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आज दुनिया में 50 करोड़ से अधिक मधुमेह (डायबिटीज) के रोगी है अकेले भारत में ही यह आंकड़ा 10 करोड़ से ऊपर पहुंच गया है…. प्रत्येक परिवार में आप को कम से कम एक रोगी शुगर का मिल जाएगा… हाई बीपी की तरह शुगर भी साइलेंट किलर है जो शरीर को खोखला करता है, आंखें ,किडनी दिल को कमजोर कर देता है…|
हमारे शरीर में पैंक्रियाज नामक ग्रंथि होती है जो रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन नामक हार्मोन बनाती है जो एक प्रोटीन ही है…. लेकिन शुगर या डायबिटीज पेशेंट में इंसुलिन कम बनता है या बनता ही नहीं है…… जब किसी टाइप 1 टाइप 2 डायबिटीज रोगी के रक्त में शुगर का स्तर अधिक खतरनाक हो जाता है तो ऐसे में बाहरी त्वचा में नस नाड़ियों में इंसुलिन हार्मोन इंजेक्ट किया जाता है…… तब जाकर जीवन बच पाता है|
आदरणीय साथियों कभी आपने विचार किया है यह इंसुलिन पेन इंजेक्शन जो बड़ी-बड़ी फार्मास्यूटिकल कंपनियां डायबिटीज के पेशेंट को उपलब्ध कराती है विशेषकर भारत में यह कहां से आता है…?
यह इंसुलिन आता है, जैविक तौर पर प्राप्त किया जाता है , गाय बैल तथा सूअर जैसे परोपकारी पशुओं के पैंक्रियास से… जिसे बोवाइन इंसुलिन( गाय बैल से),Porsine insulin (सूअर से) बोला जाता है…| इन परोपकार पशुओं से प्राप्त इंसुलिन के कारण करोड़ों लोगों का उपचार किया जा सका है… अब प्रयोगशाला में हुमन इन्सुलिन भी बन रहा है जिसे सिंथेटिक इंसुलिन जेनेटिकली मोडिफाइड इंसुलिन कहा जाता है… लेकिन वह अधिक महंगा है…. गाय से प्राप्त इंसुलिन मनुष्य के इंसुलिन में 3 अमीनो acid का अंतर है… आपको आश्चर्य होगा सूअर व इंसान के इंसुलिन में मात्र 1 अमीनो एसिड का अंतर है… विधाता की बनाई इस सृष्टि में सूअर जैसे घृणित गंदे माने जाने वाले जानवर जो कि वह नहीं है वह तो ईश्वर द्वारा नियुक्त सफाई कर्मचारी है ने यहा गाय माता से बाजी मार ली है….|
लेकिन हम इंसानों ने संप्रदाय पंथ दुराग्रह से ग्रसित होकर पशुओं को संप्रदाय में बांट दिया है…. जगतपति जगदीश्वर परमपिता परमेश्वर की सृष्टि में कोई भी पशु ऐसा नहीं है जो हम मनुष्यों का उपकार न करता हो |
कोई जानवर घृणित कैसे हो सकता है या कोई जानवर किसी संप्रदाय विशेष की बपौती कैसे हो सकता है?
ऐसी परोपकारी जानवरों की सुरक्षा संरक्षण पालन पोषण की जिम्मेदारी हम मनुष्यों की ही है…. मजहबी , किताबों से यह समझ नहीं आएगा इसके लिए वेद व विज्ञान की शरण में जाना पड़ेगा वेद में कहा भी गया है मनुष्य मनुष्य को ही नहीं सभी प्राणी को मित्र की दृष्टि से देखें | यजुर्वेद में तो विशेष अध्याय है जानवरों के ऐसे ही विज्ञान तकनीक संबंधी प्रयोगों के संबंध में…..|
ऋषि दयानंद महाराज ने अपनी पुस्तक गोकरुणानिधि में भी लिखा है कि जैसे आंख का प्रयोजन देखना है.. कोई अपनी आंख को फोड ले तो आंख का प्रयोजन सिद्ध नहीं हो पाएगा मूर्खता है वैसे ही लाभकारी गौ आदि तमाम जानवरों पशुओं से भी हमें वही प्रयोजन लेना चाहिए… ना की जीभ के स्वाद में पढ़कर इनको मार कर खाना चाहिए |
*आर्य सागर खारी* ✍️✍️✍️
मुख्य संपादक, उगता भारत