उगता भारत समाचार पत्र द्वारा आयोजित की गई विचार गोष्ठी में प्रोफेसर आर्य द्वारा पूज्य पिता श्री राजेंद्रसिंह आर्य जी की स्मृति में रचित कविता :-
पिता का कद आसमान से भी बड़ा है ।
वह नींव का पत्थर है जिस पर
जिंदगी का ढांचा खड़ा है।।
उसने हर तूफान से अपना
सीना लड़ाया है ।
वह हिमालय है जिसने
विकास की गंगा को बहाया है।।
मोमबत्ती की तरह वह जलता रहा ।
हम साए की तरह साथ चलता रहा ।।
खुशी का अमृत सदा देता रहा ,
मगर गम के चेहरे को पीता रहा ।।
उस शिल्पकार ने सुनहरा यह जीवन गढा है ।
पिता का कद – – – –
सुनामी सी ताकत उसकी दुआओं में है ।
उसके यश की खुशबू फिजाओं में है ।।
रोशनी थी हमारी जो गुल हो गई ।
वह प्रेरक शक्ति जाने कहां खो गई ।।
आंखों में शेर सी घूर मगर
हृदय कोमल नवनीत रहा ।
ज्ञान कर्म भक्ति ही उनका
जीवन भर संगीत रहा ।।
हृदय अनुरागी था उनका
नित ईश वंदना करते थे ।
पापा की गुलाबी आंखों में
सदा स्वपन सुनहले रहते थे ।।
उद्घोषक थे वह पोषक थे
वैदिक संस्कृति के वाहक थे।
वह जनक रहे संस्कारों के
मानवता के संवाहक थे ।।
यही संस्कार हमारे हृदय में पड़ा–
है पिता का कद – – – –
कहीं क्रोध की अग्नि हृदय में
कहीं करुणा की धारा बहती ।
कहीं साहस का सूर्य चमक रहा
क्षमाशील वृत्ति रही ।।
थे स्वाभिमान के उच्च शिखर
और उदारता के वह सागर थे ।
इतिहास वेद रामायण गीता
ज्योतिष के वह गागर थे ।।
कहूं क्या कहानी उपकार हैं अनगिन ।
हृदय में यादें उनकी आती है छिन छिन ।।
वह हुए स्वर्ग गामी फिर भी रिश्ता जुड़ा है – —
पिता का कद – – – –