– मुरली मनोहर श्रीवास्तव
महाराष्ट्र की राजनीति हमेशा से अलग तरीके से होती रही है। यहां की राजनीति पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई रहती है। सो, इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला। पहले फडणवीस मुख्यमंत्री बने और 80 घंटे के अंदर ही अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। उसके बाद 40 वर्ष तक राजनीति से दूर रहने वाले फोटोग्राफी के शौकिन उद्धव ठाकरे पहली बार मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ग्रहण करेंगे।
बाल ठाकरे की जीवनकाल में खुद को राजनीति से दूर फोटोग्राफी की दुनिया में मशगुल रखने वाले उद्धव जिन्हें इस बार की महाराष्ट्र की राजनीति का मजा हुआ खिलाड़ी भी कहा जा सकता है। इस पूरे खेल में भाजपा ने अपनी सियासत चलकर भले ही सत्ता को हासिल करनी चाहिए मगर इसमें महाराष्ट्र की राजनीति के घाघ माने जाने वाले शरद पवार को इग्नोर करना भाजपा को महंगी पड़ गई और अपनी ही चाल में उलझकर रह गई भाजपा। नतीजा ये हुआ कि शरद पवार के भतीजे अजीत पवार राजनीतिक विसात बिछाकर उपमुख्यमंत्री भी कुछ घंटो के लिए बन गए और अपने ऊपर कर्ज को भी माफ करवाकर बैकफूट पर आ गए साथ ही अपने घर वापस हो गए। लेकिन महाराष्ट्र की राजनीति में इनके हर चाल पर अब नजर रहेगी क्योंकि अपनी सत्ता के हाथ से निकलने के बाद कहीं यही न उद्धव सरकार के लिए अभिशाप बन जाएं।
वहीं दूसरी तरफ राजनीतिक पंडितों का यह भी मानना है कि कहीं ऐसा तो नहीं भाजपा के अंदरखाने की जानकारी के लिए एनसीपी ने अपना मोहरा बनाकर तो नहीं भेजा था भाजपा खेमे में, इसको लेकर भाजपा को भी मंथन करने की जरुरत है। महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार और ठाकरे परिवार को दरिकनार कर राजनीति की सीढ़िया चढ़ना मुश्किल है।
वर्ष 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दल बदल की नीति लायी जिसके बाद से इस पर विराम तो लगा। मगर आज भी जिन एजेंडों पर चुनाव लड़ते हैं राजनीतिक दल गठबंधन बनाकर अपनी कुर्सी के लिए उसे ताक पर रखकर रिश्तों को खत्म कर एक दूसरे के विरोधी हो जाते हैं। अब ऐसे में वोटर को यह नहीं समझ आता कि वो जिस मुद्दे पर अपने प्रत्याशी या दल को वोट दिया था, कुर्सी की लालच में जनता से किए गए अपने सारे वायदों को भूल अपना पर्सनल फायदा देखने लग जाता है। इस तरह की भूल का खामियाजा आम जनता पांच वर्षों तक भुगतने को विवश हो जाती है।
महाराष्ट्र में जिस शिवसेना ने भाजपा को बूरे दौर में स्थापित करने के लिए सबकुछ किया वहीं कुर्सी के मुहब्बत में 35 वर्षों के रिश्तों को तार-तार करने में शरद पवार सफल हो गए। 40 वर्षों तक जिस सियासत से दूर थे उद्धव ठाकरे आज कुर्सी पर आसीन होने के लिए आगे आ गए हैं। हलांकि वर्ष 2002 में मुंबई नगर निगम की जिम्मेदारी उद्धव निभा चुके हैं। फडणवीस के इस्तीफे के बाद उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में उस चमकते सितारे की तरह होंगे जिनसे यहां की जनता को काफी उम्मीदे हैं। शिवसेना के पूर्व प्रमुख दिवंगत नेता बाला साहेब ठाकरे के सबसे छोटे बेटे उद्धव ठाकरे की राजनीति में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी, वो एक वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर थे, मगर ठाकरे के निधन के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के साथ इन्हें समझ पाना बड़े-बड़े राजनेताओं के वश के बाहर की बात है।
बाला साहेब ठाकरे के निधन के बाद शिवसेना से राज ठाकरे ने अलग पार्टी बनाकर शिवसेना से दूरी बना ली। तब लगा था कि राज के आगे उद्धव की राजनीति धूमिल पड़ जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आज की राजनीति में भाजपा को उसकी राजनीति में पटखनी देकर शरद पवार और कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र की राजनीति के पुरोधा के रुप में उभरकर राजनीति को फिर से बाला साहेब ठाकरे की सियासत को आगे बढ़ा रहे हैं। ठाकरे के जमाने में राज ठाकरे को ही शिवसेना के उत्तराधिकारी माना जा रहा था। लेकिन वर्ष 2004 में उद्धव ठाकरे को शिवसेना की कमान मिलने के साथ ही शिवसेना के बिखराव की नींव पड़ गई थी और हुआ भी राज ठाकरे ने खुद को वर्ष 2006 में शिवसेना से अलग करते हुए मनसे (महाराष्ट्र नवनिर्माण मंच) बना लिया।
27 जुलाई 1960 को महाराष्ट्र में जन्मे उद्धव ठाकरे अपने फायर ब्रांड नेता पिता बाला साहेब ठाकरे की राजनीतिक विरासत को इस कदर संभाल पाएंगे इसका किसी को उम्मीद भी नहीं थी। मगर इस तरह से सत्ता में काबिज होकर उद्धव ने अपने कुशल राजनीतिज्ञ होने का परिचय दे दिया है। लेखक और पेशेवर फोटोग्राफर की भूमिका में सक्रिय रहने वाले उद्धव ठाकरे देश-दुनिया में लेखनी और अपनी फोटोग्राफी से हमेशा से चर्चा में रहे हैं। शांतिप्रिय उद्धव ठाकरे की शादी रश्मि ठाकरे से हुई और इनके दो पुत्रों आदित्य और तेजस हैं, जिसमें से आदित्य अपने खानदान में पहली बार विधायक बने हैं। इसके पहले शिवसेना राजनीति का खेल खेलती थी सत्ता से खुद को दूर रखती थी। लेकिन ठाकरे परिवार में एक साथ दो इतिहास गढ़ रहा है पिता उद्धव पहली बार मुख्यमंत्री बने तो पुत्र आदित्य ठाकरे पहली बार विधायक बने हैं। शिवसेना को शुरुआती दौर से ही हिंसक छवि की पार्टी मानी जाती रही है, लेकिन उस छवि को बदलकर उद्धव ठाकरे ने शिवसेना को राजनीतिक गलियारे से लेकर आम आवाम के बीच अच्छी छवि प्रस्तुत करने की कोशिश में जुट गए हैं। अब ऐसे में देखना यह दिलचस्प होगा कि शिवसेना की छवि को सुधारकर सत्ता पर काबिज होने के बाद त्रिदलीय सरकार महाराष्ट्र में कितना सफल होती है। अगर उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में सफल हो जाते हैं तो देश के छोटे दलों को बल मिलेगा या यों कहें कि भाजपा के लिए आगे की रणनीति और सियासी चाल सोच समझकर चलनी होगी ताकि वो अपने चाल में सफलता की इबारत लिखने में कामयाब हो सके।