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श्रीमद् दयानन्द आर्ष ज्यातिर्मठ गुरुकुल, पौंधा-देहरादून में आयोजित तीन दिवसीय गुरुकुल महोत्सव रविवार दिनांक 10-11-2019 को सोल्लास समापन हो गया। समापन सत्र सायं 4.00 बजे आरम्भ हुआ जिसे ‘‘पुरस्कार वितरण सम्पूर्ति सत्रम्” का नाम दिया गया। कार्यक्रम का आरम्भ द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल महाविद्यालय, देहरादून की कन्याओं के सामूहिक गीत से हुआ जिसके बोल थे ‘एक तेरी दया का साथ मिले एक तेरा सहारा मिल जाये।’ कार्यक्रम का संचालन गुरुकुल पौंधा के आचार्य डा. धनंजय आर्य जी ने किया। आचार्य धनंजय जी ने गुरुकुल महोत्सव को सफल बनाने वाले सभी सहयोगियों का उल्लेख किया। उन्होंने दानदाताओं को धन्यवाद दिया और कार्यक्रम की सफलता में ईश्वर के आशीर्वाद को भी स्मरण कर धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि महोत्सव में देश के 54 गुरुकुलों ने भाग लिया। इनके आचार्य व आचार्यायें गुरुकुल महोत्सव में सम्मिलित हुई हैं। लगभग 450 गुरुकुलों के छात्र-छात्राओं ने इस आयोजन में भाग लिया। आचार्य जी ने गुरुकुल महोत्सव की पूरी योजना का उल्लेख भी श्रोताओं व विद्वानों के सम्मुख प्रस्तुत किया। उन्होंने महोत्सव में पधारे सभी आचार्य एवं आचार्याओं का परिचय भी दिया। मंच पर अनेक गणमान्य व्यक्तियों में उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री गिरीश अवस्थी जी भी उपस्थित थे। आचार्य धनंजय जी ने मंच पर उपस्थित आर्यजगत के प्रमुख विद्वान एवं ऋषिभक्त ठाकुर विक्रम सिंह जी को आशीर्वचनों के आमंत्रित किया।
ठाकुर विक्रम सिंह जी ने अपने सम्बोधन के आरम्भ में कहा कि विद्वानों व बच्चों के स्वाध्याय में कमी नहीं आनी चाहिये। उन्होंने देश में बेरोजगारी की स्थिति के सन्दर्भ में एक घटना प्रस्तुत की जिसमें दो बेरोजगार पी.एच.डी. युवक एक सरकस में शेर की खाल ओढ़ कर काम करते हैं। विद्वान वक्ता ने आर्यजगत के महान विद्वान पं. रामचन्द्र देहलवी जी का उल्लेख कर बताया कि वह अपने समय में मैट्रिक पास थे। वह सरकारी नौकरी करते थे। अरबी व फारसी के भी वह उच्च कोटि के विद्वान थे। अरबी एवं फारसी भाषाओं में उनकी कोटि का कोई विद्वान नहीं था। शास्त्रार्थों में वह सदैव विजयी रहते थे। उन्होंने बताया कि पं. रामचंद्र देहलवी जी का कुरआन की आयतों का उच्चारण भी अति शुद्ध होता था। बड़े बड़े मौलवी उनसे कुरआन की आयते सुनकर दांतों के नीचे उंगुली दबाते थे अर्थात् शर्मिन्दा होते थे। विक्रम सिंह जी ने आर्यसमाज के एक अन्य विद्वान पं. खूब चन्द जी का उल्लेख किया। वह बहुत साधारण वेशभूषा धारण करते थे परन्तु अच्छे विद्वान थे। उनको कलकत्ता आर्यसमाज के उत्सव में आमंत्रित किया गया था। वहां लोगों ने उनकी वेशभूषा के कारण उनका परिहास किया। जब उनको व्याख्यान के लिये समय दिया गया तो उनका प्रवचन सुनकर आर्यसमाज के श्रोता उनकी विद्वता से अत्यन्त प्रभावित हुए। ठाकुर विक्रम सिंह जी ने कहा कि मनुष्य के शारीरिक रूप, कद, काठी व वेशभूषा को देखकर हम उसकी योग्यता का अनुमान नहीं कर सकते। विद्वान व्याख्यानदाता ने आर्यों को स्वाध्याय करने और व्याख्यान देने का अभ्यास करने की सलाह दी। उन्होंने यह भी कहा कि आर्यसमाज में पं. प्रकाशवीर शास्त्री जैसा विद्वान व प्रभावशाली वक्ता दूसरा नहीं हुआ। उन्होंने पं. प्रकाशवीर शास्त्री को आर्यसमाज का गौरव बताया। स्वामी जी को उन्होंने वेद भाष्य का एक वृहद ग्रन्थ भेंट किया। उन्होंने गुरुकुल के संचालक स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी को अपनी ओर से इकयावन हजार रुपये दान भी दिये। इसी बीच गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री जी भी मंच पर उपस्थित हुए। उनकी उपस्थिति में दीप प्रज्जवलन कर कार्यक्रम को विधिवत आगे बढ़ाया गया।
दीप प्रज्जवलन के बाद मंगलाचरण हुआ। इसे कन्या गुरुकुल चोटीपुरा की कन्याओं ने सम्पन्न किया। गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के कुलपति महोदय का विधिवत सम्मान किया गया। आर्ष गुरुकुल, आबू पर्वत के आचार्य श्री ओम् प्रकाश जी ने प्रो. रूप किशोर शास्त्री जी का अभिनन्दन किया। गुरुकुल आमसेना के आचार्य श्री मनुदेव जी का भी अभिनन्दन उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री गिरीश अवस्थी जी ने किया। मंच पर विद्यमान शिवालिक गुरुकुल के संचालक श्री नायब सिंह जी का भी सम्मान किया गया। आर्य विद्वान श्री धर्मपाल शास्त्री जी का सम्मान गुरुकुल के ब्रह्मचारी डा0 रवीन्द्र कुमार आर्य ने किया। राष्ट्रपति जी से सम्मानित संस्कृत विद्वान ऋषिभक्त डा. रघुवीर वेदालंकार जी का सम्मान आबूपर्वत में संचालित गुरुकुल के आचार्य ओम् प्रकाश जी ने किया। हैदराबाद में संचालित ‘निगमनीडम् गुरुकुल’ के आचार्य श्री उदयन मीमांसक जी का सम्मान भी आचार्य ओम् प्रकाश जी ने किया। शिवालिक गुरुकुल के संचालक श्री नायब सिंह जी का सम्बोधन हुआ जिसमें उन्होंने देश भर से आये सभी गुरुकुलों की छात्र व छात्राओं को अपनी शुभकामनायें व आशीर्वाद दिया। उन्होंने बताया कि उनके शिवालिक गुरुकुल में वर्तमान समय में 280 बच्चे अध्ययनरत हैं। यह गुरुकुल पिछले वर्ष ही आरम्भ किया गया है।
उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री गिरीश अवस्थी जी ने पुरस्कार वितरण के इस सत्र को सम्बोधित किया। उन्होंने कहा कि मुझे गुरुकुल में आकर प्रसन्नता होती है। इतने बड़े आयोजन में प्रतिभाग करना बहुत बड़ी बात है। गुरुकुल ने इस गुरुकुल महोत्सव का आयोजन किया, यह भी बहुत बड़ी बात है। यह गुरुकुल हमारे विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है। इससे हमें गौरव मिलता है। उन्होंने गुरुकुल के पूर्व स्नातक श्री दीपक कुमार का दोहा के एशियन खेलों में रजत पदक प्राप्त करना और उसका जापान में सन् 2020 में आयोजित ओलम्पिक खेलों में चयनित होना हमारे विश्वविद्यालय के लिये भी महत्वपूर्ण है। श्री गिरीश अवस्थी जी ने कहा कि आप गुरुकुल के लोगों में हम विद्या के संस्कार देखते हैं। श्री गिरीश अवस्थी जी ने स्वामी प्रणवानन्द सरस्वती जी की गुरुकुल खोलने व उनका संचालन करने के लिए प्रशंसा की। उन्होंने गुरुकुल पौंधा को प्रत्येक क्षेत्र में अग्रणीय बताया। कुलसचिव श्री गिरीश अवस्थी जी ने गुरुकुल महोत्सव में आयोजित प्रतियोगिताओं में विजित तथा अविजित सभी छात्र व छात्राओं को बधाई दी। इसके बाद गुरुकुल शिवगंज की तीन छात्राओं ने संस्कृत में एक गीत का गान किया।
द्रोणस्थली कन्या गुरुकुल महाविद्यालय की प्राचार्या डा. अन्नपूर्णा जी ने अपने सम्बोधन में कहा कि गुरुकुल महोत्सव में भाग ले रहे छात्र-छात्रा प्रतियोगियों के हृदय में इस महोत्सव से ऊर्जा सहित गाढ़ अनुराग उत्पन्न हुआ है। उन्होंने इस महद् आयोजन की प्रशंसा की। ज्ञान के समान पवित्र संसार की कोई चीज नहीं है। संस्कृत संसार की अलौकिक भाषा है और इसमें सारा ज्ञान है। उन्होंने कहा कि वेद मनुष्य को ऊपर उठने की प्रेरणा करता है। इसके बाद कन्या गुरुकुल की एक बहिन ने गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय पर एक स्वागत गीत का गान किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गुरुकुल कांगड़ी के कुलपति प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने सम्बोधन में कहा कि सन् 1902 में स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना हुई। इस गुरुकुल की सफलता से प्रेरित होकर अनेक ऋषिभक्तों ने देश में गुरुकुलों की स्थापना एवं संचालन किया। उन्होंने कहा कि आर्यसमाज द्वारा पोषित गुरुकुलों में वैदिक शास्त्रीय ग्रन्थों का अध्ययन व उनकी रक्षा हो रही है। विद्वान वक्ता ने कहा कि दुनियां में कोई सबसे महत्वपूर्ण ग्रन्थ है तो वह सत्यार्थप्रकाश है। प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने कहा कि सत्यार्थप्रकाश के तीसरे समुल्लास में ऋषि दयानन्द ने शिक्षा नीति दी है। वेद वचन ‘मनुर्भव’ का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण मानव बनना मनुर्भव का अर्थ है। मनुष्य बनने में माता-पिता तथा आचार्य तीन घटक काम करते हैं। विद्वान कुलपति महोदय ने ऋषि दयानन्द के उच्च व श्रेष्ठ विचारों की अनेक बातें बताईं। उन्होंने ऋषि दयानन्द की वह बातें याद दिलाईं जहां वह कहते हैं कि सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लेने के बाद जितनी चाहें विदेशी भाषायें पढ़ सकते हैं। उन्होंने बतया कि उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए देश 450 संस्कृत विद्यालय खड़े किये हैं। इन गुरुकुलों में पांच वेद विद्यालय हैं। विद्वान वक्ता प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने आगे बताया कि सन् 1991 की जनगणना में संस्कृत देश की भाषाओं में 20वें स्थान पर थी और संस्कृत का प्रयोग करने वाले 73000 हजार लोग देश में थे। सन् 2011 की जनगणना में यह आकड़ा घटकर 14 वें स्थान पर आ गया और संस्कृत भाषी 73000 से घटकर 14 हजार रह गये। प्रो. रूपकिशोर शास्त्री ने आगामी जनगणना में आर्यसमाज से जुड़े लोगों को अपनी भाषा संस्कृत लिखाने की प्रेरणा की।
आचार्य धनंजय जी ने बताया कि वैदिक गुरुकुल परिषद देश के 180 विद्यालयों का प्रतिनिधित्व करती है। कार्यक्रम में उपस्थिति गुरुकुलों को वैदिक साहित्य भेंट किया गया। गुरुकुल परिषद के एक गुरुकुल के आचार्य नागेन्द्र जी ने गुरुकुल परिषद को एक लाख रुपये दान देने की घोषणा की। इसके बाद सभी प्रतियोगिताओं को सम्पन्न कराने में परीक्षक की भूमिका निभाने वाले सभी आचार्य व आचार्याओं एवं सहयोगियों का सम्मान किया गया। इसके पूर्ण होने पर सभी प्रतियोगिताओं के सफल प्रतियोगियों के परिणाम को घोषित करते हुए उन्हें नगद धनराशि आदि के पुरस्कार दिये गये। डा. रवीन्द्र कुमार आर्य ने सभी परीक्षाओं वा प्रतियोगिताओं के परीक्षा परिणामों की घोषणा की। सभी परीक्षाओं व प्रतियोगिताओं के परिणामों की घोषणा व प्रतियोगियों को पुरस्कार प्रदान करने के बाद पुस्कार वितरण सम्पूर्ति सत्र समाप्त हुआ। इस कार्यक्रम को सफल बनाने में आचार्य डा. धनंजय जी और उनके गुरुकुल के नये व पुराने स्नातक सहयेागियों ने अथक परिश्रम किया जिससे यह सफल हो सका। अगला गुरुकुल महोत्सव गुरुकुल आमसेना-उड़ीसा में होगा। इसकी घोषणा की गई। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
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