स्पष्ट तौर फर्जी सदस्यता और फर्जी कार्यकर्ताओं के दुष्परिणाम झेल रही है भाजपा। राज्यों में फर्जी कार्यकताओं और फर्जी सदस्यता का दुष्परिणाम यह निकल रहा है कि प्रदेशों में भाजपा अपनी साख लगातार खो रही है, भाजपा की सरकारें दफन भी हो रही हैं। राज्यों में भाजपा का जनाधार और लोकप्रियता लगातार गिर रही है,सिमट रही है, भाजपा की सदस्य संख्या फर्जी साबित हो रही है, सदस्य संख्या के बराबर भी भाजपा को मत प्राप्त नहीं हो रहे हैं।
राज्यों में दफन होती भाजपा सरकारें, राज्यों में गिरती भाजपा की साख, राज्यों में गिरती भाजपा की लोकप्रियता क्या मोदी के लिए खतरे की घंटी मानी जानी चाहिए? नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोडी भी राज्यों में भाजपा की सफलता क्यों नहीं सुनिश्चित कर पा रही है? क्या भाजपा को अपनी सदस्य संख्या को फिर से जांचने-परखने की जरूरत है? क्या भाजपा के प्रादेशित नेता अक्षम, जनविरोधी और नकारा हैं? क्या उनमें जन परख की कमी है, क्या उनमें जनदूरर्शिता नहीं हैं?
क्या भाजपा के प्रादेशित नेता नरेन्द्र मोदी सरकार की नीतियों और उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने में असफल साबित हो रहे हैं? क्या भाजपा की प्रादेशिक सरकारें नरेन्द्र मोदी की केन्द्रीय सरकार के अनुपात में बेहद कमजोर और अक्षम साबित हो रही हैं?
अगर नहीं तो फिर भाजपा की प्रादेशिक सरकारें फिर से सत्ता में लौट क्यों नहीं पा रही हैं, अपने बल पर बहुमत हासिल करने की वीरता क्यों नहीं सुनिश्चित कर पा रही हैं? जनता प्रादेशिक भाजपा की सरकारों को लगातार क्यों खारिज कर रही है? ये सभी प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण हैं पर इन सभी प्रश्नों पर भाजपा की गंभीरता अभी तक सामने नहीरं आ रही है, भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी अभी तक इस दृष्टिकोण पर कोई साफ समझ विकसित नहीं कर पा रहा है जबकि भाजपा को इस दृष्टिकोण पर मंथन करने की जरूरत है? भाजपा को इस निष्कर्ष को खोजना होगा कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह के चमत्कारिक छवि के बावजूद राज्यों में भाजपा क्यों हार रही है, सरकार बनाने के लिए भाजपा को विपक्षी दलों से सहयोग ही लेना नहीं पड रहा है बल्कि सिद्धांत और नैतिकता के साथ समझौता भी करना पड रहा है। यह भी बात बैठ रही है कि भाजपा सत्ता में आने के लिए अपने सिद्धांत और नीतियों के साथ समझौता कर रही है और नैतिकता तथा शुचिता से भाजपा लगातार पीछे हट रही है?
उदाहरण देख लीजिये। भाजपा के जनाधार और भाजपा की जन पैठ में गिरती साख स्पष्ट हो जायेगा। सबसे पहले भाजपा एक साथ तीन राज्यों से सत्ता से बाहर हो गयी। ये तीनों राज्य प्रमुख रहें हैं जहां पर भाजपा का जनाधार जनसंघ के कार्यकाल से मजबूत रहा है। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगंढ में भाजपा की घोर पराजय हुई और इन प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार बनी। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ के संबंध में भाजपा यह कही कि उनका क्षरण लंबे शासन का प्रतीक है, लंबे समय तक शासन में रहने के कारण थोडी जनता की नाराजगी थी, जनता बदलाव चाहती थी, इसलिए हम हार गये। यह तर्क छत्तीसगंढ और मध्य प्रदेश के लिए ठीक-ठाक माना जा सकता है पर राजस्थान के बारे में कौन सा तर्क भाजपा के पास था? राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार तो सिर्फ पांच वर्ष ही थी फिर भी भाजपा की घोर पराजय हुई, कमजोर कांग्रेस सत्ता हासिल कर ली। राजस्थान की पराजय भाजपा के लिए खतरे की घंटी थी। फिर भी भाजपा इस खतरे की घंटी को नहीं सुनी और फिर अपनी प्रादेशिक सरकारों को जनपक्षीय बनाने की कोई स्पष्ट दिशानिर्देश सुनिश्चित करने में भी असफल साबित हुई है।
राजस्थान में वसुंधरा राजे सरकार के हस्र से भाजपा कुछ सबक लेती तो फिर हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा को ऐसी अपमान जनक स्थिति से गुजरने के लिए बाध्य नहीं होना पडता? हरियाणा में भाजपा अपना पिछले आकंडे तक भी नहीं पहुंची, बहुमत से भी काफी पीछे रह गयी। चैटाला परिवार से निकली नयी पार्टी के साथ भाजपा को गठबंधन करने के लिए मजबूर होना पडा। हरियाणा में गठबंधन दल की शर्तो को स्वीकार करने के लिए भाजपा को मजबूर होना पडा। सबसे बडा आघात तो भाजपा को महराष्ट्र में लगा है। महराष्ट्र कितना महत्वपूर्ण प्रदेश है, यह कौन नहीं जानता है? महराष्ट्र के मुंबई को देश का आर्थिक राजधानी कहा जाता है। महाराष्ट्र से ही दक्षिण की ओर राजनीतिक संदेश जाते हैं। भाजपा दक्षिण के राज्यों में अभी भी बहुत कमजोर है, दक्षिण के राज्यों में भाजपा मजबूत होने की लगातार कोशिश की है। इन कोशिशों के कारण कर्नाटक और त्रिपुरा में भाजपा की सरकार भी बनी है। पर दक्षिण के महत्वपूर्ण राज्यों जैसे तमिलनाडु और केरल में भाजपा आज भी अपना जनाधार मजबूत नहीं कर सकी है, इन दोनों राज्यों में भाजपा अपना साथ साझेदार खोजने में खोजने में विफल रही है। महाराष्ट्र में शिव सेना के बगावत की स्थिति में भाजपा के पास कोई वैकल्पिक राजनीतिक व्यवस्था नहीं होनी भी पराजय के कारण रही है। फडनवीस की जल्दीबाजी और अजित पावर पर अनावश्यक विश्वास का दुष्परिणाम भाजपा के सामने है। महाराष्ट्र में भाजपा को न केवल अपमान झेलना पडा बल्कि जगहंसाई भी कम नहीं हुई है, भाजपा पर सत्ता के लिए जाल-फेरब करने के साथ ही साथ भ्रष्टचार को गले लगाने जैसे आरोप भी लगे।
भजपा प्रादेशिक सरकारों के नेतृत्वकर्ताओं की जनविरोधी नीतियों-कार्यक्रमों तथा अहंकार की शिकार हो रही हैं। राजस्थान में वंसुधरा राजे कितनी अंहकारी थी, उसने केन्द्रीय नेतृत्व को ही चुनौती दे डाली। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व भी वसुधरा राजे के सामने झुक गयी। वंसुधरा राजे ने अपने राज में सैकडों मंदिरों को जमींदोज करायी, हिन्दुओं को अपमानित करने के लिए कोई कसर नही छोडी थी। वसुंधरा राजे की हिन्दू विरोधी नीति के कारण संघ को भी सडकों पर उतरने के लिए बाध्य होना पडा था। हरियाणा में खट्टर की सरकार अच्छी होने के बावजूद प्रांतीय समीकरण को साधने के लिए राजनीतिक वीरता नहीं दिखा पायी। राबर्ट बढेरा और हुडा के भ्रष्टचार को अंजाम तक नहीं पहुंचा सकी। हरियाणा की जनता ने रार्बट बढेरा और हुड्डा के भ्रष्टचार के खिलाफ भाजपा को सत्ता सौंपी थी। महाराष्ट्र में भी देवेन्द्र फडनवीस भी मजबूत सरकार नहीं दे पाये। देवेन्द्र फडनवीस से राष्ट्रवादियों की बडी उम्मीद थी। मुबंई के फिल्मी दुनिया बाजार में पाकिस्तानी कलाकारों और जिहादियों पर अंकुश लगाने की मंशा राष्ट्रवादियों ने पाली थी। इसके अलावा शिव सेना के बागी तेवर नीतियों पर नियंत्रण की जरूरत थी। शिव सेना सरकार में थी और सरकार के खिलाफ भी लगातार सक्रिय थी। इसलिए भाजपा को गठबंधन में चुनाव लडने के साथ ही साथ शिव सेना के खिलाफ वैकल्पित नीति की जरूरत थी। अगर फडनवीस की जगह कोई दूसरा मुख्यमंत्री होता तो वह पांच सालों में शिव सेना की कब्र खोद देता।
प्रादेशिक चुनावों में भाजपा की हार का सबसे बडे दो कारण हैं। एक फर्जी सदस्यता और दूसरा फर्जी कार्यकता। भाजपा ने मिस्ड काल के आधार पर सदस्यता बांटे हैं। सदस्यता बांटते समय भाजपा ने यह नहीं देखी कि सदस्यता लेने वाले अपराधी है, फर्जी हैं, जिहादी है, राष्ट्रविरोधी है। एक उदाहरण यहां देखना बहुत ही जरूरी है। महाराष्ट्र में भाजपा की सदस्य संख्या एक करोड 48 लाख है। पर पिछले महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में भाजपा को मात्र एक करोड 34 लाख वोट मिले। यानी कि 14 लाख सदस्यों ने भाजपा को वोट नहीं दिया। अगर सभी सदस्य भाजपा को वोट दे दिये होते तो फिर भाजपा को महाराष्ट्र में सिर्फ 105 ही नहीं बल्कि लगभग दौ सौ के लगभग सीटे मिलती। इस स्थिति में भाजपा को महाराष्ट्र में अपमान जनक राजनीति का दुष्परिणाम नहीं झेलना होता। यही स्थिति हरियाणा की रही है। केन्द्र और प्रादेशित सत्ता में विराजमान होने के कारण भाजपा के अंदर में फर्जी कार्यकता और फर्जी नेताओं की बाढ आयी है। फर्जी कार्यकर्ता और फर्जी नेता का अर्थ यहां सिर्फ सत्ता सुख भोगने और सत्ता की मलाई खाने के बाद किनारा कर लेने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं से है। फर्जी कार्यकर्ता और फर्जी नेता के चपेट आने वाले भाजपा के बडे प्रादेशिक और बडे केन्द्रीय नेता भी समर्पित कार्यकताओं की अनदेखी ही नहीं करते हैं बल्कि अपमानित भी करते हैं। बडे नेता और मुख्यमंत्री, मंत्री सिर्फ फर्जी कार्यकर्ताओं और फर्जी नेताओं से घिरे होते हैं, इन्हीं लोगों को सुनते हैं, समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ता मुख्यंमंत्री, मंत्री तक नहीं पहुच पाते हैं। उपर से नौकरशाही के प्रपंच भी भाजपा के समर्पित और निष्ठावान कार्यकर्ताओं पर चाबूक चलाती है। जिसका दुष्परिणाम अब सामने आ रहा है। जब आप मिस्ड काॅल से फर्जी सदस्य बनाओगे तब उसका दुष्परिणाम भी भाजपा ही भागेगी।
विष्णुगुप्त
मुख्य संपादक, उगता भारत