कर्म तब तक पीछा करता है जब तक भोगने करा ले : आचार्य कुलश्रेष्ठ
ओ३म्
-आर्यसमाज लक्ष्मणचैक-देहरादून का वार्षिकोत्सव-
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आर्यसमाज लक्ष्मणचैक देहरादून के शनिवार दिनांक 23-11-2019 को वार्षिकोत्सव के दूसरे दिन अपरान्ह 3.00 बजे से यज्ञ आरम्भ हुआ। यज्ञ तीन वृहद यज्ञकुण्डों में किया गया। यज्ञ के ब्रह्मा के आसन पर आगरा के वैदिक विद्वान श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ विद्यमान थे। उनका साथ श्री सत्यपाल सरल एवं आर्यसमाज के पुरोहित श्री गुरमीत शास्त्री दे रहे थे। गुरुकुल पौंधा के तीन ब्रह्मचारियों ने यज्ञ में मन्त्रपाठ किया। सामवेद के मन्त्रों से भी आहुतियां दी गई। यज्ञ की पूर्णाहुति के बाद ‘महिला सम्मेलन’ आरम्भ हुआ। सम्मेलन की संयोजिका श्रीमती सुषमा शर्मा थी। सम्मेलन का शुभारम्भ करते हुए उन्होंने महर्षि दयानन्द द्वारा महिलाओं के हित में किये गये कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द ने कहा था कि देश की महिलाओं का शिक्षित होना आवश्यक है। इसलिये हम महर्षि दयानन्द जी को स्मरण करते हैं। ऋषि दयानन्द ने देश की महिलाओं को रास्ता दिखाया है। अंग्रेज नहीं चाहते थे कि महिलायें शिक्षित हों। ऋषि दयानन्द ने महिलाओं को वेद के पढ़ने का अधिकार दिया। वह चाहते थे महिलायें वेदाध्ययन करें और वेदों का प्रचार करें। उन्होंने कहा कि हम यदि वेदाध्ययन करें और आर्यसमाज के नियमों एवं शिक्षाओं का पालन करें तो हम अपने जीवन व भविष्य को उज्जवल बना सकते हैं। श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने देश की वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी और श्रीमती सुषमा स्वराज जी के उच्च पदासीन होने की चर्चा की और कहा कि महिलाओं की उन्नति में ऋषि दयानन्द के वेदप्रचार आन्दोलन सहित संघर्षों एवं मान्यताओं का प्रमुख योगदान है।
श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने कहा कि माता ही बच्चों को अच्छे संस्कार दे सकती है। आपने महिलाओं में धैर्य के गुण की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को ऐसे स्थानों पर भेजना चाहिये जहां उनको अच्छे संस्कार मिले। कुछ लोग शिकायत करते हैं कि वह बहुत व्यस्त हैं, उनके पास कहीं आने जाने, यहां तक की स्वाध्याय आदि करने, के लिये भी समय नहीं है। श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने कहा कि समय तो निकालना पड़ता है। उन्होंने सभी बहिनों को प्रेरणा की कि आप लोगों को आर्यसमाज में आना चाहिये और इसके पुस्तकालय की पुस्तकों का अध्ययन वा स्वाध्याय करना चाहिये। श्रमती शर्मा ने आर्यसमाज के उत्सव में पधारे हुए आर्य समाज के विद्वान श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी और भजनोपदेशक श्री सत्यपाल सरल जी का परिचय दिया और उनकी प्रशंसा की। श्रीमती सुषमा शर्मा जी के इस सम्बोधन के बाद लगभग 8 वर्ष की एक कन्या भूमि ने ‘स्वस्ति पंथा मनुचरेम’ मन्त्र का पाठ किया, इसका अर्थ भी सुनाया और एक अन्य मन्त्र का भी हिन्दी अर्थ सहित पाठ किया। कन्या भूमि के बाद दो कन्याओं रक्षिता और प्रतिष्ठा ने गर्भ में कन्याओं की हत्या पर आधारित एक सामूहिक गीत सुनाया जिसके कुछ शब्द थे ‘बेटियों को बचा लो इनके अन्दर भी जान है ये कोई गैर नहीं हैं।’ यह गीत करुणारस से भरा था जिसे सुनकर समाज की स्थिति पर दुःख होता है। इस गीत के पश्चात कन्याओं को प्रेरणा देने वाली एक कविता बहिन श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने प्रस्तुत की। इसके शब्द भी अर्थ प्रधान एवं प्रेरक थे। उन्होंने कहा कि माताओं को अपने बच्चों की सभी गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिये जिससे वह गलतियां न करें। उन्होंने कहा कि यदि हमारी बेटियां शिक्षित होंगी तो वह अपने जीवन की रक्षा कर सकती हैं।
बहिन सारिका जायसवाल जी कुछ बहिनों के साथ पधारी थी। उन्होंने नुक्कड़ नाटक के माध्यम से बहिनों को बेटी पढ़ाओं बेटी बचाओं का सन्देश दिया। चार बाल कलाकारों ने एक नाटक प्रस्तुत किया जिसमें भारतीय संस्कृति और परम्पराओं की महत्ता को बताया गया और आधुनिकता, लोभ की प्रवृत्ति तथा परिग्रह से होने वाली हानियों पर भी प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम में स्थानीय पार्षद श्रीमती मीनाक्षी मौर्य जी भी उपस्थित थी। उनका स्वागत व अभिनन्दन किया गया। उन्होंने अपने सम्बोधन में सभी महिलाओं को आर्यसमाज के सत्संगों में आने तथा आर्य समाज से जुड़ने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि अग्निहोत्र यज्ञ से आध्यात्मिक एवं भौतिक अनेक लाभ होते हैं। सभी को यज्ञ करना चाहिये। उन्होंने सभी कन्याओं को उच्च शिक्षा प्राप्त कर उसका लाभ समाज के लोगों तक पहुंचाने की भी प्रेरणा की और सबका धन्यवाद भी किया। श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने यज्ञ के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला और कहा कि अग्निहोत्र यज्ञ करने से हम रोगों से बचते भी हैं और हमारे रोग ठीक भी होते हैं। श्रीमती सुषमा शर्मा जी ने स्त्री आर्यसमाज लक्ष्मणचैक की कोषाध्यक्ष श्रीमती मल्लिका प्रकाश का परिचय भी श्रोताओं को दिया। आयोजन में देहरादून के कन्या गुरुकुल द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की छात्रायें भी उपस्थित थीं। उन्होंने महिलाओं से सम्बन्धित एक भजन वा गीत प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘मेरे देश की बहनो तुमको देख रही दुनिया सारी तुम पे बड़ी है जिम्मेदारी। हर घर को तुम स्वर्ग बना दो हर आंगन को फुलवारी, तुम में बड़ी है जिम्मेदारी।’
आयोजन में आर्य भजनोपदेशक श्री सत्यपाल सरल जी का एक भजन हुआ। उनके भजन के कुछ शब्द थे ‘समय आ गया है बहिनों अब जागो और देश जगाओ रे’। चारु नाम की एक कन्या ने नारी के गौरव पर एक प्रभावशाली कविता सुनाई। उनकी कविता की एक पंक्ति थी ‘जो नारी का अपमान करे वो कोई मर्द नहीं हो सकता।’ इसके बाद आगरा से पधारे आर्य विद्वान श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी का सम्बोधन हुआ। आचार्य कुलश्रेष्ठ जी ने कहा कि मनुष्य जो-जो कर्म करता है, वह सभी कर्म उसका तब तक पीछा करते हैं जब तक कि उन कर्मों का सुख व दुःख रूपी भोग नहीं हो जाता। आचार्य जी ने कहा कि महिलाओं की महानता उनके त्याग के कारण है। अपने परिवार के सदस्यों के लिये उनका जीवन समर्पित रहता है। उन्होंने कहा कि मैंने कभी किसी नारी को अपने सुख की चिन्ता करते हुए नहीं पाया है। नारियां अपने सुख की चिन्ता नहीं करती हैं। आचार्य जी ने कहा कि नारी परिवार के सभी सदस्यों को भोजन कराने के बाद भोजन करती हैं। रसोई में कुछ बचे या न बचे, वह त्याग व सन्तोष का परिचय देती हैं। आचार्य जी ने कहा कि धर्म और अधर्म की पहचान करने के लिये हम सबको आर्यसमाज से जुड़ना पड़ेगा।
आचार्य उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने केरल में येल्लमा देवी मन्दिर की चर्चा की और बताया कि वहां अज्ञानी व भोलेभाले विवेकशून्य लोग अन्धपरम्परा का निर्वाह करते हुए हमनी किशोर कन्याओं का विवाह पत्थर की मूर्ति से कर देते हैं। यह मन्दिर में जीवन व्यतीत करती हैं। यह क्रम हर वर्ष चलता है। प्रौढ़ अवस्था में इन कन्याओं को मन्दिर से निकाल देते हैं। अन्ध परम्पराओं के कारण इनके माता-पिता व परिवार के लोग इन्हें अपने घरों में नहीं ले जाते। वहां के कुछ विधर्मी व दलालों के चक्र में यह फंस जाती हैं और इनका जीवन नरक बना रहता है। श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने श्रोताओं को कहा कि आपको आलस्य छोड़कर आर्यसमाज से जुड़ना पड़ेगा। आचार्य जी ने कहा कि आज का युग विज्ञान व उन्नति का युग है। आज के युग में एक कन्या का विवाह पत्थर से किया जाना हास्यास्पद है। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि नारियां व महिला सगठन इसका विरोध क्यों नहीं कर रहे हैं? यह समाज की निष्क्रियता का प्रतीक है। महिलाओं व समाज के सभी वर्गों को इसके विरुद्ध संघर्ष करना चाहिये। आचार्य जी ने जीवन के अन्य कई क्षेत्रों में भी नारी उत्पीड़न की भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि इनके विरुद्ध कहीं से आवाज नहीं उठती।
श्री उमेशचन्द्र कुलश्रेष्ठ जी ने आगे कहा कि ऋषि दयानन्द देश में गुरुकुलीय शिक्षा प्रणाली के प्रणेता व पोषक थे। उन्होंने दिल्ली के मिराण्डा कालेज का उल्लेख कर बताया कि वहां की 75 प्रतिशत लड़किया शराब, सिगरेट, गांजा, सुल्फा आदि का नशा करती हैं। यह हमारे लिये चिन्ता तथा अपमान का विषय है। वर्तमान में नारियां होटलों में जाकर नशा व भारतीय संस्कृति के विरोधी कार्य करने लगी हैं और पर-पुरुषों के साथ नाचती भी हैं। यह स्थिति दुःखद है। आचार्य जी ने बुराईयों के विरुद्ध संघर्ष करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि हमें ऋषि दयानन्द का सन्देश घर-घर पहुंचाना है। लोग धर्म और अधर्म का अन्तर नहीं जानते। देश व संसार में आर्यसमाज ही अज्ञान व अन्धविश्वास का विरोध करता है। आचार्य जी ने आर्यसमाज के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने आगे कहा कि महिलाओं की तेजस्विता विलासिता में परिवर्तित हो रही है। यह स्थिति अत्यन्त दुःखद एवं अपमानजनक है। विलासी महिलाओं के बच्चे संस्कारित नहीं बन सकेंगे। आचार्य जी ने सभी ऋषिभक्तों को बुराईयों के विरुद्ध संघर्ष करने की प्रेरणा की और अपनी वाणी को विराम दिया। इसी के साथ महिला सम्मेलन का समापन हुआ। आयोजन में बड़ी संख्या में स्त्री, पुरुष और बच्चे सम्मिलित थे। रविवार दिनांक 24-11-2019 को आर्यसमाज लक्ष्मण चैक के वार्षिकोत्सव का समापन होगा। आर्यसमाज के प्रधान श्री राजकुमार भण्डारी एवं मंत्री जी ने सभी अतिथियों एवं श्रोताओं का धन्यवाद किया। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत