आर.बी.एल.निगम, वरिष्ठ पत्रकार
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे और संविधान सभा के अध्यक्ष भी थे। लेकिन, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं चाहते थे कि डॉक्टर राजन भारत के राष्ट्रपति बनें। लेकिन नेहरू के विरोध के बावजूद वो 1950, 1952 और 1957 में लगातार तीन बार देश के राष्ट्रपति चुने गए (पहली बार संविधान सभा द्वारा)। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने जब दूसरी बार राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने की इच्छा जाहिर की, तब नेहरू ने आपत्ति जताई। नेहरू चाहते थे कि एक बार 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा करने वाला व्यक्ति दूसरी बार राष्ट्रपति न बने। ये अलग बात है कि खुद नेहरू 1947 से 1964 तक प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे रहे।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को दूसरी बार राष्ट्रपति बनाने के लिए जब हस्ताक्षर अभियान चल रहा था, तब नेहरू उनसे मिलने पहुँचे। उन्होंने ‘एक पुराने दोस्त होने के नाते’ उनसे आग्रह किया कि वो दूसरी बार राष्ट्रपति चुनाव न लड़ें। हालाँकि, डॉक्टर प्रसाद ने उन्हें किसी प्रकार का भरोसा नहीं दिया। वो चुप रहे। कांग्रेस की संसदीय समिति की बैठक हुई। इस बैठक में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद की उम्मीदवारी का सिर्फ़ एक व्यक्ति ने विरोध किया और वो थे जवाहरलाल नेहरू। पार्लियामेंट्री बोर्ड के 6 सदस्यों में से नेहरू अकेले व्यक्ति थे, जो राजेंद्र प्रसाद को फिर से राष्ट्रपति बनाए जाने के ख़िलाफ़ थे।
हालाँकि, मोरारजी देसाई भी ऐसा नहीं चाहते थे लेकिन बीमार होने के कारण वो उस बैठक में हिस्सा नहीं ले रहे थे। आज तक देश के इतिहास में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद के अलावा कोई दूसरी बार राष्ट्रपति नहीं बन पाया। 1957 में जवाहरलाल नेहरू डॉ एस राधाकृष्णन को राष्ट्रपति बनाना चाहते थे। इसी तरह वो 1952 में चक्रवर्ती राजगोपालचारी के पक्ष में थे। लेकिन उन्हें दोनों बार निराशा हाथ लगी। 1949 में जब देश के प्रथम राष्ट्रपति के लिए बीतचीत शुरू हुई, तब नेहरू ने राजगोपालचारी के पक्ष में गोलबंदी शुरू की। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने एक बयान जारी कर जनता को प्रोपेगंडा से बचने की सलाह दी और कहा कि ‘राजाजी’ और उनके बीच राष्ट्रपति बनने के लिए कोई प्रतिद्वंद्विता नहीं है।
दरअसल, नेहरू ऐसा राष्ट्रपति चाहते थे, जो प्रधानमंत्री के इशारे पर काम करे। और यही बात आज तक कांग्रेस की है। वास्तव में डॉ राधाकृष्णन के बाद से राष्ट्रपति पद की गरिमा का हनन होता रहा।
डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष थे। 1950 में राष्ट्रपति भी इसी सभा को चुनना था। ऐसे में, नेहरू ने प्रसाद को चिट्ठी लिखी कि वो इसके लिए राजाजी का नाम आगे करें। उन्होंने लिखा कि वल्लभभाई पटेल भी इसके लिए अपनी सहमति दे चुके हैं। डॉक्टर प्रसाद दुःखी हुए। वो इस बात से निराश हुए कि नेहरू उन्हें ‘आदेश’ दे रहे हैं। उनका मानना था कि वो तो इन सब में पड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे लेकिन जब उन्हें संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया है तो उनकी विदाई भी सम्मानजनक तरीके से होनी चाहिए। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू और पटेल को एक लम्बा-चौड़ा पत्र भेजा।
लेकिन, यहाँ एक बात पता चलती है कि जवाहर लाल नेहरू ने झूठ बोला था। उन्होंने राजगोपालचारी को राष्ट्रपति बनाने के लिए सरदार पटेल की सहमति नहीं ली थी। नेहरू ने बिना पटेल की अनुमति के उनका नाम घसीट दिया था। डॉक्टर प्रसाद की चिट्ठी आने के बाद ये भेद खुला और पटेल इस बात से नाराज़ हुए कि नेहरू ने उनका नाम बिना पूछे इस्तेमाल किया। जब पोल खुल गई तो नेहरू ने डॉक्टर प्रसाद को फिर से पत्र लिख कर बताया कि उन्होंने उनसे जो कुछ भी कहा था, उसका पटेल से कुछ लेना-देना नहीं है। नेहरू ने लिखा कि उन्होंने पूरी तरह अपने बात सामने रखी थी। साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि इसके लिए पटेल से उन्होंने कोई चर्चा नहीं की है।’
इस सन्दर्भ में भारत में हुए प्रथम चुनाव का किस्सा स्मरण हो रहा है, यानि नेहरू अपनी जिद पूरी करने किसी भी सीमा जाने में गुरेज नहीं करते थे। रामपुर से नेहरू के लाडले मौलाना अबुल कलाम आज़ाद मैदान में और आज़ाद के विरुद्ध थे, हिन्दू महासभा के विशन सेठ। विशन ने आज़ाद को 6000 वोटों से पराजित करना, नेहरू को रास नहीं आया। तुरंत, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लब पंत को फोन कर चुनाव परिणाम पलटने को कहा, परिणामस्वरूप पंत ने भी साम दाम दंड भेद अपनाकर विशन को उनके विजयी जलूस से अगवा करवाकर, मतगणना पर लाकर, उन्ही के सामने उनकी वोटें आज़ाद की वोटों में मिलवाकर लगभग 3000 वोटों से जितवा पार्लियामेंट पहुंचवा दिया। कहा जाए, नेहरू ने आने स्वार्थ के लिए लोकतन्त्र और मान-मर्यादा को तार-तार करने का कोई अवसर नहीं गंवाया।
नाराज़ डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को नेहरू ने माफ़ी माँगते हुए लिखा कि वो उनका पूरा सम्मान करते हैं और उनकी भावनाओं को चोट पहुँचाने का कोई इरादा नहीं था। नेहरू को यूके और अमेरिका के 6 दिनों के दौरे पर जाना था। वो चाहते थे कि उससे पहले राजाजी के पक्ष में फ़ैसला हो जाए, तो वो निश्चिंत होकर विदेश दौरे पर जा सकें। संविधान सभा की बैठक में जब उन्होंने ये बातें रखी, तो कई नेताओं ने इस पर आपत्ति जताई। कुछ ने तो इसका कड़ा विरोध किया। माहौल इतना गर्म हो गया कि सरदार पटेल को मामला थामना पड़ा। उन्होंने शांति की अपील करते हुए कहा की कांग्रेस हमेशा की तरह मतभेदों से ऊपर उठ कर निर्णय लेगी।
सरदार पटेल ने तब तक डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को लेकर मन बना लिया था। डॉक्टर प्रसाद के राष्ट्रपति बनने से जुड़े एक सवाल के जवाब में पटेल ने कहा- “अगर दूल्हा पालकी छोड़ कर ना भागे तो शादी नक्की।” पटेल का इशारा था कि अगर डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ख़ुद से पीछे हट कर राजाजी के लिए रास्ता नहीं छोड़ते हैं तो उन्हें राष्ट्रपति बनने से कोई नहीं रोक सकता। वो इस तरह से डॉक्टर प्रसाद के सीधे-सादे व्यवहार का भी जिक्र कर रहे थे। चुनाव हुआ और डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को 5,07,400 वोट मिले। उनकी जीत पक्की जान कर कांग्रेस के 65 सांसदों और 479 विधायकों ने वोट देने की भी जहमत नहीं उठाई।
इसी तरह 1957 में नेहरू डॉ एस राधाकृष्णन के पक्ष में गोलबंदी कर रहे थे लेकिन कांग्रेस डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद को लेकर एकमत थी। राधाकृष्णन ने उपराष्ट्रपति के रूप में इस्तीफा देने का मन बना लिया था लेकिन उन्हें किसी तरह मनाया गया। नेहरू ने तब कहा था कि वो 1947 के बाद से अब तक इतने खिन्न नहीं थे, जितने अब हैं। नेहरू और डॉ प्रसाद के बीच हिन्दू कोड बिल को लेकर भी मतभेद थे। राजन बाबू हिन्दू कोड बिल के विरुद्ध थे। लेकिन संसद द्वारा तीन बार जब बिल को पारित करने पर राजन बाबू की बात आज भी चरितार्थ हो रही है। देखिए कितनी हिन्दू विवाहितों के तलाक हो रहे हैं। डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने काशी में ब्राह्मणों के पाँव धोए थे। नेहरू ने इस पर आपत्ति जताई थी। नेहरू तो यह भी नहीं चाहते थे कि डॉक्टर प्रसाद सोमनाथ मंदिर का शिलान्यास करने जाएँ। परन्तु राजन बाबू नेहरू के विरोधों को दरकिनार कर सोमनाथ मन्दिर का शिलान्यास करने गए।
मुख्य संपादक, उगता भारत