गार्गी ने चाहे जितने भी प्रश्न ऋषि याज्ञवल्क्य से पूछे , उन सबके पूछने के पीछे कारण यही था कि वह याज्ञवल्क्य ऋषि की सर्वोत्कृष्टता और सर्वश्रेष्ठता को सिद्ध कर देना चाहती थी । वह नहीं चाहती थी कि ऋषि याज्ञवल्क्य के बारे में कल को कोई यह कहे कि वह गायों के सींगों के ऊपर लगे स्वर्ण के ‘ मोह ‘ में आकर गायों को ले गए । वास्तव में गार्गी यही चाहती थीं कि सभी विद्वज्जन यह जान व मान लें कि याज्ञवल्क्य वास्तव में ब्रह्मज्ञानी हैं और उन्हें किसी भी प्रकार का ‘ मोह ‘ नहीं है । ब्रह्मज्ञानी होने के कारण ही उनका गायों पर अधिकार बनता है । परंतु इस अधिकार से पहले परीक्षा को वह हर स्थिति में आवश्यक मानती थीं ।गार्गी यह भी नहीं चाहती थीं कि किसी ऋषि के मन में यह बात रह जाए कि वह संकोचवश ऋषि याज्ञवल्क्य का सामना नहीं कर पाए अन्यथा वह उन्हें शास्त्रार्थ में पराजित कर सकते थे । गार्गी इस समय प्रत्येक प्रकार के संदेह और शंका का निवारण कर देना चाहती थीं। वह चाहती थीं कि आज जब राजा जनक ने ऋषियों की इस पवित्र सभा में वास्तविक ब्रह्मज्ञानी होने के प्रश्न को यहां पर उछाल ही दिया है तो ऋषि याज्ञवल्क्य निर्विवाद सच्चे ब्रह्मज्ञानी सिद्ध हो जाएं । अतः उसने स्वयं ने ही ऋषि याज्ञवल्क्य को गहरे रहस्यों से भरे प्रश्नों से घेरना आरंभ कर दिया । वह नहीं जानती थीं कि उसके द्वारा पूछे जा रहे इन प्रश्नों से दुखी होकर ऋषि याज्ञवल्क्य खिन्न भी हो सकते हैं । जब गार्गी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी तो गार्गी को लगभग डांटते हुए याज्ञवक्ल्य ने कहा- ” गार्गी, इतने प्रश्न मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा माथा ही फट जाए।”
वास्तव में अब गार्गी ने सृष्टि के संबंध में रहस्य भरे प्रश्न पूछने आरंभ कर दिए थे । जिससे ब्रह्मज्ञानी ऋषि याज्ञवल्क्य स्वयं हतप्रभ रह गए । ऋषि याज्ञवल्क्य के मुंह से कुछ कठोर शब्द सुनने के पश्चात गार्गी ने उनके अहम की तुष्टि के लिए अपने आपको कुछ क्षणों के लिए मौन कर लिया । परंतु इसके पश्चात वह फिर प्रश्न करने की मुद्रा में आ गई । गार्गी ने ऋषि के सम्मान और अहम का पूरा ध्यान रखते हुए बड़ी सधी सधायी शैली में पूछ लिया कि – ‘ऋषिवर ! सुनो , जिस प्रकार काशी या विदेह का राजा अपने धनुष की डोरी पर एक साथ दो अचूक बाणों को चढ़ाकर अपने शत्रु पर सन्धान करता है, वैसे ही मैं आपसे दो प्रश्न पूछती हूं। ”
याज्ञवल्क्य ने अपने आप को संभालते हुए अर्थात कुछ संतुलित सा करते हुए कहा – ‘हे गार्गी, पूछो।”
तब गार्गी ने पूछा – ” स्वर्गलोक से ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है और इन दोनों के मध्य जो कुछ भी है, और जो हो चुका है और जो अभी होना है, ये दोनों किसमें ओतप्रोत हैं ? ”
आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में यदि गार्गी के इस प्रश्न का रूपांतरण या शब्दांतरण किया जाए तो गार्गी ने ऋषि याज्ञवल्क्य से सीधे-सीधे स्पेस और टाइम के बारे में प्रश्न किया था । उसका प्रश्न यही था कि स्पेस और टाइम के बाहर भी कुछ है या नहीं है ?
गार्गी के प्रश्नों का अभिप्राय था कि सारा ब्रह्मांड किस की सत्ता के अधीन है अर्थात किसके शासन , प्रशासन या अनुशासन में यह सारा ब्रह्मांड कार्य कर रहा है या गतिशील है ?
गार्गी के तीखी धार वाले इन प्रश्नों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हुए ऋषि याज्ञवल्क्य ने बड़े प्रेम से उत्तर देते हुए कहा — ‘एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी। ” अर्थात हे गार्गी ! यह सारा ब्रह्मांड एक अक्षर अविनाशी तत्व के शासन , प्रशासन और अनुशासन में गतिशील है अर्थात कार्य कर रहा है ।
गार्गी अब अपने प्रश्नों की बौछार को कुछ धीमा करती जा रही थीं । उन्होंने ऋषि याज्ञवल्क्य से इतने प्रश्न कर लिए थे कि उन प्रश्नों के आगे के प्रश्न पूछने का साहस राजा जनक के दरबार में बैठे किसी अन्य ऋषि के भीतर नहीं था । जिससे अब यह सिद्ध होता जा रहा था कि ऋषि याज्ञवल्क्य ही आज के समय के सर्वश्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हैं और गार्गी भी इसी ऊंचाई तक शास्त्रार्थ को पहुंचा देना चाहती थीं । अन्त में उन्होंने पूछा कि ‘ हे याज्ञवल्क्य ! यह सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है ?”
गार्गी के इस प्रश्न पर याज्ञवल्क्य का उत्तर था- ‘ हे गार्गी ! अक्षरतत्व के आधीन यह सारा ब्रह्मांड कार्य कर रहा है !” इतना कहने के पश्चात ऋषि याज्ञवल्क्य ने अक्षरतत्व के बारे में अपना गंभीर चिंतन सभी ऋषियों के मध्य प्रस्तुत किया । जिससे राजा जनक सहित सभी ऋषिगण गदगद हो उठे । वे अन्तत: बोले, ‘गार्गी इस अक्षर तत्व को जाने बिना यज्ञ और तप सब कुछ व्यर्थ है। ब्राह्मण वही है जो इस रहस्य को जानकर ही इस लोक से विदा होता है।”
ऋषि याज्ञवल्क्य के द्वारा अब तक अपने अपनी सर्वश्रेष्ठता और उत्कृष्टता को इस प्रकार प्रस्तुत कर दिया गया था कि सारा दरबार और राजा जनक सहित सारे ऋषिगण उनकी सर्वोत्कृष्टता को स्वीकार कर चुके थे । जिसे देखकर गार्गी भीअत्यंत हर्षित हो रही थीं। अब वह ऋषि याज्ञवल्क्य को अपने प्रश्नों से और अधिक उग्र या उत्तेजित करना नहीं चाहती थीं । फलस्वरूप गार्गी ने अपने प्रश्नों को समेटते हुए महाराज जनक की राजसभा में याज्ञवल्क्य को परम ब्रह्मज्ञानी मान लिया। इतने तीखे प्रश्न पूछने के उपरांत गार्गी ने जिस तरह याज्ञवल्क्य की प्रशंसा कर अपनी बात समाप्त की तो उसने वाचक्नवी होने का एक और गुण भी दिखा दिया कि उसमें अहंकार का लेशमात्र भी नहीं था। गार्गी ने याज्ञवल्क्य को प्रणाम किया और सभा से विदा ली।
याज्ञवल्क्य विजेता थे- गायों का धन अब उनका था। याज्ञवल्क्य ने नम्रता से राजा जनक को कहा: — ‘राजन! यह धन प्राप्त कर मेरा ‘ मोह ‘ नष्ट हुआ है। यह धन ब्रह्म का है और ब्रह्म के उपयोग में लाया जाए , यह मेरी विनम्र विनती है। इस प्रकार राजा जनक की सभा के द्वारा सभी ज्ञानियों को एक महान पाठ और श्रेष्ठ विचारों की प्राप्ति हुई।’
सचमुच सनातन राष्ट्र भारत की सनातन परंपरा में गार्गी जैसी महान विदुषी नारियों का होना हम सब के लिए गर्व और गौरव का विषय है । परम ऋषियों की सभा में इतने उत्कृष्ट विषय पर आयोजित शास्त्रार्थ में ब्रह्मज्ञानी याज्ञवल्क्य जैसे ऋषियों से प्रश्न पूछने का साहस करने वाली गार्गी आज भी नारी के लिए आदर्श प्रस्तुत कर रही है । उन जैसे दिव्य गुणों से भूषित नारी ही भारत की सनातन परंपरा की रक्षक हो सकती है । हम चाहते हैं कि गार्गी की शास्त्रार्थ परंपरा को आगे बढ़ाने वाली नारी का निर्माण करना हमारे देश के कर्णधारों का उद्देश्य होना चाहिए । नारी भी अपने आपको इसी शिवसंकल्प के प्रति समर्पित करे और यह दिखाए कि गार्गी की परंपरा को चलाने और अपनाने का साहस उसके भीतर है । जब नारी इस प्रकार के संकल्प को लेकर आगे बढ़ेगी तभी कहा जा सकेगा कि आज की नारी भी वास्तव में सशक्त महिला है।
सचमुच यह देश अंग प्रदर्शन कर पर्दे पर अपने शरीर को बेचने वाली किसी हीरोइन का देश नहीं है , यह देश उस ‘ गार्गी ‘ का देश है जो पर्दे पर अर्थात ज्ञानी जनों के विशिष्ट मंचों पर पर्दे में रहकर अर्थात लज्जा में रहकर पर्दे की बात अर्थात प्रकृति के गूढ़ रहस्यों को खोलने की बात करना जानती हैं । पर्दे पर रहकर ‘पर्दे ‘ में रहने को ही ‘ पर्दा ‘ कहते हैं, पर्दे पर रहकर ‘ बेपर्दा ‘ हो जाना तो कोई बात नहीं। जो पर्दे पर रहकर भी ‘पर्दे’ में रहे वही महिला वास्तव में सशक्त है और भारत ऐसी ही सशक्त महिला का पुजारी देश है।
( लेखक की ” महिला सशक्तिकरण और भारत ” नामक पुस्तक शीघ्र ही डायमंड पॉकेट बुक्स दिल्ली के माध्यम से प्रकाशित होने जा रही है , जिसमें यह सभी लेख आपको उपलब्ध हो सकते हैं । )
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत
One reply on “महान विदुषी महिला गार्गी का महर्षि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ , भाग – 2”
It very nice and admirable