अंग्रेजों की तोपों के सामने स्वयं खड़ा होने वाला क्रांतिकारी वरयाम सिंह
बात 1857 की क्रांति के बाद की है , जब 1871 में पंजाब में कूका आंदोलन चल रहा था । कूका आंदोलन को नामधारी सिख पंथ के नेता सद्गुरु रामसिंह कूका जी के नेतृत्व में लड़ा गया था । उन्होंने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने और स्वदेशी वस्तुओं को अपनाने की भावना पर बल दिया था । वह गौ हत्या को भारतवर्ष में पूर्णतया बंद कराने के पक्षधर थे ।
इस प्रकार उन्होंने गांधी जी के द्वारा 1920 – 21में लड़े गये असहयोग आंदोलन की शुरुआत 50 वर्ष पूर्व ही कर दी थी । 26 जून 1870 की मध्यरात्रि को कूका वीरों की टोली ने दरबार साहिब के निकट रहने वाले कसाइयों पर अचानक आक्रमण कर दिया। बूचड़खाने में उस समय जितनी भी गाय थीं वे सभी मुक्त करा दी गयीं । कूका वीरों ने रातों-रात अपना काम पूरा कर लिया । कसाइयों के सर धड़ से अलग कर दिए । बाद में इन देशभक्तो पर अमृतसर के न्यायालय में मुकदमा चलाया गया । 31 अगस्त को हाकिमसिंह , फतेहसिंह , लक्षणासिंह सहित कई शूरवीरों को फांसी की सजा तथा लालसिंह व लहरसिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई । सभी वीरों को 15 सितंबर को फांसी की सजा दे दी गई।
अनेकों कूका वीरों को भी पकड़ – पकड़ कर अंग्रेजों ने फांसी की सजा दे दी । जिसको भी अंग्रेज फांसी चढ़ाते थे , वही कूका वीर सहर्ष फांसी को गले लगा लेता था । मलेरकोटला में गोरे आयुक्त ने 65 गौ भक्तों को सार्वजनिक रूप से 19 जनवरी 1872 को तोपों से उड़वा दिया । कईयों को फांसी की सजा भी दी गई तो कुछ को काला पानी की सजा दी गई।
जब इन गौभक्त कूकों को तोपों से उड़ाया जा रहा था तो उनमें वरयामसिंह नामक एक गौभक्त कूका सिक्ख कद में बहुत छोटा था । उसे तोप का गोला मार नहीं सका । क्योंकि छोटा कद होने के कारण यह गोला उसके ऊपर से निकल गया था । वहां उपस्थित एक अंग्रेज ने वरयामसिंह को बचा हुआ देख लिया। तब उसने उस महान देशभक्त और गौ भक्त से कहा कि तुम्हें गॉड ने बचा दिया है ।जाओ माफ किया जाता है। यहां से चले जाओ।
यह सुनकर वह महान गोभक्त मैदान में कुछ ईंट , पत्थर एकत्र कर उन्हें चिन कर उनके ऊपर खड़ा हो गया । तब उसने कहा मैं भी गौ माता की रक्षा के लिए स्वर्ग जाना चाहता हूं । मेरे सर को उड़ाने में देरी मत करो । तब उस देश भक्त को तोप के सामने खड़ा देखकर गोला से उड़ा दिया गया।
ऐसे शौर्य और साहस के प्रतीक क्रांतिकारियों के बारे में ही दिनकर जी ने यह पंक्तियां लिखी हैं :–
” कलम आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां अपनी सारी
छिटकाई जिनने चिंगारी
जो चढ़ गए पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम आज उनकी जय बोल
अंधा चकाचौंध का सारा
क्या समझे इतिहास बेचारा
साक्षी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चंद्र भूगोल खगोल
कलम आज उनकी जय बोल
सचमुच ऐसे ‘ वरयामसिंह ‘ भारत के इतिहास में ही मिल सकते हैं । विश्व के किसी अन्य देश में हमारे किसी वरयामसिंह की बराबरी का शूरवीर खोजना सर्वथा असंभव है।
” कौन बनेगा करोड़पति “- में क्या कभी ऐसा प्रश्न पूछा गया कि – ” ऐसा कौन क्रांतिकारी था जो स्वयं अंग्रेजों की तोपों के सामने खड़ा हो गया था ? ”
याद रखना ऐसा प्रश्न पूछा भी नहीं जाएगा । वहां तो यही पूछा जाएगा कि अमुक फिल्म में कौन हीरो था या कौन हीरोइन थी ? आदि – आदि । षडयंत्र बड़े गहरे हैं , दागदार चेहरे भी बड़े भयानक है ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत