प्रियंका जी ! गांधी बाबा से सरदार पटेल जी इसलिए उत्तम हैं – – – – – –
आजादी के समय वीर सावरकर जी एकमात्र ऐसे नेता थे जिनका अपना संगठन हिन्दू महासभा और जिनके अपने साथी उस समय ” पाकिस्तान मुर्दाबाद ‘ और ‘ भारत देश पुनः अखंड हो ‘ – का नारा लगा रहे थे।
कितने घोर आश्चर्य की बात है कि गांधी जी और कांग्रेस मुस्लिम लीग के ‘ दारुल इस्लाम ‘ और ‘ दारुल हरब ‘ – के इस्लामिक मूलतत्ववाद के सिद्धांत को मानने को तैयार ही नहीं थे और जो लोग उन्हें इस सच को समझाने का प्रयास करते थे , वीर सावरकर जैसे उन लोगों को वह अपनी ओर से ‘ सांप्रदायिक ‘ होने का प्रमाण पत्र दे देते थे । उनका यह प्रमाण पत्र किसी फतवे से कम नहीं होता था ,क्योंकि इसका प्रभाव कांग्रेसियों पर गहराई से पड़ता था और वे सांप्रदायिकता का प्रमाण पत्र प्राप्तकर्त्ता व्यक्ति के प्रति दूरी बनाकर ही चलते थे।
अपनों से घृणा करने और देशद्रोहियों से प्रेम का प्रदर्शन करना और फिर भी चोट खाना कांग्रेस की परंपरा बन गई , उसका संस्कार बन गया। – – – – और यही संस्कार देश का दुर्भाग्य बन गया।
महादेव देसाई अपनी डायरी ( दिनांक 30 मार्च 1932 ) में लिखते हैं – ” आज सवेरे हम लोग एक मुसलमान नेता के बारे में बातचीत कर रहे थे । वल्लभभाई पटेल ने कहा – संकट की घड़ी में उन्होंने भी समुचित सांप्रदायिक दृष्टिकोण अपनाया था और मुसलमानों के लिए एक पृथक कोष की और पृथक अपील की बात कही थी । ”
इस पर बापू ने सरदार को शांत रहने के लिए तपाक से कहा – ” इसमें उनकी कोई गलती नहीं है,। मुसलमानों को हम कौन सी सुविधाएं देते हैं ? – अक्सर उनके साथ अश्पृश्यों जैसा व्यवहार होता है। ” वल्लभभाई पटेल ने कहा – ” मुसलमानों के तौर तरीके और रीति-रिवाज अलग हैं , वे मांस खाते हैं जबकि हम शाकाहारी हैं। हम उनके पास एक स्थान पर कैसे रह सकते हैं ? ”
बापूजी ने उत्तर दिया , – ” नहीं जनाब ! गुजरात के अतिरिक्त कहीं भी सारे हिंदू शाकाहारी नहीं है। ”
पटेल शांत हो गए , यह उनकी मर्यादा थी। पर वह भीतर से कभी शांत नहीं होते थे। जब भी अवसर आता था , वह अपनी बात कहने से चूकते नहीं थे ।
जनवरी 1946 में वॉयसरॉय वेवल ने अपनी पहली भेंट में ही पटेल को पहचान लिया था। इसलिए उनका आंकलन था – ” उनका व्यक्तित्व आकर्षक नहीं है और वे झुकने वाले भी नहीं हैं , और जिन भारतीय राजनेताओं से मैं मिला हूं उनमें से अधिकांश से कहीं अधिक पुरुषोचित हैं वह । पटेल ने शुरुआत ही आरोपों से की कि अंग्रेज जिन्ना और मुस्लिम लीग का समर्थन कर रहे हैं। ”
कांग्रेस की प्रियंका गांधी कह रही हैं कि हिंदूवादी संगठनों के लिए और विशेष रूप से आरएसएस के लिए सरदार पटेल शत्रु भाव रखते थे । प्रियंका गांधी को हम यहां पर यह बताना चाहते हैं कि सरदार पटेल चाहे हिंदूवादी राजनीतिक संगठनों के समर्थक थे या नहीं थे , परंतु राजनीति के हिंदूकरण के पक्षधर अवश्य थे अर्थात वह वैसी ही स्पष्टवादी राष्ट्रवादी राजनीति करते थे जैसी राजनीति का हिंदुत्व पक्षधर है । उनके लिए राष्ट्र सर्वप्रथम था , जबकि गांधी नेहरू के लिए निजी हित सर्वप्रथम थे । उसके पश्चात उनके लिए मुस्लिम हित और अंग्रेजो के हित आते थे। सबसे बाद में उनके लिए राष्ट्रहित था। सोच के इसी मौलिक अंतर ने गांधी व नेहरू को आज दूसरे और तीसरे स्थान पर धकेल दिया है , जबकि सारे देश के लिए सरदार पटेल सर्वप्रथम हो गए हैं।
राजनीतिक मतभेदों या दूरियों के उपरांत भी यह हिंदूवादी राजनीतिक संगठनों का ही औदार्यपूर्ण कृतज्ञभाव है कि वह सरदार पटेल को उन सभी छद्म धर्मनिरपेक्षवादी नेताओं से कहीं अधिक सम्मानित व्यक्तित्व के रूप में स्वीकार करते हैं जिन्होंने अपनी दिखावटी मानवीय खाल के नीचे भेड़िए की खाल पहन रखी थी । ऐसे नेताओं का सम्मान करना राजनीति के हिंदूकरण का प्रतीक है । जिसे शायद प्रियंका गांधी अभी समझ नहीं पाएंगी।
कल के चिंतन में हम बताएंगे कि 10 गांधी बाबाओं से भी पटेल क्यों उत्तम हैं ?
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत