हैदराबाद में एक महिला के साथ हुए बलात्कार के प्रकरण ने देश को एक बार फिर सोचने के लिए बाध्य कर दिया है कि हम 21वीं सदी में रहकर भी महिलाओं के प्रति कितने अधिक बर्बर होते जा रहे हैं ? यद्यपि हम अपने आप को ‘सभ्य समाज ‘ का एक व्यक्ति होने का दंभ भरते हैं , परंतु सच यह है कि आज का तथाकथित सभ्य मानव सभ्यता के उस दौर से भी नीचे गिर चुका है , जिसे हम 14 वीं शताब्दी का ‘जंगली काल ‘ कहते हैं । हैदराबाद की और इससे पूर्व की अनेकों घटनाओं ने यह सिद्ध कर दिया है कि मनुष्य अभी भी 14 वीं शताब्दी के बर्बर काल में ही जी रहा है । यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि आज भारत वर्ष में 95000 से अधिक बलात्कार के केस न्यायालयों में लंबित हैं । स्थिति तब और भी अधिक पीड़ादायक हो उठती है , जब पता चलता है कि भारतवर्ष में प्रत्येक एक घंटे में 22 बलात्कार के केस होते हैं ।
महिलाओं पर भारतवर्ष में हो रहे अत्याचारों पर यदि विचार किया जाए तो पता चलता है कि स्थिति बहुत ही अधिक भयानक हो चुकी है । राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि महिलाओं को सुरक्षा उपलब्ध कराने के उपरांत भी 2014 में प्रतिदिन 100 महिलाओं का बलात्कार हुआ और 364 महिलाएं यौनशोषण का शिकार हुईं । रिपोर्ट के अनुसार 2014 में केंद्र शासित और राज्यों को मिलाकर कुल 36735 बलात्कार के मामले पंजीकृत हुए । सरकारी स्तर पर चाहे कुछ भी प्रयास किए जा रहे हैं और चाहे सरकार अपनी कितनी ही पीठ थपथपा रही हों , पर सच यही है कि भारतवर्ष में प्रत्येक वर्ष महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार और बलात्कार के केस निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं ।
तथ्य यह भी है कि वर्ष 2004 में बलात्कार के कुल 18233 मामले दर्ज हुए , जबकि वर्ष 2009 में यह आंकड़ा बढ़कर 21397 हो गया । इसी तरह वर्ष 2012 में 24923 मामले दर्ज किए गए और 2014 में यह संख्या 36735 हो गयी । इन आंकड़ों से पता चलता है कि 2014 का आंकड़ा वर्ष 2004 की अपेक्षा दोगुना है । राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि पिछले वर्षों के रिकार्ड के अनुसार महिलाओं के लिए मध्यप्रदेश सबसे अधिक असुरक्षित राज्य के रुप में उभरा है । पिछले वर्ष यहां सबसे अधिक 5076 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए । इसी तरह राजस्थान में 3759, उत्तरप्रदेश में 3467, महाराष्ट्र में 3438 और दिल्ली में 2096 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए । सामान्यतः राजनीतिज्ञों द्वारा बिहार में जंगलराज की बात कही जाती है , लेकिन उक्त रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि यह राज्य महिलाओं की सुरक्षा के मामले में मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और दिल्ली से कहीं अधिक अच्छा है । आंकड़ों से स्पष्ट हुआ है कि 2014 में बिहार में बलात्कार के कुल 1127 मामले पंजीकृत हुए ।
सामान्य रूप से बलात्कार के कारणों में अशिक्षा को भी उत्तरदायी माना जाता है । परंतु सच यह है कि ऐसा भी नहीं है । तथाकथित सुशिक्षित लोग महिलाओं के प्रति कहीं अधिक हिंसक और बर्बर दिखाई दे रहे हैं । संपूर्ण साक्षरता के लिए जाना जाने वाले राज्य केरल में भी महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं । यहां पिछले वर्ष 1347 महिलाओं के साथ बलात्कार के मामले पंजीकृत किए गए ।
वास्तव में हमारे देश की शिक्षा प्रणाली इस सबके लिए अधिक उत्तरदायी है । इस शिक्षा ने मानव को मानव न बनाकर दानव बनाने का कार्य किया है । क्योंकि यह व्यक्ति को सुशिक्षित और सुसंस्कारित न बनाकर उसे ‘ भेड़िया ‘ बनाती जा रही है। क्योंकि इसका आधार भौतिकवाद को बढ़ावा देना है । भौतिकवाद मनुष्य के भीतर की आग को शांत नहीं करता , जबकि आध्यात्मवाद मानव को भीतर से पवित्र बनाता है । शिक्षा का यही उद्देश्य भी होता है कि वह व्यक्ति को भीतर से पवित्र बनाएं ।
दुर्भाग्यवश भारत की सरकारों ने 1947 के पश्चात से आज तक कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया कि मानव ह्रदय कैसे पवित्र बने और कैसे वह संपूर्ण समाज की बहन बेटियों को अपनी बहन बेटी मानकर उनका सम्मान करना सीखें ? – जब तक संस्कार आधारित शिक्षा इस सोच को लेकर आगे नहीं बढ़ेगी , तब तक चाहे भारतवर्ष में कितने ही कानून बनते रहें और चाहे कितनी ही कड़ाई के दंड दिए जाते रहें , महिलाओं पर हो रहे अत्याचारों में कमी नहीं आ सकेगी ।
अपने साथ हो रहे अत्याचारों के लिए महिला स्वयं भी उत्तरदायी है । यह बहुत ही अधिक कष्टप्रद है कि जेएनयू जैसे संस्थान में प्रतिदिन हजारों की संख्या में कंडोम मिलते हैं । इसका अभिप्राय है कि वहां पर अनैतिकता को प्रोत्साहित करने में महिला स्वयं महत्वपूर्ण योगदान दे रही है । माना कि हर व्यक्ति का अपना निजी जीवन होता है , परंतु यह निजी जीवन ही व्यक्ति के सार्वजनिक जीवन की नींव या आधार होता है । व्यक्ति निजी जीवन में जैसा है सार्वजनिक जीवन में उसकी वैसी ही छाया अपने आप पड़ने लगती हैं । यदि व्यक्ति का निजी जीवन बहुत शांत , संयमित , संतुलित और मर्यादित है तो वह सार्वजनिक जीवन में भी इन्हीं दिव्य गुणों का प्रकाश स्तंभ बनकर स्थापित होगा । यही कारण है कि हमारे ऋषि मुनि व्यक्तिगत जीवन को उपरोक्त गुणों से आभूषित करने की इच्छा रखते थे । शिक्षा पर महिलाओं का समान अधिकार होता था और उन्हें परिवार रूपी संस्था को बनाने , संवारने और सुधारने का महत्वपूर्ण दायित्व दिया जाता था । महिलाओं के लिए मानव को दानव बनने से रोकने का हर संभव प्रयास किया जाता था। यही कारण था कि पुरुषों को शिक्षा के लिए भी महिलाओं से अलग भेजा जाता था । साथ ही घर और घेर में भी अंतर रखा जाता था । जिससे कि मानव व्यभिचारी न बनने पाए ।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट ‘हिडेन इन प्लेन साइट’ से स्पष्ट हुआ है कि भारत में 15 वर्ष से 19 वर्ष की अवस्था वाली 34 प्रतिशत विवाहित महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने अपने पति या साथी के हाथों शारीरिक या यौन हिंसा झेली हैं । इसी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 15 वर्ष से 19 वर्ष तक की अवस्था वाली 77 प्रतिशत महिलाएं कम से कम एक बार अपने पति या साथी के द्वारा यौन संबंध बनाने या अन्य किसी यौन क्रिया में बलात्कार का शिकार हुई हैं । इसी प्रकार 15 वर्ष से 19 की अवस्था वाली लगभग 21 प्रतिशत महिलाएं 15 वर्ष की अवस्था से ही हिंसा झेली हैं ।
बलात्कारों के विषय में यह भी एक तथ्य है कि जाति , संप्रदाय , क्षेत्र , प्रांत , भाषा आदि के भेदभाव भी भारत में मानव को दानव बना रहे हैं । जिन मूर्खों ने भारत में विविधताओं में एकता को स्थापित करने की बात कही है और इन विविधताओं को बनाए रखने की वकालत करने में किसी प्रकार की कमी नहीं छोड़ी है , उन्हें यह कौन समझाए कि ये विविधताएं भी पुरुषों को महिलाओं पर अत्याचार करने के लिए प्रोत्साहित करती हैं । जहां जिस जाति , संप्रदाय , वर्ग भाषा के लोगों का वर्चस्व होता है वहाँ वह विपरीत जाति , संप्रदाय आदि की महिलाओं पर अत्याचार करना अपना अधिकार मान लेते हैं ।
बात स्पष्ट है कि मानव को मानव बनाने के लिए इन जातीय या सांप्रदायिक या भाषागत विविधताओं को समाप्त करना ही होगा । मानव मानव बने और मानव को मानव बनाने वाली शिक्षा देश में लागू हो , सांप्रदायिक शिक्षा दिए जाने पर तुरंत प्रतिबंध लगे , साथ ही महिला भी अपने आप को संयमित , संतुलित व मर्यादित रखे । लज्जा नारी का आभूषण है – इस सत्य को स्वीकार कर अपनाए , तभी हम महिलाओं पर अत्याचारों को समाप्त कर सकते हैं। आधुनिकता के नाम पर निर्लज्ज भौतिकवाद में डूब जाना और अपने आपको स्वयं ही पुरुष के लिए उसका आहार बनाकर प्रस्तुत कर देना नारी को असुरक्षित बना रहा है । जिसे योग्या बनना था , वह स्वयं ही भोग्या बन गई है । उसे यह सोचना और स्पष्ट करना ही होगा कि वह टीवी आदि में विज्ञापन की वस्तु नहीं है । वह ‘ मस्त मस्त चीज ‘ भी नहीं है और ना ही वह किसी का आहार है , अपितु वह संसार में विधाता की श्रेष्ठतम रचना है , जो संसार के सृष्टि चक्र को चलाने के लिए विधाता ने स्वयं रची है ।
पुरुष वर्ग को भी सोचना समझना होगा कि वह धर्म की मर्यादा की स्थापना के लिए संसार में आया है और धर्म की मर्यादा इसी में है कि वह ऐसा कोई भी कार्य न करें जिससे सामाजिक संतुलन बिगड़े या समाज में अस्त-व्यस्तता या अनैतिकता का प्रचार-प्रसार हो । मनुष्य को अपना अंतिम ध्येय अर्थात मोक्ष प्राप्ति सदैव ध्यान में रखना चाहिए । हमें यह सदा ध्यान रखना चाहिए कि संस्कार ही देश को बदल सकते हैं , सरकार नहीं ।
यह हमारी संस्कृति और शिक्षा का आधार है। इसी आधार को सरकारें यदि स्थापित करने की दिशा में ठोस कदम उठाएं और सारा समाज इसे एक आंदोलन के रूप में स्वीकार कर ले तो नारियों का सम्मान सचमुच इस देश में सर्वोपरि हो जाएगा।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत