पिछले कुछ वर्षों से हर वर्ष दीपावली के आसपास पराली से पूरा एनसीआर पीड़ित हो उठता है । अब प्रश्न यह है कि इस पराली को जलाकर एनसीआर सहित देश के कई भागों में लोगों के लिए ‘ डेथ चेंबर ‘ बनाने की इस प्राणलेवा घटना का जिम्मेदार कौन है ?
सचमुच इस प्रश्न पर हमें गंभीरता से विचार करना ही चाहिए ।
फॉरेन ट्रेड बुलेटिन के फरवरी 1994 के अंक में पृष्ठ 18 पर मीट एक्सपोर्ट प्रोसेस्ड फ़ूड प्रोडक्ट्स ब्राइट शीर्षक से समाचार छपा था कि :– ” एग्रीकल्चरल एंड प्रोसैस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी की एक रिपोर्ट के अनुसार मांस व मांस उत्पादों का निर्यात जो वर्तमान में 230 करोड रुपए वार्षिक है आधुनिकीकृत क़त्लखानों के माध्यम से इस शताब्दी के अंत तक 1000 करोड रुपए वार्षिक से अधिक का हो जाएगा । ” रिपोर्ट के अंत में नए कत्लखाने तथा मांस निर्यातक परक इकाइयों के स्थापित करने की भी सिफारिश की गई है । रिपोर्ट में देश में मौजूदा पशुधन के अनुसार 3500000 टन मांस का उत्पादन किया जा सकता है । जिसका मूल्य 8250 करोड़ रुपए होगा । इस प्रकार के कत्लखानों को लगाने के लिए प्राइवेट सेक्टर तथा विदेशी कंपनियों की भागीदारी की भी सिफारिश की गई है । वोट ख़रीदने के लिए सरकार हमें सब्सिडी देती है और सब्सिडी से उत्पन्न घाटे को पूरा करने के लिए गोवंश का मांस निर्यात करने की छूट दी जाती है । घाटा किसको हुआ ? भविष्य किसका उजड़ा और यदि गाय आदि पशु नहीं रहे तो कत्लखानों में किसको काटेंगे ?
आज तो गाय माता यह प्रश्न पूछ रही है, कल वक्त स्वयं पूछेगा । समय से सोचना ही आवश्यक है।
कहने का अभिप्राय है कि सरकार के रूप में हमारे लिए जो रक्षक बने हैं , वही हाथ हमारे लिए भक्षक बन चुके हैं । डेथ चेंबर बनाने के दोषी वही लोग हैं जो 8250 करोड़ या उससे अधिक की विदेशी मुद्रा को कमाने के लिए गाय मांस का निर्यात बढ़ाने की योजनाओं पर या तो कार्य कर रहे हैं या ऐसी सिफारिश कर गोवंश को समाप्त करने की घृणित षड्यंत्रकारी नीतियों में लगे हुए हैं । पूरी की पूरी ब्यूरोक्रेसी प्रश्नों के कटघरे में है ? पूरी की पूरी व्यवस्था प्रश्नों के कटघरे में है ?
ईश्वर की व्यवस्था के अनुसार खेत में पराली तैयार होती है । उसके अनाज को मनुष्य ले लेता है और सूखे चारे के रूप में पराली गाय आदि पशुओं के खाने के काम आती रही है । उसके बदले में भी ये पशु हमें गोबर की खाद देते हैं । उससे फिर अच्छी फसल तैयार होती है ।इस प्रकार प्रकृति का संतुलन बनाए रखने के लिए एक चक्रीय व्यवस्था प्रकृति ने सहज रूप में प्रदान की । जब गाय या दुधारू पशुओं को काट – काटकर मनुष्य अपने पेट में भर लेगा तो पराली को खाएगा कौन ? प्रकृति ने ईश्वरीय व्यवस्था के अनुसार गाय या दूसरे पशु मनुष्य को एक चक्रीय व्यवस्था में सहायक या साथी के रूप में प्रदान किए गए थे । जिन्हें मनुष्य ने अपने खाने के लिए प्लेट में सजा लिया । अब प्रकृति के उस चक्र को तोड़कर मनुष्य डेथ चेंबर में फंसकर घुट-घुट कर मरने को अभिशप्त है । सचमुच इस कथित सभ्य समाज के लिए अपनी मूर्खताओं पर प्रायश्चित करने का समय है । वास्तव में यह सभ्य समाज बहुत ही असभ्य और मूर्ख है जो अपने विनाश के लिए अपने आप ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है।
व्यवस्था स्वयं पापी है और उस निर्दोष किसान को अब दंडित करने की तैयारी कर रही है जिसकी गाय को उठाकर अपनी प्लेटो में सजाकर यही पापी व्यवस्था खा गई है । जो लोग पराली जलाने वाले किसानों पर मुकदमे कर रहे हैं या उन्हें उठा – उठाकर जेलों में डालने के कामों में लगे हैं , वास्तव में व्यवस्था में बैठे यही वह लोग हैं जो स्वयं गाय का मांस खाते हैं या गायों को काटने वाले कातिलों से पैसे ले लेकर अपनी तिजोरियां भरते हैं और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते हैं।
“अंधेर नगरी चौपट राजा “- का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है ,?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत