इतिहास की भारतीय विद्वानों के अनुसार परिभाषा कुछ इस प्रकार स्थापित की जा सकती है :—
” इतिहास धर्म का रक्षक है , संस्कृति का पोषक है , मानवता का उद्धारक है, समाज का मार्गदर्शक है , राष्ट्र का उन्नायक है और अतीत में हुई दुर्घटनाओं से शिक्षा लेकर मर्यादा पथ को प्रशस्त करने वाले लोगों के मार्ग का अनुकरण करने के लिए मानवमात्र को शिक्षा देने वाली एक महान संस्था है । इस मंदिर पर जितने फूल चढ़ाए जाएं , उतने कम हैं । ”
भारतीय विद्वानों की मनीषा के अनुसार इतिहास की रची गढ़ी गई इस परिभाषा ने हमको संसार का विश्व गुरु बनने के लिए प्रेरित किया । फलस्वरूप हमने अनेकों ‘ कोणार्क ‘ , ‘अंकोरवाट ‘ खड़े किये । कितने ही लालकिले और ताजमहल खड़े किए । कितने ही भव्य मंदिर संसार के कोनों में स्थापित किये । जिससे कि मानव का हृदय रूपी मंदिर पवित्र बन सके । मानव को मानव से जोड़ने के लिए हमारे ऋषियों ने अनेकों विषयों की वैचारिक गोष्ठियां आयोजित कीं । मानवता के प्रचार – प्रसार के लिए अनेकों ‘अशोकों ‘ ने सब दिशाओं में कितने ही ‘ महेंद्र ‘ और ‘ संघमित्राओं ‘ को भेजा । फलस्वरूप हमने संसार को एक व्यवस्था दी । इस व्यवस्था के पीछे हमारे विद्वानों की इतिहास की निर्धारित की गई परिभाषा थी।
इस परिभाषा को समझकर और पढ़कर जब व्यक्ति वेद , उपनिषद , स्मृतियों आदि के ज्ञान सागर से स्नान कर बाहर निकलता है और अपनी लंबी परंपरा में उत्पन्न हुए अनेकों , संत ,महात्मा , सम्राट , विराट राजा , संस्कृति उन्नायक व संस्कृति रक्षक दिव्य महापुरुषों की वाणी को , उनके कृतित्व और व्यक्तित्व को समझता और परखता है तो अपने आप भी कुछ नया करने के लिए प्रेरित होता है । वह सोचता है कि मेरा जीवन भी संसार के लिए उपयोगी हो और मैं भी संसार में ऐसे ही कीर्तिमान स्थापित करूं जिन पर मानवता को गर्व हो ।
हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने दीर्घकाल तक स्वतंत्रता की लड़ाई इसलिए लड़ी कि इतिहास की यह पवित्र निर्मल धारा अपने विमलस्वरूप में निर्बाध प्रवाहित होती रहे ।
इतिहास की यह भी एक परिभाषा है – जिसे जीवनप्रद परिभाषा कहा जा सकता है।
अब आते हैं पश्चिम के तथाकथित विद्वानों और साम्यवादी इतिहासकारों के द्वारा निरूपित की गई इतिहास की परिभाषा पर । इन लोगों ने इतिहास को मरे हुए लोगों की कब्र बना दिया । लड़ाईयों के खूनी संघर्ष , नरसंहारों और एक दूसरे के अधिकारों का अतिक्रमण करने वाली अंतहीन लड़ाई का एक ऐसा घृणित स्रोत बना दिया जिसे देखकर व पढ़कर पाठक ऊब जाता है और सोचने लगता है कि यदि हमारे पूर्वजो ने यही सब कुछ किया था तो हम इसे क्यों पढें ? उसके मन में एक धारणा उत्पन्न होती है कि जबसे यह सृष्टि बनी है तभी से इस धरती पर रक्तिम संघर्ष होते रहे हैं , मानव कभी भी समझदार नहीं रहा और उसने कभी भी एक दूसरे के साथ मिलकर आगे बढ़ने का काम नहीं किया ।
इतिहास की इस परिभाषा में विश्वास रखने वाले लोगों ने संसार को अनेकों चंगेज खान , हलाकू , तैमूर , बाबर , अकबर , औरंगजेब , सद्दाम हुसैन , आतंकी दाऊद इब्राहिम और उन जैसे संस्कृति विनाशक मानवता के हत्यारे लोग प्रदान किए हैं । उनका यह क्रम रुका नहीं है । जबकि आपकी परंपरा रुक गई। क्योंकि आपने स्वतंत्रता के उपरांत अपने महापुरुषों के द्वारा निर्धारित की गई इतिहास की परिभाषा पर ध्यान देना और उसके अनुसार अपने कार्य को आगे बढ़ाना बंद कर दिया। जबकि राक्षसवृत्ति अपने द्वारा निर्धारित की गई इतिहास की परिभाषा पर कार्य करती रही । इसलिए आज भी संसार में आतंक है , भय है , भूख है ,भ्रष्टाचार है , सर्वत्र हाहाकार है , अत्याचार , दुराचार आदि है ।
मानवता का प्रचार-प्रसार इसलिए नहीं है कि मानवता का उपासक भारत भटकन का शिकार है । वह अपने ही पूर्वजों द्वारा निर्धारित की गई इतिहास की परंपरा और परिभाषा से मुंह फेरे खड़ा है और राक्षसवृत्ति के लोगों के गुणगान करने में लगा है।
किसी का रुक जाना कितना घातक होता है और विध्वंसक शक्तियों का अपने विनाशकारी पथ पर आगे बढ़ते जाना कितना विनाशकारी होता है ? इतिहास की इन दोनों परिभाषाओं पर काम करने वाले विश्व समुदाय को पढ़कर हम इस बात को समझ सकते हैं।
आप यदि पहली परिभाषा से परिचित हैं और सहमत हैं तो उसके अनुसार अपने इतिहास के पुनर्लेखन के लिए कृतसंकल्प हो उठ खड़े होकर मैदान में आओ और यदि आप दूसरी परिभाषा से सहमत होकर इतिहास को नीरस विषय मानकर उसकी ओर से पीठ फेरे खड़े हो तो अपनी परिभाषा पर पुनर्विचार करते हुए इतिहास की सरस निर्मल पवित्र गंगा में स्नान करने का मन बनाओ । आशा है आप मेरी इस मनोवेदना से निकली प्रार्थना पर अवश्य ही ध्यान देंगे ।
आपका क्या विचार है ? अवश्य अवगत कराएं ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत