महाराष्ट्र में 80 घंटों में जो कुछ हुआ उसके पीछे चाचा भतीजे की चाल तो नहीं ?
नई दिल्ली । लहालांकि भाजपा के फडणवीस और एनसीपी के अजित पवार के नेतृत्व में बनी सरकार 80 घंटे बाद ही इस्तीफा देकर मैदान से अलग हो गई , परंतु सत्ता का इतना बड़ा खेल 80 घंटे में 80 प्रकार के सवाल खड़े कर गया । इन सबमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि यह जो कुछ भी हुआ वह मराठा क्षत्रप के नाम से विख्यात रहे शरद पवार की जानकारी में रहते हुए हुआ या नाजानकारी में सब कुछ हो गया ? कहा नहीं जा सकता कि मराठा क्षत्रप शरद पवार इस सबसे नाजानकार रहे हों ? उनकी राजनीति को समझना सभी राजनीतिज्ञ बड़ा कठिन मानते आए हैं । ऐसे में इन 80 घंटों के पीछे भी उनका कौन सा दिमाग काम करता रहा कुछ कहा नहीं जा सकता ।
शरद पवार ने साबित कर दिया है कि महाराष्ट्र का किला फतह करने के लिए एक महीने से लड़ रहे योद्धाओं के बीच वही असल मराठा सरदार हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद से चल रही रस्साकशी और जोड़तोड़ में से पवार मंगलवार को विजेता की तरह सामने आए। उनकी राजनीतिक सूझबूझ ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के अस्वाभाविक माने जा रहे गठबंधन को आकार दे दिया और दिल्ली से चल रहे बीजेपी के जवाबी वार को बेअसर कर दिया। इस पूरे सियासी घटनाक्रम में एक राज यह भी है कि अजित पवार ने बगावत का दुस्साहस किया या फिर यह चाचा शरद पवार की सियासी चाल थी।
मंगलवार को मुंबई में मिला ताज पवार की दिल्ली का ताज भी किसी दिन अपने नाम करने की पुरानी महत्वाकांक्षा को हवा दे सकता है। हालांकि यह रहस्य शायद ही खुले कि अजित पवार का दूसरे पाले में जाना उनका दुस्साहस था या उनके चाचा ने एकसाथ कई चालें चलने के लिए उन्हें विरोधी खेमे में उतार दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक ओर एनसीपी चीफ ने अजित के फैसले को निजी बताया, वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। परिवार और पार्टी के लोग भी लगातार उनसे बात करते रहे। अजित पवार ने फडणवीस के साथ शपथ तो ली, लेकिन तीन दिनों के दौरान कार्यभार नहीं संभाला। बीजेपी की पूरी बाजी अजित पर टिकी हुई थी। वहीं, अचानक उनकी घर वापसी से बीजेपी का प्लान धरा का धरा रह गया।
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