मानस में आते रहे,
क्षण-क्षण व्यर्थ विचार।
खारिज कर आगे बढै,
भवनिधि उतरै पार॥
॥1245॥
व्याख्या:- जिस प्रकार सागर का जल कभी शांत नहीं रहता है, उसमें हर समय छोटी-बड़ी लहरें उठती ही रहती हैं। ठीक इसी प्रकार मनुष्य का मन क्षण-प्रतिक्षण चलायमान रहता है। कभी शांत और एकांत बैठकर मन का तटस्थ भाव से 2 मिनट के लिए निरीक्षण कीजिए। आप पाएंगे कि 2 मिनट में ही व्यर्थ के विचार मानस-पटल पर श्रंख्लाबध्द होकर इतने आते हैं कि आप गिन नहीं सकते हैं। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि मनुष्य के मन में व्यर्थ के विचार 24 घंटों में लगभग साठ हजार आते हैं जिन से मनुष्य की चिंतन-धारा तो प्रभावित होती ही है, इसके अतिरिक्त रात की नींद और दिन का चैन छिन जाता है। परिणाम यह होता है कि मनुष्य गति के पथ से भटक जाता है, अपने लक्ष्य से भटक जाता है।किम कार्तव्य विमूढ़ की स्थिति में चला जाता है और शनैःशनैःउसे भग्नासा,निराशा अपने शिकंजे में ले लेती है,जिससे उसकी प्राणश्क्ति अथवा उर्जा की अपूर्णीय क्षति होती है।कई बार तो व्यक्ति निराशा के चक्रवात में फंसकर आत्महत्या तक कर लेता है।
अब प्रश्न पैदा होता है कि ऐसी मनःस्थिति से उबरने का निदान किया है?इस बात को एक उदाहरण से समझयें।आज का युग विज्ञान का युग है,मोबाइल फोन आम आदमी तक पहुंच चुका है। मोबाइल की स्क्रीन पर देखिए क्षण-प्रतिक्षण मैसेज आते रहते हैं समझदार आदमी व्यर्थ के मैसेज को खारिज कर देता है और काम के ‘मैसेज’को ग्रहण करता है।उससे अपने जीवन को उपयोगी बनाता है।ठीक इसी प्रकार विवेकशील व्यक्ति को चाहिए कि मानस-पटल पर आने वाले बुरे विचारों को अपने विवेक से खारिज करें और ऐसे विचारों को स्थायीत्व जिससे उसके जीवन का उत्कर्ष हो। उसे अपनी संकल्प शक्ति को द्वढ़ करना चाहिए। याद रखो!संकल्प मन से बड़ा होता है।मनुष्य जब संकल्प करता है, विचार का बीज मन में डालता है,तब मन उस संकल्प का बार-बार मनन करता है,मनन के बाद वाणी को प्रेरणा देता है, वाणी प्रेरणा पाकर ज्ञानेंद्रियों और कर्मेंद्रियों को अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में संलग्न कर देती हैI संसार में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में चाहे वह धर्म और अध्यात्म का हो,शिक्षा, विज्ञान,चिकित्सा, खेल अथवा कला का हो,दर्शन अथवा काव्य का हो, राजनीति अथवा समाज सुधार का हो, इन सब में अनेकों महापुरुष हुए हैं,जो आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकाश पुंज है, प्रेरणा स्रोत हैं।यह सभी महापुरुष जिन्होंने वर्थ के विचारों को खारिज किया और कल्याणकारी विचारों को दृढ़ संकल्प शक्ति से अपने आचरण में क्रियान्वित कर दूसरों के लिए आदर्श बन गए। इस संसार सागर से स्वयं तर गए और दूसरों के तारक बन गए। अतः व्यर्थ के विचारों से बचो,मन की शक्ति को पहचानो, कल्याणकारी विचारों को अपनाओ और अपना जीवन श्रेष्ठ बनाओ, श्रेष्ठ विचारों के धनी बनो। इसलिए यजुर्वेद का ऋषि कहता है:-
तन्मे मन:शिवसंकल्पमस्तु।
यजुर्वेद 34/1
अर्थात- है प्रभु!मेरा मन कल्याणकारी संकल्प वाला हो, किसी का अहित करने की इच्छा करने वाला यह कभी न हो। क्रमशः
Categories