आचार्य श्री विष्णु गुप्त
मैं भेंड नहीं हूं, मैं शियार भी नहीं हूं , मैं गंवार नहीं हूं , मैं कानून से भी अनभिज्ञ नहीं हूं , मैं संविधान से भी अनभिज्ञ नहीं हूं। मैं भविष्य के खतरे से भी अनभिज्ञ नहीं हूं, मै पुलिस को सजा देने की कुप्रवृति का समर्थन नहीं कर सकता,
मै राजनेता भी नहीं हूं जो विश्वास खोने की डर से भेड-शियार की श्रेणी में खडा हो जाउंगा। भेड-शियार संस्कृति के लोग धननजय की फांसी को भी नहीं जानते? अनुसंधान करना मात्र पुलिस और सरकार का काम है, सजा देने का काम संविधान में प्रदत्त अधिकार के तहत न्यायालय का है।
भविष्य के खतरे को भेड-शियार संस्कृति के लोग क्या समझेंगे, भविष्य में मानवाधिकार की कब्र किस प्रकार बनेगी, लड़कियां कितनी असुरक्षित होंगी, इसका अदंाजा भी नही लगाया जा सकता है। पुलिस अधिकतर मामलों में पैसे लेकर पक्षपात करती है, न्याय दिलाने में हीलाहवाली करती है। पुलिस की ऐसी प्रवृतियां बढेगी तो इसका दुष्प्रभाव निर्दोष और कमजोर वर्गो पर पडेगा। आज अधिकतर मुकदमों में बडे लोग पैसे पर पुलिस को प्रभावित कर कमजोर और निर्दोष लोगों को जेल भेजवा देती है।
अब आते हैं लडकियों की सुरक्षा पर। ऐसी प्रवृति से लडकियां कितनी असुरक्षित होंगी, इसका आकलन भी भेड-शियार संस्कृति के लोग नहीं कर सकते हैं। बलात्कारी अब बलात्कार के बाद लडकियों की जिंदगी ही लेना चाहेगा, लडकियों को मार देना ही अपना बचाव समझेगा, क्योंकि जब बलात्कार की सजा मौत होगी और हत्या की सजा भी मौत होगी तो फिर बलात्कारी पीडीत लडकी को मारना ही पंसद करेगा, अधिकतर बलात्कार के मामलों में साक्ष्य जुटाना कठिन होता है, हत्या के बाद तो साक्ष्य जुटाना और भी कठिन व दुरूह होता है। अपराधी सबसे पहले साक्ष्य ही मिटाने की कोशिश करता है। हैदराबाद की पीडिता को साक्ष्य मिटाने की नीयत से ही जलाया गया था।
सरेआम फांसी की मांग करने वाले भेड-शियार संस्क्ति के लोग धननजय की फांसी को भी नहीं जानते? एक लडकी के बलात्कार के बाद हत्या के आरोपी धननजय की फांसी हुई थी, धननजय का परिवार गरीब था इसलिए उसे न्याय नहीं मिला, ऐसी मान्यता बनी थी। क्या धननजय की फांसी के बाद भी बलात्कार की घटना रूकी? बलात्कार की अधिकतर मामलों में किसी न किसी प्रकार की साजिश और ब्लैकमैलिंग भी एक पहलू शामिल होता है, साथ-साथ रहने के बावजूद बलात्कार प्रसंग अस्तित्वमान हो जाता है। किसी को एक साल बाद तो किसी को दो साल बाद, किसी अन्य को पांच साल बाद बलात्कार की घटनाएं याद आती हैं।
मुस्लिम देशों में बलात्कार की बर्बर सजा है, अमेरिका और यूरोप मे बलात्कारियों की कडी सजा है, फिर भी मुस्लिम देशों में भारत से भी ज्यादा बलात्कार की घटना होती है, बलात्कार पीडिता को ही तीन गवाह उपस्थित करना पडता है, यूरोप में लगभग निष्पक्ष अनुसंधान होता है, त्वरित सजा भी होती है फिर भी बलात्कार की घटना रूकती नहीं है। भारत में भी आगे बलात्कार की घटना रूक जायेगी, ऐसी कल्पना सिर्फ भेड-शियार संस्कृति के लोग ही करेंगे।
फिर बलात्कार रूकेगा कैसे, यह हैवानियत रूकेगी कैसे? इसके लिए सरकार, पुलिस और न्यायालय ही समाधान नहीं कर सकती है, समाज और परिवार को भी इसके लिए जिम्मेदार है। समाज और परिवार को सभ्य करने की जिम्मेदारी किसकी है। असभ्यता और अपसंस्कृति फैलाने वाले लोग कौन हैं, इंटरनेट पर बलात्कार के सीन और सेक्स परोसने वाले-देखने वाले कौन है। फिल्मों में जब एक हीरो एक लडकी को पटाने के लिए सरेआम बाजार, सडक पर लडकी को छेडता है तो फिर कमजोर और अनपढ तथा कुसंस्कृति में पले-बढे हैवान लोगों के बीच हैवानियत पनपती है। हैदराबाद पुलिस की इस बर्बर हत्या को अंजाम देने का समर्थन करने वाले लोग क्या बता सकते हैं कि वे फिल्म देखना बंद करेंगे, इंटरनेट पर सेक्स साइड देखना बंद करेंगे?
यह मानने में हर्ज नहीं है कि हैदराबाद की बलात्कार की घटना हैवानियत को भी पार कर गयी थी, ऐसी हैवानियत तो मनुष्यता की कल्पना से भी परे हैं, मनुष्यता पर से विश्वास को हटाने के लिए बाध्य करती है। जिस प्रकार की साजिश हुई और बलात्कारियों का मांइडसेट कितना गंदा था,कितना अपराधिक था यह स्पष्ट है। भारतीय कानून में इसकी सजा सिर्फ और सिर्फ मौत ही हो सकती थी। पुलिस-सरकार को विश्वास था कि ये सही में अपराधी हैं तो फिर इन्हें न्याय की कसौटियों तक इंतजार करना चाहिए था।
क्या सजा देने का काम पुलिस को है? क्या इसी प्रकार से पुलिस सजा देने लगी, निर्दोष को पकड कर गोलियों से उड़ाने लगी तो फिर हम अपने देश और अपने समाज में कानून और संविधान के शासन की उम्मीद कर सकते हैं, फिर हम माॅब लिचिंग की घटनाओं का विरोध कैसे करेंगे, फिर हमें माॅब लिंचिंग की घटनाओ को भी सही ठहराना होगा, मान्य स्वीकार करना होगा? माॅब लिंिचग की अधिकतर घटनाओं में भीड सजा दे देती है, भीड का तर्क होता है कि पुलिस कुछ करती नहीं है, पुलिस अनुसंधान ठीक ढंग से करती नहीं है, पुलिस पैसे लेकर अनुसंधान कमजोर कर देती है, इसलिए आरोपी बरी हो जाते है। इस कारण हम आरोपी को माॅब लिचिंग करते हैं। माॅब लिंचिग ने देश में किस प्रकार से शोर मचायी है, राजनीतिक गर्माहट को आधार दी है, यह भी स्पष्ट है।
हैदराबाद की पुलिस की इस बर्बर कुकृत्य का समर्थन करने या फिर न्यूज चैनलों की सनसनी का समर्थन करने की जगह उन सभी विषयों पर विचार करने की जरूरत है और समाधान के प्रति एक अभियान चलाने की जरूरत है जो एक बलात्कारी ही नहीं बल्कि तेजाबी हमले के दोषियों सहित अन्य हैवानियत से जुडी घटनाओं के आरोपितयों को बचाने के लिए दोषी हैं। अब दोषी कौन हैं, यह भी देख लीजिये। घटना को सत्य और असत्य आधार देने वाली पुलिस, क्योंकि पुलिस पर ही अनुसंधान करने और घटना की निष्पक्षता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी होती है, इसके बाद गवाहों की ईमानदारी और निष्पक्षता, इसके बाद न्यायालय की जिम्मेदारी बनती है। बलात्कार की घटनाओं पर फास्ट कोर्ट भी बने हैं। पर फास्ट कोर्ट भी पुलिस और गवाहों की बईमानी से लाचार हो जाती है। फास्ट कोर्ट या फिर अन्य कोर्ट भी महंगे और नामी वकीलों और अभियुक्तों की जेब की गर्मी से प्रभावित हो जाती है। दुष्परिणाम हमारे सामने हैं। पुलिस, जज और गवाह भी इसी समाज की देन है, इसी समाज में रहते हैं, जिस समाज में बलात्कारी पलते है और जो समाज हैदराबाद पुलिस की इस हैवानियत का समर्थन कर रहा है।
जब महात्मा गांधी की हत्या के अभियुक्त को भी अपने बचाव में लंबा समय दिया गया, जब आतंकवादी और असंख्य लोगों की मौत की नींद सुलाने वाले कसाब को निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक बचाव का मौका प्रदान किया गया। जबकि दुनिया लाइव देखी थी कि कसाब ने किस प्रकार से मुबंई में आम लोगों का खून बहाया था और वह किस प्रकार से पाकिस्तानी हथकंडा था तथा उस पर मुस्लिम जेहादी मानसिकता किस प्रकार से हावी थी। सबसे बडी बात यह है कि घटना पर ही न्याय करने की पुलिसिया नीति से हत्यारा और बलात्कारी तो तुरंत समाप्त हो जाता है, वह जेलों में तिल-तिल कर सडता नहीं है।आज तिहाड जेल में निर्भया कांड के बलात्कारी तिल-तिल कर सड रहे है और अपनी फांसी का इंतजार कर रहे हैं।
निष्कर्ष यह है कि हैदराबाद पुलिस की प्रति हिंसा, प्रति हैवानियत कानूनी, सभ्यतागत की कसौटी पर समर्थन देना एक घातक और आत्मघाती संहारक प्रवृति है, इसके भविष्य के खतरे को पहचाना जाना चाहिए। अगर आपको बलात्कार की घटना रोकनी है तो फिर हमें समाज और परिवार में संस्कार लाना होगा, समाज और परिवार में बलात्कार जैसे गंदगी को दूर करने के लिए स्वच्छता अभियानरत होना होगा, बलात्कारियों को घृणा की दृष्टि से भी देखना होगा, पुलिस, जज और वकील भी इसी समाज की देन है, इसलिए हमें अच्छे ईमानदार पुलिस, अच्छे ईमानदार जज-वकील भी पैदा करना होगा जो बलात्कारियों ही नहीं बल्कि अन्य प्रकार के हैवानों की सजा भी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ सुनिश्चित करा सकें।
मुख्य संपादक, उगता भारत