यह कैसी विडंबना है कि बांग्लादेशी व म्याँमार के मुसलमानों के लिये सेक्युलर व मानवाधिकारवादी सहित देश-विदेश का मुस्लिम समाज एकजुट होकर उनके पक्ष में खड़ा रहता है। किन्तु उन प्रताड़ित पाकिस्तानी, बंग्लादेशी व कश्मीरी हिंदुओं ने क्या अपराध किया है कि जो हम हिन्दू उनके पक्ष में कोई आंदोलन या प्रदर्शन करने से भी घबराते हैं ? परिणामतः आज भी पाकिस्तान में मुस्लिम अत्याचारों से स्वाभिमानी हिन्दू अपने धर्म की रक्षार्थ अकेले ही जूझ रहें है।
हमारे राष्ट्रीय समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ है कि पाकिस्तानी समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचारों के अनुसार दक्षिण सिंध के ‘हाफिज सलमान’ नाम के एक गाँव में 20 मार्च 2019 को रीना व रवीना नाम की दो सगी हिन्दू बहनों को अगवा करके उनको मुसलमान बनाया गया। तत्पश्चात मुस्लिम गुंडों से उन काफ़िर लड़कियों का निकाह करवाया गया। इस प्रकार जिहादियों का अपने सदियों पुराने अत्याचारी इस्लामिक जनून की जकड़न से बाहर न निकलने का निर्णय स्पष्ट है।
पूर्व में कुछ समाचार ऐसे भी आते रहे है कि पाकिस्तान में कर्ज के बदले हिदू लड़कियों का अपहरण किया जाता है। वर्षों से ऐसे समाचार पढ़ कर मन विचलित होता है और आक्रोशित भी। यद्यपि सम्भवतः पहली बार भारत सरकार की ओर से हमारी विदेशमंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने इस दुःखद घटना पर कड़ा विरोध जताते हुए अपने उच्चायोग को रिपोर्ट देने का आदेश दिया है।
पाकिस्तान में ऐसे अमानवीय अत्याचारों का सिलसिला वर्षों पुराना है। वहाँ रह रहें हिन्दुओं के वहाँ से पलायन करने का यह भी एक मुख्य कारण है। पिछले 20 -25 वर्षों के ही समाचारों को ध्यान से देखा जाय तो हज़ारों हिन्दू लड़कियों का अपहरण करके उनका धर्मपरिवर्तन कराकर मुसलमानों से जबरन निकाह कराया गया। हिन्दू लड़कियों को ‘मनीषा से महाविश’, ‘भारती से आयशा’, ‘लता से हफ़सा’ , ‘आशा से हलीमा’ व ‘अंजलि से सलीमा’ आदि बना कर हज़ारों-लाखों अबलाओं की जिंदगी में जहर घोलने वाले ये कट्टरपंथी जन्नत जाने के जनून में कब तक इन मासूमों को जिंदा लाश बनाते रहेंगे ? इनके अत्याचारों से पीड़ित एक हिन्दू लड़की रिंकल कुमारी की तो मीडिया में लगभग दो वर्ष पूर्व बहुत चर्चा भी रही फिर भी कोई सुनवायी न होने के उसको ‘फरयाल बीबी’ बनना पड़ा। नारकीय पीड़ा से बचने के लिये अनेक हिन्दू लड़कियाँ आत्महत्या को भी विवश होती हैं। यह भी अत्यधिक चिंताजनक हैं कि हिन्दू, सिख व अन्य काफ़िर लड़कियों की खरीद-बिक्री मुस्लिम समाज का सदियों पुराना घिनौना धंधा यथावत जारी है। विचित्र व दुःखद यह भी है कि वहाँ के हिन्दू मुसलमानों के डर से कोई शिकायत भी नहीं कर पाते। जबकि अधिकांश पीड़ित हिन्दू-सिख दलित व गरीब होने के कारण अपनी बेटियों को ढूँढ भी नहीं पाते।
पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग के अनुसार सन् 2010 में यह भी पता चला था कि लगभग 25 हिन्दू लड़कियाँ प्रति माह पाकिस्तान में धर्मांधों का शिकार हो रही हैं। उस समय पाकिस्तानी मीडिया ने भी हिन्दू लड़कियों पर सिंध व बलूचिस्तान में हो रहें ऐसे अत्याचारों को स्वीकार किया था । धार्मिक आधार पर हिन्दू-मुस्लिम विभाजन के पश्चात बने पाकिस्तान में पूर्व के समान लाखों हिन्दू लड़कियों की दर्दनाक गाथाओं में जुड़ कर बहरी, गूँगी और अंधी दुनिया में इन दो सगी बहनों की भी दर्दनाक घटना लुप्त हो जायेगी। लाखों गैर मुस्लिम अबलाओं की तरह इन हिन्दू बहनों को भी कोई मुस्लिम नाम देकर अंधेरी कोठरी में डाल दिया जायेगा। कैसी अमानवीयता है कि मासूम व निर्दोष बालिकाओं को नारकीय जीवन जीने को विवश करने वाले जिहादियों को ऐसे पापों में ठंडक मिलती है।
इन विषम परिस्थितियों से बचने के लिए पाकिस्तान में जबरन धर्म परिवर्तन के विरोध में कानून बनाने की मांग बार-बार उठाई जाती है। सन् 2016 में सिंध प्रांत की विधानसभा में ऐसा विधेयक सर्वसम्मति से पारित भी हुआ था परंतु मुस्लिम कट्टरपंथियों के कारण उसे वापस लेना पड़ा। ‘पाकिस्तान हिन्दू काउंसिल’ के प्रमुख और पीटीआई सांसद रमेश कुमार वंकवानी ने धर्मांतरण विरोधी विधेयक को पुनः विधानसभा में लाकर पारित कराने की मांग की है।
निर्विवाद रूप से यह स्पष्ट है कि सन् 1947 में विभाजन के बाद वर्तमान पाकिस्तान में लगभग 20 प्रतिशत हिन्दू शेष थे जो अब घट कर लगभग डेढ़ प्रतिशत रह गये हैं। पूर्व के कुछ समाचारों से ज्ञात हुआ था कि सम्भवतः सन् 2017 के वैश्विक दासता सूचकांक के अनुसार 20 लाख से अधिक पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दू ,सिक्ख व ईसाई आदि दासता का जीवन जीने को विवश है। जब धार्मिक वैमनस्य के कारण ही पाकिस्तान का निर्माण हुआ था तो फिर वहां गैर मुस्लिमों पर खुल कर अत्याचार होना बंद क्यों नही होता? बल्कि हिंदुओं का बलात धर्मपरिवर्तन किये जाने पर विरोध करने वालों का प्रायः कत्ल कर दिया जाता है। हिंदुओं की संपत्ति पर जबरन कब्ज़ा करना व उन्हें वहाँ से खदेड़ देने की भी घटनाऐं सामान्यतः समाचारों में समय- समय पर आती रहती हैं। कभी-कभी अपनी पहचान छुपाने के लिये मुस्लिम नाम का सहारा भी हिंदुओं को लेना पड़ता है।गरीब हिदुओं को नौकरी के लिए मुसलमान भी बनना पड़ता है।अनेक लोगों को खेत व भट्टे पर मजदूरी के लिए रखा जाने के अतिरिक्त घरेलू नौकर भी बनाया जाता है।
कुछ वर्ष पूर्व (दिसम्बर 2011) प्राचीन चंडी देवी मंदिर, डासना (ग़ाज़ियाबाद ) में आये लगभग 27 पाकिस्तानी हिन्दू परिवारों से मेरी व्यक्तिगत चर्चा हुई थी। उनका दुखड़ा सुनकर मानवता भी शर्मसार हो जाती है। वे अपनी लड़कियों को घर से बाहर ही नहीं निकलने देते क्योंकि वहाँ के मुसलमान हिन्दू लडकियों को छोड़ते ही नहीं। हिन्दू बच्चों को स्कूलों में अलग बैठा कर इस्लाम की शिक्षा दी जाती है।इन बच्चों के लिये पीने का पानी भी उपलब्ध नहीं होता।इसलिए अधिकांश बच्चे स्कूल ही नहीं जाते।वहाँ गरीब हिन्दू मज़दूरों को जंजीरों से बाँध कर रखते हैं और मज़दूरी पर जाते समय जंजीरें खोल दी जाती हैं और सायं वापसी होने पर पुनः बाँध दी जाती हैं। इनको मारना-पीटना व भूखा-प्यासा रखना आम बात है। लंबे समय तक मजदूरी भी नही देते। उनका पीड़ित ह्रदय इतना अधिक व्यथित था कि जब उन्हें दिसम्बर की ठिठुरती ठंडी रात में मंदिर प्रांगण से बसपा के शासन के समय तत्कालीन गाजियाबाद के जिलाधिकारी द्वारा वापस दिल्ली भेजने के आदेश का पालन हुआ तो वे बार-बार रोते-बिलखते यही कह रहे थे कि “भारत माता की गोदी में मर जाएंगे पर पाकिस्तान नहीं जायेंगे”। मैं और मेरे साथी आज सात वर्ष बाद भी उस वेदना को भूलें नही है।
कुछ वर्ष पूर्व पाकिस्तान में हुए एक सर्वे से पता चला कि लगभग 95% मंदिरों व गुरुद्वारों को मदरसे व दरगाहों में परिवर्तित कर दिया गया , कहीं कहीं गोदाम, दूकान,स्कूल व सरकारी कार्यालय भी बनाये गये। कुछ मंदिरों में पुजारियों को मुस्लिम टोपी पहननी पड़ती है। पूजा-अर्चना धीमी आवाज में बंद दरवाजों में की जाती है। अगर हिन्दू ईद मनाएँगे तभी होली-दिवाली मनाने की सुविधा होती है। मुस्लिम घृणा यहाँ तक हावी है कि शव दहन के समय मुसलमान ईंट-पत्थर मार कर जलती चिता को बुझा देते हैं और अधजले शव को नाले में फेंक देते हैं। इतनी अधिक धार्मिक घृणा क्यों ? पाकिस्तान की पाठय-पुस्तकों में बालकों को आरम्भ से ही कट्टर इस्लाम पढाये जाने के अतिरिक्त यह भी बताया जाता है कि हिन्दू बुरी कौम है व भारत एक क़ाफ़िर देश है। जिसका दुष्परिणाम है कि हिन्दू बच्चों को क़ाफ़िर कुत्ता कह कर पुकारा जाता है। यह और भी दुःखद है कुछ वर्ष पूर्व हुए एक अमरीकी संगठन के सर्वे के अनुसार हर चार पाकिस्तानियों में से तीन भारत के विषय में नकारात्मक विचार रखते हैं।
भारतवासियों को आज चिंतन करना होगा कि विभाजन के समय पाकिस्तान में ही रुक कर रहने वाले स्वाभिमानी हिन्दुओं का अपने धर्म में बने रहने के लिये और कितने वर्षों तक मुस्लिम अत्याचारों से जूझना पड़ेगा? इस शतकों पुरानी मानवविरोधी धर्मांध विभीषिका के समाधान के लिये कुछ ठोस उपाय आज सभ्य समाज की प्रमुख आवश्यकता है। अतः भारत सहित विश्व के समस्त मानवाधिकारवादियों को पाकिस्तान, बंग्ला देश व कश्मीर आदि में हो रहें लाखों हिंदुओं पर वीभत्स मुस्लिम अत्याचारों के विरुद्ध और उनके मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक बड़ी कूटनीतिक पहल करनी होगी।
विनोद कुमार सर्वोदय
(राष्ट्रवादी चिंतक एवं लेखक)