गाजियाबाद । ( उगता भारत , ब्यूरो डेस्क ) यूँ तो प्रदेश की हर सरकार ने सरकारी भूमि के उचित रखरखाव के लंबे चौड़े दावे किए हैं , परंतु सच यह है कि प्रदेश की सरकारी भूमि पर राजस्व विभाग के अधिकारी और कर्मचारी खुद मिलकर ही अवैध कब्जा करवाते हैं ।
लेखपाल से लेकर जिलाधिकारी तक इस खेल में अपने – अपने स्तर पर संलिप्त पाए जाते हैं । लेखपाल स्वयं मौका पर किसी भी सरकारी भूमि पर काश्तकार को अपनी सहमति से कब्जा करवाता है , और उसकी एवज में उससे अपना सुविधा शुल्क लेकर उधर से आंख फेर लेता है । यही स्थिति कानूनगो , तहसीलदार , एसडीएम और डीएम तक की है । जितनी अधिक भूमि होगी और जितनी अधिक कीमती होगी , समझो उतने ही स्तर का राजस्व विभाग का कर्मचारी या अधिकारी उस भूमि पर कब्जा करवाने में संलिप्त है ।
इस विषय में ‘उगता भारत ‘ अपने आगामी अंकों में एक विशेष श्रंखला जारी करने जा रहा है । जिसमें जिले के ऐसे अभिलेखों को खंगाला जाएगा जिनसे पता चलेगा कि 1947 में उक्त ग्राम में सरकारी भूमि कितनी थी और अब कितनी रह गई है ? इसमें हम विशेष रूप से यह भी स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि बीते 72 वर्षों में गोचर की भूमि की क्या स्थिति रही और इसे कैसे-कैसे राजस्व विभाग ने लोगों को या तो निगलने दिया या इसे सरकारी अभिलेखों में से हटा देने में ही अपना भला समझा ।
इस विशेष श्रृंखला में हम यह भी स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे कि जो भूमि 1947 में तालाब के रूप में प्रयोग हो रही थी वह धीरे-धीरे 2019 के आते-आते अब कितनी रह गई है या कब और कैसे खत्म हो गई है ? – हम यह भी प्रयास करेंगे कि प्रदेश के तालाबों पर ,कितने लोगों ने कहां-कहां पर अवैध कब्जे कर लिए हैं और अब यह तालाब मौके पर हैं भी या नहीं ? निश्चित रूप से इस प्रकार के अभियान से हमें यह पता चलेगा की 1947 से लेकर अब तक प्रदेश के राजस्व विभाग ने प्रदेश में कितने कितने बड़े घोटाले किए हैं ? या उन में सम्मिलित होकर लोगों को सरकारी जमीनों को पर कब्जा करने दिया है ?
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