जब जब मां भारती को बलिदानों की आवश्यकता पड़ती है तो इसकी सुरक्षा और संरक्षा के लिए इसके अनेकों सपूत बलिवेदी पर कूद पड़ते हैं । हमारे देश ने यज्ञ की परंपरा का आविष्कार ऐसे ही नहीं किया इसने राष्ट्रवेदी को भी एक यज्ञ कुंड के समान समझा है और राष्ट्र के मूल्यों की रक्षा के लिए जब – जब आवश्यकता पड़ी तब तब यहां के निवासियों ने अपना सर्वोत्कृष्ट आत्मोत्सर्ग किया । ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी लाला हरदयाल थे। जिन्होंने भारत की ” दाधीच परंपरा , यज्ञ परंपरा अर्थात सर्वोत्कृष्ट आत्मोत्सर्ग करने की परंपरा का निर्वाह करते हुए उसे और भी अधिक बलवती करने का जीवन पर्यंत प्रयास किया । आज हम उन्हीं की जयंती मना रहे हैं ।
14 अक्टूबर 1884 को जन्मे लाला हरदयाल हमारे देश के उन महान क्रांतिकारियों में से एक थे या कहिए कि उनके सिरमौर थे , जिन्होंने विदेशों में रहकर भारत की स्वतंत्रता की अलख जगाई । इस महान क्रांतिकारी ने अपने इस लक्ष्य की साधना अमेरिका में रहते हुए की और वहां पर ‘ गदर पार्टी’ की स्थापना कर भारत की स्वतंत्रता को दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया । अपनी इस पार्टी के माध्यम से उन्होंने अनेकों क्रांतिकारियों को भारत की स्वतंत्रता के लिए तैयार किया । काकोरी काण्ड का ऐतिहासिक फैसला आने के बाद मई, सन् १९२७ में लाला हरदयाल को भारत लाने का प्रयास किया गया किन्तु ब्रिटिश सरकार ने अनुमति नहीं दी। इसके बाद सन् १९३८ में पुन: प्रयास करने पर अनुमति भी मिली परन्तु भारत लौटते हुए रास्ते में ही ४ मार्च १९३९ को अमेरिका के महानगर फिलाडेल्फिया में उनकी रहस्यमय मृत्यु हो गयी। उनके सरल जीवन और बौद्धिक कौशल ने प्रथम विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश साम्राज्यवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए कनाडा और अमेरिका में रहने वाले कई प्रवासी भारतीयों को प्रेरित किया। लाला हरदयाल जी की मृत्यु पर आज तक रहस्य का पर्दा पड़ा हुआ है अच्छा हूं कि इस दिशा में हमारी वर्तमान सरकार ठोस कदम उठाए ।
अपने इस महान क्रांतिकारी को उनकी जयंती के पावन अवसर पर हम सर की विनम्र श्रद्धांजलि।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत