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यज्ञ में पांच घृत आहुतियों को देने का मुख्य प्रयोजन यह है कि समिधाओं पर इन घृत आहुतियों से अग्नि पूर्णरूप से जल उठे अर्थात् यज्ञ वेदी में रखी समिधायें भली प्रकार से जलने लगे। इसका कारण यह है कि इन आहुतियों के कुछ अन्तराल पर हम सामग्री वा साकल्य की आहुतियां देते हैं। यदि अग्नि भली प्रकार से प्रज्जवलित नहीं होगी तो हमारी सामग्री की आहुतियां तीव्र अग्नि में जल कर सूक्ष्म परमाणु-अणुओं में परिवर्तित नहीं होगीं जिससे यज्ञ का अभिलषित लाभ, वायु व जल की शुद्धि, नहीं होगा।
इसका दूसरा उत्तर यह है कि यज्ञ में पांच घृत आहुतियां ‘ओ३म् अयन्त इध्म आत्मा जातवेदस्तेनेध्यस्व वर्द्धस्व चेद्ध वर्धय’ मन्त्र से दी जाती हैं। इस मन्त्र में ईश्वर से प्रजा, पशु, ब्रह्वर्चस, अन्न तथा समेधय इन पांच इष्टों की प्राप्ति की कामना है। हम जब भी कोई व्याख्यान देते हैं तो उसमें जो मुख्य बात होती है उसको दोहराते हैं जिससे श्रोता उसकी महत्ता को जान लें। यज्ञ करने का प्रयोजन यही है कि हमारे घरों में अच्छी योग्य सन्तानें हों। दूसरी प्रार्थना पशुओं के लिये की गई है। हमारे घर गाय, बकरी आदि दुग्ध देने वाले पशुओं से युक्त हों। हमारे पास गमनागमन के लिये अश्व तथा भार ढोने के लिये बैल आदि पशु होंवे। आजकल गमनागमन के साधनों का स्थान मध्यम वर्गीय परिवारों में दो पहिया वाहन तथा उच्च मध्य-वर्गीय परिवारों में नाना प्रकार के चार-पहिया वाहनों ने ले लिया है। वर्तमान समय में इनमें से किसी एक साधन के न होने पर गृहस्थियों व गृह-स्वामी का काम भली प्रकार से चल नहीं पाता। हमें वैदिक साधन आश्रम तपोवन तथा गुरुकुल पौंधा जाना होता है। यदि हमारे पास स्कूटर न होता तो हमें इन स्थानों पर पहुंचने में कठिनाई होती और समय भी अधिक लगता। इन साधनों से सभी को सुविधा होती है। पूर्वकाल में अश्व आदि पशु वाहनों का काम करते थे।
यज्ञ में तीसरी प्रार्थना हम अन्न की प्राप्ति के लिये करते हैं। सभी प्रकार के पौष्टिक अन्न हमें ईश्वर प्राप्त कराये यह विनती की जाती है। चैथी प्रार्थना ब्रह्मवर्चस अर्थात् हम ब्रह्म वा ईश्वर के श्रेष्ठ गुणों से युक्त हों जिससे समाज में हमें प्रतिष्ठा व यश प्राप्त हो। पांचवी प्रार्थना में समिधा के समान गुणों प्रकाश, तेज तथा दाहकता आदि की जीवन में प्रार्थना की गई है। जिस मनुष्य के जीवन में यह गुण व पदार्थ होते हैं, उसका जीवन प्रशंसनीय एवं अनुकरणीय होता है। अतः इन पांच आहुतियों में एक-एक गुण व पदार्थ को ईश्वर से प्राप्त कराने की प्रार्थना की जाती है। इसी कारण से पांच घृताहुतियों का विधान किया गया है।
हमने जब पांच घृत आहुतियों को दिये जाने के कारण पर विचार किया तो हमारे मन में यही विचार उत्पन्न हुए। इसके बाद हमने पुस्तकों में देखा तो वहां आर्यसमाज के विद्वानों की ओर से भी यही समाधान प्राप्त हुवे। हम पाठकों से निवेदन करते हैं कि वह भी अपने विचारों से हमें अवगत करायें जिससे हमें व अन्य पाठकों को भी इससे लाभ हो। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
मुख्य संपादक, उगता भारत