भारतीय इतिहास में ऐसी अनेकों महान नारियां हुई हैं जिन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता , ज्ञान – विज्ञान में निष्णात होने और प्रत्येक क्षेत्र में पुरुष की बराबरी कर अपने धर्म का पालन किया। प्राचीन काल में गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि थे, जिनकी पुत्री का नाम वाचकन्वी गार्गी था। बृहदारण्यक उपनिषद् में इनका ऋषि याज्ञवल्क्य के साथ बडा ही सुन्दर शास्त्रार्थ आता है। बृहदारण्यकोपनिषद में वर्णित इस कथा के अनुसार एक बार महाराज जनक ने श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा लेने के लिए एक सभा का आयोजन किया।
राजा जनक ने सभा को संबोधित करके कहा, ‘हे महाज्ञानी जनों ! मैं आपका आतिथ्य सत्कार करते हुए अपने आप को बहुत ही सौभाग्यशाली अनुभव कर रहा हूं । सचमुच यह मेरा सौभाग्य है कि आपके चरण कमल मेरे राज दरबार में पड़े हैं । मैंने यहां पर कुछ गायों को रखा है, जिनके सींगों पर सोने की मुहरें जड़ी गयीं हैं। आप में से जो श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हो वह इन स्वर्णजड़ित सब गायों को ले जा सकता है। ”
राजा जनक अपने आप में स्वयं परम विद्वान थे। वह अपने राजदरबार में अनेक गूढ़ प्रश्नों और विषयों के शास्त्रार्थ कराने के लिए जाने जाते थे । आज उन्होंने बड़ा गंभीर प्रश्न सभी ब्रह्मज्ञानियों के समक्ष छोड़ दिया था कि आपमें से जो सबसे श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी हो वह इन स्वर्णजड़ित गायों को यहां से ले जा सकता है । राजा के इस गंभीर प्रश्न को सुनकर सभी ब्रह्मज्ञानी अतिथियों में से किसी का भी यह साहस नहीं हुआ कि वह स्वयं को सबसे श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी माने और उन स्वर्ण जड़ित गायों को वहां से लेकर चल दे ।
तब वहां उपस्थित ऋषि याज्ञवल्क्य ने अपने शिष्यों से कहा, ” हे शिष्यों! इन गायों को हमारे आश्रम की और हांक ले चलो। इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया। उस सभा में ब्रह्मवादिनी गार्गी भी उपस्थित थीं। ”
याज्ञवल्क्य ने वहां पर उपस्थित सभी ब्रह्मज्ञानी ऋषियों के गूढ़ प्रश्नों का सटीक उत्तर देकर उन्हें निरुत्तर कर दिया । तब उनसे शास्त्रार्थ करने के लिए गार्गी सामने आई । वह नहीं चाहती थीं कि ऋषि याज्ञवल्क्य अपनी श्रेष्ठता सिद्ध किए बिना उन गायों को वहां से लेकर चले जाएं। गार्गी ने ऋषि याज्ञवल्क्य से पूछा ” हे ऋषिवर ! क्या आप अपने आपको सबसे बड़ा ब्रह्मज्ञानी मानते हैं ? ”
इस पर ऋषि याज्ञवल्क्य बोले, ‘ हे देवी ! मैं स्वयं को ज्ञानी नही मानता , परन्तु इन गायों को देख मेरे मन में ‘मोह ‘ उत्पन्न हो गया है। ”
एक ऋषि के मुंह से ‘ मोह ‘ जैसे शब्द को सुनकर गार्गी को मानो अपने शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाने का एक उचित कारण और माध्यम मिल गया । वैसे महर्षि याज्ञवल्क्य ने भी ‘ मोह ‘ जैसे शब्द को वहां जानबूझकर ही व्यक्त किया था , क्योंकि वह भी यही चाहते थे कि उनसे कोई चर्चा करें और चर्चा या शास्त्रार्थ प्रारंभ करने के लिए कोई ऐसी बात होनी ही चाहिए जो शास्त्रार्थ को आगे बढ़ाने का माध्यम बने। एक ऋषि के मुंह से मोह जैसा शब्द सुनकर गार्गी ने ऋषि को चुनौती दी तब उन्होंने महर्षि याज्ञवल्क्य पर और भी करारा प्रहार करते हुए और अपने प्रश्न को धार देते हुए कहा ‘आप को ‘मोह ‘ हुआ, यह उपहार प्राप्त करने के लिए योग्य कारण नही है। ऋषिवर ! ऐसे में तो आप को यह सिद्ध करना ही होगा कि आप इस उपहार के योग्य हैं। यदि सर्वसम्मति हो तो मैं आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहूंगी, यदि आप इनके संतोषजनक उत्तर प्रस्तुत करेंगे तो ही आप इस पुरस्कार के अधिकारी होंगे।
ऋषि याज्ञवल्क्य ने विदुषी गार्गी को स्वयं से प्रश्न पूछने की अनुमति प्रदान की । तब विदुषी गार्गी ने ऋषि याज्ञवल्क्य से बड़ा सरल सा प्रश्न पूछ लिया कि — ” हे ऋषिवर ! जल में हर पदार्थ बड़ी सरलता से घुलमिल जाता है, परंतु मैं आपसे पूछना चाहती हूँ कि यह जल किसमें जाकर मिल जाता है ?”
तब ऋषि याज्ञवल्क्य ने गार्गी के इस प्रश्न का वैज्ञानिक और तार्किक उत्तर देते हुए कहा कि ‘जल अन्तत: वायु में ओतप्रोत हो जाता है।” हम देखते ही हैं कि समुद्र से अतुलित जल मानसूनी प्रक्रिया के अंतर्गत वायु में मिल जाता है।
इसके पश्चात गार्गी का अगला प्रश्न था कि ‘वायु किसमें जाकर मिल जाती है?”
याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि ”अंतरिक्ष लोक में।”
अब गार्गी ऋषि याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में परिवर्तित करती चली जा रही थी । इस प्रकार गंधर्व लोक, आदित्य लोक, चन्द्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक, इन्द्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्मलोक तक जा पहुंची और अन्त में गार्गी ने पुनः वही प्रश्न पूछ लिया कि – ” यह ब्रह्मलोक किसमें जाकर मिल जाता है ? ”
शास्त्रार्थ बहुत ऊंचाई पर पहुंच गया था। एक विदुषी महिला ने ब्रह्मज्ञानी याज्ञवल्क्य को हिलाकर रख दिया । ऋषि याज्ञवल्क्य यह तो चाहते थे कि उन्हें कोई चुनौती दे और यहां पर शास्त्रार्थ हो। पर उन्हें यह पता नहीं था कि यहां पर गार्गी जैसी संस्कारों से सशक्त विदुषी महिला उन्हें इतना झकझोर कर रख देगी ?
शेष कल – – – –
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डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत