गॉधीजी ने भारत की एक राजनैतिक पार्टी कॉंग्रेस को अधिनायक की तरह २७ वर्ष तक चलाया। कॉंग्रेस के अध्यक्ष को एक रबर स्टाम्प का अध्यक्ष बना कर रख दिया। कॉंग्रेस अध्यक्ष हो या कॉंग्रेस कार्यकारिणी समिति का सदस्य हो ,उन सबको गॉधीजी ही तय करते थे। सिर्फ़ एक बार व्यतिक्रम टूटा,१९३९ में जब सुभाष चन्द्र बोष गॉधी की इच्छा के विरूद्ध जीत गये , और कांग्रेस का अध्यक्ष बनने में सफल हो गए । तब गॉधीजी ने उन्हें न अध्यक्ष पद पर कार्य करने दिया न ही अपनी कार्यकारिणी समिति गठन करने दिया । उन्होंने सुभाष बाबू से न केवल कांग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र ही दिलवाया अपितु उन्हें कॉंग्रेस से भी निकाल फेंका। ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति का अन्त इतना बुरा होगा ? – कोई कल्पना भी नही कर सकता।
सारा जीवन हिन्दू मुस्लिम एकता के लिये जीवन खपाने वाले गॉधी ने अपने नोवाखाली प्रवास के समय अच्छे से अनुभव कर लिया कि भारतवर्ष की मुस्लिम जनता के उपर उनका प्रभाव नगण्य है। गॉधी के साथ जो नोवाखाली में घटा गॉधी उसे वह २८ वर्ष पूर्व जॉच सकते थे। वे हिन्दू मंदिरों में तो क़ुरान पाठ करा सकते थे परंतु किसी मस्जिद में गीता का पाठ हो जाए यह उनके लिए संभव नहीं था परंतु इसे गांधीजी समझ नहीं पाए । यदि इस तथ्य को वह समय रहते समझ जाते तो उन्हें २८ वर्ष यह अनुभव पाने के लिये इन्तज़ार नही करना पड़ता।
गॉधी को अपने द्वारा चलाई गई हिन्दू-मुस्लिम एकता की मुहिम पर इतना अधिक विश्वास था कि उन्होंने यहॉ तक कह दिया पाकिस्तान का निर्माण मेरी लाश पर होगा। पर अखण्ड भारत के ९३ प्रतिशत और खण्डित भारत अर्थार्थ आज के भारत के १००प्रतिशत मुसलमानों ने गॉधी के अखण्ड भारत के नारे को नकार कर पाकिस्तान का निर्माण किया। पाकिस्तान के पक्ष में 93% मुसलमानों ने उस समय अपना मत व्यक्त किया था जिस समय आजादी से पहले नेशनल असेंबली के चुनाव हुए थे । जिन लोगों को स्वतंत्रता के उपरांत अनमने मन से भारत में रहना पड़ा और जिन्हें उस समय अपनी मनचाही चीज अर्थात पाकिस्तान नहीं मिला उनसे यह अपेक्षा कैसे की जा सकती थी कि वे स्वतंत्र भारत में रहते हुए भारत के हित में काम करेंगे ?
कॉंग्रेस के प्रधानमंनत्री के उम्मीदवार के रूप मे १४ प्रदेश कॉंग्रेस कमेटी मे से १२ ने पटेल को चुना, एक ने डा.राजेन्द्र प्रसाद को,एक ने आचार्य कृपलानी को। फिर डा.राजेन्द्र प्रसाद ने पटेल के समर्थन मे अपना नाम वापस ले लिया। अर्थात पटेल को सम्पूर्ण कांग्रेस का समर्थन मिला। पर अंग्रेज़ों ने गॉधी को साफ़ कह दिया कि हम पटेल के हाथ मे सत्ता नही सौंपेंगे। हम कांग्रेस के अपने आदमी नेहरू के हाथ में ही सत्ता सौंपेंगे। गॉधी को लाखों कांग्रेसियों की भावना को कुचलते हुये अंग्रेज़ों द्वारा थोपे गये नेहरू को देश का प्रधानमंत्री बनाना पड़ा । जो उस समय कांग्रेस में मामूली सी फ़ारेन अफ़ेयर्स सेल के चेयरमेन थे , व राम मनोहर लोहिया महामंन्त्री थे।
उपरोक्त घटना हिन्दुस्तान टाईम्स के सम्पादक दुर्गादास ने अपनी पुस्तक ‘ फ्राम कर्ज़न टू नेहरू ‘ में लिखी। उन्होंने गॉधी को प्रश्न किया कि जब एक बार भी कॉंग्रेस कमेटी ने भारत का प्रधानमंत्री बनाने के लिए नेहरू के नाम को नही लिया। यहाँ तक कि स्वयं नेहरू ने अपने को इस पद पर इन दिग्गजों के सामने लड़ने लायक़ नही समझा , तब आपके लिये ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी कि आपको नेहरू को प्रधानमंन्त्री बनाना पड़ा ? तब गॉधी ने बिना लाग लपेट के कहा, हमारे केम्प मे वही एकमात्र अंग्रेज़ों का आदमी था ( He was the only Englishman in our Camp).
गॉधी चाह कर भी मौलाना आज़ाद को मंन्त्रीमण्ल से निकाल नही पाये । क्योंकि अंग्रेज़ों की मेहरबानी से प्रधानमन्त्री बनने वाले नेहरू उनको रखना चाहते थे। उन्हें अपने ही शिष्य नेहरू से पाकिस्तान को ५५ करोड़ दिलवाने के लिये अनशन पर बैठना पड़ा। सबसे ख़तरनाक बात तब हुई जब २० जनवरी १९४७ गॉधी पर प्राण घातक हमला हुआ। पाकिस्तान मे लाखों हिन्दू मारे जा रहे थे । करोड़ों अपनी जान बचा कर भारत आ रहे थे। इन परिस्थितियों के दृष्टिगत सरकार को यह समझने में चूक नहीं करनी चाहिए थी कि जो लोग पाकिस्तान से भारत आ रहे थे वह अपनी बर्बादी का कारण गांधी को मान रहे थे । अतः गांधी जी की जान को उस समय गंभीर मानकर उनकी सुरक्षा बढ़ाई जाती ।
पर प्रधानमंन्त्री नेहरू ने इस दिशा मे कोई भी क़दम नही उठाया और गॉधी को मरने दिया । यदि नेहरू सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ कर अपने कर्तव्य का निर्वाह करते तो गांधी जी को आसानी से बचाया जा सकता था। गांधीजी के जीते जी पाकिस्तान बना और उनकी लाश पर राजनीति करने का अवसर कांग्रेस को मिला । नेहरू जी जानते थे कि 1952 के पहले चुनावों के समय गांधी हत्या को हिंदूवादी राजनीतिक दलों या संगठनों पर थोप कर वह इसका राजनीतिक लाभ उठा सकते हैं । अपनी इस योजना को सिरे चढ़ाने के लिए गांधी हत्या के बाद उन्होंने हिंदू महासभा और आर एस एस के नेताओं व कार्यकर्ताओं को मरवाने में कुचलवाने का सुनियोजित अभियान आरंभ कर दिया था ।
भारत सरकार ने गॉधी जी द्वारा पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया भारतीय राजकोष से दिलवाने की उनकी दुराग्रह पूर्ण मांग को तीसरे दिन ही स्वीकार कर लिया था । तब गॉधी ने कहा था कि भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को ₹ 55 करोड़ दिलाने की उनकी मांग से हिन्दू महासभा और आरएसएस जब तक राज़ी नही होंगे , तब तक वे अपना अनशन नही तोड़ेंगे। हिन्दू महासभा व आरएसएस ने गॉधी के प्राण बचाने के लिये लिखित प्रार्थना कर उनका अनशन तुड़वाया। इसके उपरांत भी नेहरू ने गॉधी हत्या मामले में हिन्दू महासभा के ४० हज़ार व आरएसएस के २५ हज़ार कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया था । नेहरू का यह कार्य केवल 1952 के चुनावों में जीत प्राप्त करने के लिए ही किया गया था।
वास्तविकता यह थी कि गांधीजी के अंतिम दिन बहुत दर्दनाक रहे और उनकी बात को सुनने के लिए नेहरू , पटेल और लॉर्ड माउंटबेटन में से कोई भी तैयार नहीं था। पहले दम घोटकर गांधी को मार लिया गया , फिर उनकी लाश पर राजनीति करने की तैयारी की गई । कांग्रेस के इस काले सच को इतिहास में सही ढंग से लिखा जाना समय की आवश्यकता है।
मुख्य संपादक, उगता भारत