संस्कृत पढ़ाने के लिए मुस्लिम शिक्षक की नियुक्ति पर बवाल क्यों ?

अपच का रोग हिंदू समाज का बहुत पुराना रोग है । इतिहास के ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जब कोई व्यक्ति किसी मजबूरी में मुसलमान या ईसाई बन गया तो अपच की बीमारी के चलते उसे धर्म के ठेकेदारों ने फिर से वैदिक धर्म में लेने से यह कहकर इंकार कर दिया कि गधे कभी घोड़े नहीं बन सकते । उन्होंने अपना यह मूर्खतापूर्ण तर्क बिना यह विचार किए दिया कि यदि घोड़े से गधा बन सकते हैं तो गधे से फिर घोड़े भी बन सकते हैं । इस मूर्खतापूर्ण तर्क व सोच के कारण इस्लाम ने भारत में धर्मांतरण का खेल खुलकर खेला । आज हम चाहे कितना ही इस्लाम को कोसलें , पर इस्लाम को भारत में बढ़ाने में हिंदू समाज की यह अपच की बीमारी भी बहुत सहायक सिद्ध हुई है। आज का सारा बांग्लादेश हमारी इसी अपच की बीमारी का परिणाम है। जो लोग कालापहाड़ की कहानी से परिचित होंगे , वह मेरी बात से सहमत होंगे ।
अब बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के ‘ संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय ‘ के छात्रों का आंदोलन चर्चा में है। आंदोलन का कारण है विश्वविद्यालय प्रबंधन द्वारा एक मुस्लिम को संस्कृत पढ़ाने के लिए दी गई नियुक्ति। इस आंदोलन को देखकर लग रहा है कि जैसे कुछ लोग हिंदुत्व को इस्लाम बना देना चाहते हैं। जहां उनके धर्मग्रंथ को दूसरे के द्वारा हाथ लगाया जाना भी उसको नापाक कर देना है। जबकि हिंदुत्व की शिक्षा है कि आपकी सहज ,सरल व ह्रदयग्राही शिक्षा को दूसरा भी ले तो कोई बुराई नहीं है। विद्या किसी से भी और कहीं से भी ली जा सकती है । यहां तक कि पशु पक्षियों से भी हम कोई ना कोई अच्छी बात सीख सकते हैं । हमको गुणग्राही और गुणचोर होना चाहिए , ऐसी शिक्षा वैदिक धर्म हमें प्रदान करता है।
इस विषय में ‘ संस्कृत भारती ‘ के अखिल भारतीय महामंत्री श्रीश देव पुजारी जी का पत्र हमें प्राप्त हुआ है , जिसे हम यहां यथावत प्रस्तुत कर रहे हैं। वह कहते हैं :–
” कुछ दिनों से बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय’ के छात्रों का डा.फिरोज खान की नियुक्ति के विरोध में आन्दोलन चल रहा है । इसको संचार मध्यमों ने भी पर्याप्त प्रसिद्धि दी है । संस्कृतभारती के पदाधिकारियों को भी स्थान – स्थान इस आन्दोलन के सन्दर्भ में प्रश्न पूछे गए । कोई भी भ्रमित न हो इसलिए संस्कृतभारती की ओर से अधिकृत वक्तव्य दे रहा हूँ ।
संस्कृतभारती पूरे विश्व को संस्कृत सिखाने के लिए निकली है । संस्कृतभारती का भारत के व्यतिरिक्त १७ देशों में काम है, जिसमे अरब देश भी है । हम गीत गाते है – “पाठयेम संस्कृतं जगति सर्व मानवान् ।” भारत में हमने जो हजारों व्यक्तियों को प्रशिक्षित किया है उन्हीं में से एक डा.फिरोज खान भी है ।
रही बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की बात तो यह पहले समझ लेना होगा कि डा.फिरोज खान की नियुक्ति ‘संस्कृत विद्या धर्मं विज्ञान संकाय’ के अंतर्गत साहित्य विभाग में हुई है । किसी भी संकाय में कई विभाग होते है । बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘संस्कृत विद्या धर्मं विज्ञान संकाय’ में भी साहित्य, व्याकरण, धर्मशास्त्र, वेद इत्यादि कई विभाग है । यदि किसी मुसलमान ने साहित्य पढ़ाया तो कौन सा संकट आ गया ? कुछ लोग संचार माध्यामों में यह असत्य प्रचार कर रहे हैं कि डॉ.फिरोज खान अब कार्मकाण्ड पढ़ायेंगे, यज्ञ करवाएंगे ? नियुक्ति प्रक्रिया पर संकायाध्यक्ष और विभागाध्यक्ष के हस्ताक्षर हैं । क्या वे किसी मुसलमान को कर्मकाण्ड पढ़ाने या यज्ञ कराने के लिए नियुक्त करेंगे ? सब के विभाग भिन्न भिन्न है और सभी में विद्वान् प्राध्यापक नियुक्त है । वे अपने अपने विषयों को पढ़ाने में सक्षम हैं ।
ऐसा ही एक भ्रम धर्मंशास्त्र इस विषय से सम्बद्धित है ।धर्म याने रिलिजन नहीं है । भारत एक सनातन राष्ट्र है । समाज को नियंत्रित करने के लिए इस राष्ट्र में भिन्न भिन्न काल में अलग – अलग संविधान थे । उनको स्मृतियाँ कहते हैं । उनका अध्ययन धर्मशास्त्र विभाग में होता है । आधुनिक शब्दावली में धर्मशास्त्र को विधिशास्त्र कह सकते हैं ।
संस्कृतभारती का सभी आंदोलनरत छात्रों से आग्रह है कि वे अपना आन्दोलन त्वरित पीछे लें, हमारा विश्वविद्यालय प्रशासन से निवेदन है कि वे यथाशीघ्र सामान्य परिस्थिति लाएं और डा.फिरोज खान से विनती है कि वे निर्भय होकर विश्वविद्यालय में योगदान दें । ”
इस आंदोलन पर और श्रीश देव पुजारी जी के इस पत्र पर आपका क्या विचार है ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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