इंडोनेशिया का प्रंबानन मंदिर जहां की गई है 1163 वर्ष पश्चात पहली बार पूजा
भारत की वैदिक संस्कृति विश्व के कोने – कोने में फैली हुई थी । जिसके प्रमाण आज भी अनेकों देशों में पर्याप्त रूप में मिलते हैं । मूल रूप में भू: भुवः स्व: तीनों शक्तियां ओ३म की ही शक्ति होने की संकेतक हैं । इन्हें ब्रह्मा , विष्णु , महेश के नाम से भी जाना जाता है । कालांतर में अज्ञान के फैलने पर लोगों ने ब्रह्मा , विष्णु , महेश नाम के देवताओं की मूर्तियां बनाना आरंभ कर दिया । लोगों ने उनकी आकृति भी मनुष्य जैसी बनानी आरंभ कर दी। अर्थ का अनर्थ होने लगा । विदेशों में जाकर हमारे लोगों ने अनेकों मंदिरों का निर्माण किया और वहां पर आत्मिक शांति प्राप्त करने के लिए ऐसा परिवेश सृजित किया जिसमें मोक्ष की प्राप्ति करने में व्यक्ति को सहायता मिलती थी।
शिव का ऐसा ही एक बहुत सुंदर और प्राचीन मंदिर इंडोनेशिया के जावा में है। 9 वीं शताब्दी में बना भगवान शिव का यह मंदिर प्रम्बानन मंदिर के नाम से जाना जाता है। शहर से लगभग 17 कि.मी. की दूरी पर स्थित यह मंदिर बहुत सुंदर और प्राचीन है । इसे देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे पूर्वजों को स्थापत्य कला का कितना अच्छा ज्ञान था ? जिन इतिहासकारों ने मुगलों की स्थापत्य कला को भारत पर यह कहकर थोपने का प्रयास किया है कि भारत में स्थापत्य कला में मुगलों से बहुत कुछ सीखा है , उनकी कलई खोलने के लिए यह मंदिर और इसके समकालीन अन्य मंदिर बहुत कुछ स्थिति स्पष्ट कर सकते हैं।
इस मंदिर में भगवान शिव के साथ दुर्गा देवी की मूर्ति भी स्थापित है । कहा जाता है कि एक समय पर जावा का प्रबु बका नाम का एक दैत्य राजा था। उसकी एक बहुत ही सुंदर पुत्री थी, जिसका नाम रोरो जोंग्गरंग था। बांडुंग बोन्दोवोसो नाम का एक व्यक्ति रोरो जोंग्गरंग से विवाह करना चाहता था, लेकिन रोरो जोंग्गरंग ऐसा नहीं चाहती थी। इसी राजकुमारी के विवाह प्रसंग से इस मंदिर के निर्माण की कहानी जुड़ी हुई बताई जाती है।
संसार के निर्माण की शक्ति ईश्वर की ब्रह्मा शक्ति है। जबकि पालन , पोषण वृद्धि और विकास करने की उसकी शक्ति का नाम विष्णु है , इसी प्रकार संसार का संहार करने की ईश्वर की शक्ति का नाम महेश है। वह उत्पत्तिकर्त्ता है इसलिए भू: है , वह दुखहर्ता है इसलिए वह भुवःहै और वह सुखप्रदाता है इसलिए वह परमपिता परमेश्वर स्व; भी है। प्रम्बानन मंदिर में , ईश्वर की इन्हीं तीनों शक्तियों का प्रतिबिंब दिखाने के लिए मुख्य तीन मंदिर हैं- एक भगवान ब्रह्मा का, एक भगवान विष्णु का और एक भगवान शिव का। सभी मूर्तियों के मुंह पूर्व दिशा की ओर है। हर मुख्य मंदिर के सामने पश्चिम दिशा में उससे संबंधित एक मंदिर है। भगवान ब्रह्मा के सामने हंस, भगवान विष्णु के लिए गरूड़ और भगवान शिव के लिए नन्दी का मंदिर बना हुआ है। इनके अतिरिक्त परिसर में और भी कई मंदिर बने हुए हैं। हंस , गरुड़ और नंदी के भी अपने वैज्ञानिक और बुद्धिसंगत अर्थ हैं ।
प्रम्बानन मंदिर स्थित शिव मंदिर बहुत बड़ा और सुंदर है। यह मंदिर तीनों देवों के मंदिरों में से मध्य में है।
प्रम्बानन मंदिर की सुंदरता और बनावट देखने योग्य है। मंदिर की दीवारों पर हिंदू महाकाव्य रामायण के चित्र भी बने हुए हैं। ये चित्र रामायण की कहानी को दर्शाते हैं। मंदिर की दीवारों पर की हुई यह कलाकारी इस मंदिर को और भी सुंदर और आकर्षक बनाती है।
कुल मिलाकर मंदिर की भव्यता और दिव्यता को देखकर इसकी स्थापत्य कला के सामने हर एक दर्शक नतमस्तक हो जाता है । जब कोई भी दर्शक इस प्रकार नतमस्तक होता है तो समझो कि वह हमारे पूर्वजों की स्थापत्य कला और उनकी ज्ञान संपन्न मेधा के सामने नतमस्तक हो रहा है। जिस पर हम सबको गर्व और गौरव की अनुभूति होनी ही चाहिए।
इस मंदिर की स्थापना 12 नवंबर 856 ई0 को की गई थी । अब 12 नवम्बर को 1163 वर्ष पश्चात इस मंदिर में पहली बार साफ सफाई करने के उपरांत विधिवत पूजा पाठ किया गया है। जिससे पता चलता है कि भारत की संस्कृति के प्रति विदेशों में भी अब लोगों का झुकाव बढ़ रहा है । इसे निश्चित ही भारत के लिए एक शुभ संकेत माना जाना चाहिए। यद्यपि अभी भी हमारी परंपराओं के वैज्ञानिक और बुद्धिसंगत अर्थ करके उन्हें लोगों के हृदय मंदिर में स्थापित करने के लिए बहुत बड़े भागीरथ प्रयास की आवश्यकता है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत