुये या भगोड़े बनकर दूसरे देशों मे अवैध नागरिक कहलाने लगे। वस्तुतः देश का विभाजन ही गलत वातावरण मे किया गया था। जब गांधी जी की देश मे अतीव विश्वसनीयता थी तब उस कालखंड मे गांधीजी कई कई बार बोलते थे कि “देश विभाजन मेरी लाश पर होगा”। उसी समय जिन्ना मुस्लिम समुदाय को विश्वास दिलाते थे कि मुस्लिमों का पाकिस्तान बनकर रहेगा। देश भर के हिंदुओं मे गांधीजी की विश्वसनीयता के कारण व उनकी राजनैतिक शक्तियों के कारण हिंदू समाज आश्वस्त था कि विभाजन नहीं होगा अतः वर्तमान पाकिस्तान मे बसा हिंदू समाज लापरवाह था। उसने अपनी सम्पत्तियों, व्यसाय, रिश्तेदारों के प्रति इस आश्वस्ति के कारण कोई व्यवस्था नहीं बनाई जबकि वर्तमान भारत मे बसे मुस्लिम समुदाय ने अपनी संपत्ति, व्यवसाय व रिश्तेदारियों को व्यवस्थित व सावधानीपूर्वक स्थानांतरित करने की पूरी योजना बना रखी थी। इस प्रकार विभाजन मे सबसे बड़ी हानि हिंदुओं की हुई। यह भी उल्लेखनीय है कि वर्तमान पाकिस्तान मे उस समय की अधिकांश संपत्तियां, व्यवसाय व संसाधनों पर हिंदूओं का ही स्वामित्व होता था वहीं मुस्लिमों की स्थिति निर्धनता की थी, अतः इस दृष्टि से भी विभाजन हिंदुओं हेतु अतीव पीड़ादायक व हानिकारक रहा, वहीं मुस्लिमों को कई बनी बनाई संपत्तियां, व्यवसाय आदि बने बनाए रूप मे कब्जा करने को मिल गए थे। सर्वविदित व अकाट्य तथ्य है कि स्व्तंत्रता के बाद जो हिंदू पाकिस्तान या बांग्लादेश मे बच गए थे वे प्रताड़ित होते रहे व उनके संसाधन छीने गए जबकि भारत मे अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति व संख्या सुदृढ़ होती गई। वस्तुतः cab विभाजन के अधूरे कार्य को पूर्ण करने का ही बड़े विलंब से लाया गया विधिक मार्ग है जिससे तब के दीन हीन हिंदुओं व अन्य समुदायों को पाकिस्तान, बांग्लादेश, अगानिस्तान के नारकीय जीवन से बाहर निकलने का सम्मानपूर्ण मार्ग निकल सकेगा। विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था व तब बड़ी संख्या मे इस आधार पर ही जनसंख्या की अदला बदली भी हुई थी किंतु बड़ी संख्या मे मुस्लिम भारत मे छूट गए थे जो सम्मानपूर्वक नागरिक जीवन जीते रहे व असामान्य जनसंख्या वृद्धि करते रहे जबकि पाकिस्तान मे छूटे हुये 23% हिंदू पाशविक अत्याचारों व बलपूर्वक धर्मांतरण का शिकार हुये व आज 1.4% की दयनीय दशा मे आ गए हैं। आज मोदी सरकार cab के माध्यम से जो कर रही है वह कार्य स्वतंत्रता के तुरंत बाद नेहरू सरकार को करना चाहिए था। नेहरू सरकार ने इसके विपरीत कार्य किया उसने पाकिस्तान मे छूटे हुये हिंदुओं को अनाथ समझकर अनदेखा किया और भारत मे छूट गए मुस्लिमों को तुष्टिकरण की राजनीति के माध्यम से अपना वोट बैंक बनाया व उन्हे अपने सर माथे बैठाते रहे।
हो यह रहा था कि पाकिस्तान मे मुस्लिमों के अत्याचारों से तंग होकर जो हिंदू बंधु भारत को अपनी भूमि समझकर यहां आकर रह रहे थे उन्हें अवैध माना जा रहा था व उन्हें नागरिक नहीं माना जा रहा था। हिंदू अपनी ही जन्मभूमि मे पराया व अपमानित जीवन जीने को अभिशप्त था। इस अधिनियम के माध्यम से यह स्थिति समाप्त होगी। अब इस प्रकार के उपेक्षित हिंदू बंधुओं को भारत मे सम्मान पूर्ण जीवन मिलेगा। नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान मे अत्याचारों से तंग होकर बिना किसी दस्तावेज़ के भारत मे प्रवेश कर चुके हिंदू अवैध अप्रवासी माने जाते थे। अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। मोदी सरकार ने इस संवेदनशील विषय मे अपने पहले कार्यकाल मे कार्य प्रारंभ कर दिया था और 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई को छूट दे दी थी। इसका मतलब यह हुआ कि इन धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उन लोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून-1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक-2016 संसद में पेश किया गया था किंतु तब यह लोकसभा मे पारित होकर राज्यसभा मे विफल हो गया था व हिंदू चिंता का एक प्रमुख विषय कुत्सित व तुष्टिकरण राजनीति की भेंट चढ़ गया था।
मुख्य संपादक, उगता भारत