नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नाम अपनी संपत्ति की वसीयत करने वाले स्वतंत्रता सेनानी विट्ठल भाई पटेल
भारतीय स्वाधीनता संग्राम में ऐसे अनेकों परिवार हुए जिन्होंने एक से अधिक स्वतंत्रता सेनानी भारत को दिए । ऐसा ही एक परिवार गुजरात का था । जिससे एक नहीं दो प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी भारत को मिले । जी ! यह परिवार सरदार पटेल जी का ही परिवार था । वह स्वयं तो एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी रहे ही उनके बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल भी भारत के एक महान स्वतंत्रता सेनानी रहे । उनका जन्म सन् 1871 ईसवी में गुजरात के खेड़ा जिला के अंतर्गत “करमसद” गाँव में हुआ था। आपकी प्रारभिक शिक्षादीक्षा करमसद और नडियाद में हुई।सरदार पटेल ने स्वयं अपने संस्मरण में लिखा है कि जब मैंने वकालत के लिए इंग्लैंड जाने की तैयारी की और वहां पर अपना आवेदन भेजा तो उसी समय मेरे बड़े भाई विट्ठल भाई पटेल ने भी अपना आवेदन वकालत के लिए उसी कॉलेज में भेजा । सरदार पटेल लिखते हैं कि वहां से मेरा आवेदन स्वीकार हो गया जबकि भाई का आवेदन निरस्त हो गया , लेकिन वहां से जब हमको पत्र प्राप्त हुआ तो उसमें वी बी पटेल लिखा हुआ था । जिसका अर्थ विट्ठल भाई पटेल भी हो सकता था और वल्लभभाई पटेल भी हो सकता था । विट्ठल भाई पटेल ने कहा की पहले मैं इंग्लैंड जाकर वकालत कर आता हूं । जिसे सरदार पटेल ने स्वीकार किया और विट्ठल भाई पटेल वकालत करने इंग्लैंड चले गए ।विट्ठल भाई पटेल विधि क्षेत्र में अपने पांडित्य के कारण शीघ्र ही प्रसिद्ध हो गए तथा उन्होंने पर्याप्त धन भी अर्जित किया। इसी बीच धर्मपत्नी की मृत्यु ने उनके जीवन में परिवर्तन किया और आप शीघ्र ही सार्वजनिक कार्यों में भाग लेने लगे ।24 अगस्त 1925 ईसवी को वह धारासभा के अध्यक्ष चुने गए। संसदीय विधि विधानों के आप प्रकाण्ड पंडित थे। आपके व्यक्तित्व के इस महान गुण ने आपको सभी दलों का और पक्षों का चहेता और आदरणीय बना दिया । केंद्रीय धारासभा अर्थात नेशनल असेंबली के अध्यक्ष के रूप में आप भारत में ही नहीं विदेशों में भी विख्यात हुए। आप तत्कालीन ब्रिटिश सरकार को भी अपने घुमावदार प्रश्न और बौद्धिक चातुर्य से परेशानी में डाल देते थे ।जब सदन में पंडित मोतीलाल नेहरु और जिन्ना जैसे लोग गरजते थे तो उस आवेश पूर्ण परिवेश को भी आप अपनी समझदारी से शांत करने में सफल रहते थे । अंग्रेज लोग माना करते थे कि भारत के लोगों के भीतर प्रशासनिक क्षमता ही नहीं है और न ही वह नेशनल असेंबली जैसे महान सदन की अध्यक्षता कर सकते हैं परंतु आपने अपने विवेकपूर्ण बौद्धिक चातुर्य से यह सिद्ध किया कि भारतीयों के भीतर राजनीतिक समझ और सदन को चलाने की पूरी सूझबूझ होती है । आपके सदृश सम्मान एवं गौरव सहित धारा सभा की अध्यक्षता आपके किसी पूर्ववर्ती ने नहीं की।पंडित मोतीलाल नेहरू के नेतृत्व में जब स्वराज्य पार्टी ने केंद्रीय धारासभा का बहिष्कार किया तो आपने उस समय अपनी राजनीतिक विवेक शक्ति का परिचय देते हुए उनके बहिष्कार का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया और सरकार को यह संकेत दे दिया कि यदि ऐसी परिस्थितियों में कोई कानून बनाने की कोशिश की गई तो वह उचित नहीं होगा ।भोले सरकार को यह भी स्पष्ट कर दिया कि यदि कोई विवादास्पद बिल इस समय उसकी ओर से सदन में लाया गया तो वह अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करेंगे और केंद्रीय धारा सभा की बैठक स्थगित कर देंगे । अंग्रेज सरकार के लिए उस समय किसी अध्यक्ष के द्वारा ऐसी चुनौती प्रस्तुत करना बहुत बड़े साहस की बात थी । जिसे हमारे इस देशभक्त महान स्वतंत्रता सेनानी ने धारा सभा के अध्यक्ष के रूप में करके दिखाया ।सन् 1930 में जन कांग्रेस ने धारासभाओं का बहिष्कार आरंभ किया तो आपने भी धारासभा की अध्यक्षता से पदत्याग कर दिया। अपने त्यागपत्र में आपने लिखा कि – स्वतंत्रता की इस लड़ाई में मेरा उचित स्थान असेंबली की कुर्सी पर नहीं अपितु रण क्षेत्र में है। ऐसा कहकर उन्होंने देशभक्ति को वरीयता दी और अंग्रेजों की कुर्सी को लात मारकर अपने स्वतंत्रता सेनानियों के साथ जाकर खड़े हो गए ।उन्होंने अपने वेतन का अधिकांश भाग सदा देश सेवा के लिए समर्पित किया । उनके उसी धन से गांधी जी ने उनकी मृत्यु के उपरांत 1935 में बालिकाओं के एक विद्यालय का शुभारंभ व उद्घाटन किया था ।सन 1930 में आपको अंग्रेज सरकार ने गिरफ्तार किया । जिसमें आप 6 महीने जेल में रहे , परंतु वहां स्वास्थ्य खराब होने के कारण आपको शीघ्र रिहा कर दिया गया । जेल से छूटने के बाद स्वास्थ्य ठीक न रहने पर भी आप अमरीका भ्रमण करने चले गए और वहाँ आपने भारतीय स्वतंत्रता के पक्ष में अत्यंत प्रभावशाली एवं ओजस्वी रूप में प्रचार किया। इस श्रम के कारण आपका स्वास्थ्य पुन: गिरने लगा।कालांतर मे विट्ठल भाई पटेल के कांग्रेस से मतभेद उत्पन्न हो गए थे । उन्होंने जब कांग्रेस को छोड़ा तो सदा के लिए छोड़ कर चले गए । इस समय वह सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी संपत्ति का बड़ा भाग सुभाषचंद्र बोस के नाम वसीयत कर दिया । विट्ठल भाई जी की वसीयत को लेकर सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल के बीच न्यायालय में मुकदमा चला । उसमें सुभाष चंद्र बोस को सफलता न मिल सकी । परंतु इस घटना से इतना तो स्पष्ट हो ही जाता है कि विट्ठल भाई पटेल गांधीवाद से ऊबकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस के क्रांतिकारी कार्यों के समर्थक हो गए थे।गिरते हुए स्वास्थ्य के दृष्टिगत आप चिकित्सार्थ जेनेवा आए। यहाँ उपचार के बावजूद आपके स्वास्थ्य में सुधार न हो सका और वहीं अस्पताल में सन् 1933 में आपका निधन हुआ।आज अपने इस महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती के अवसर पर हम उन्हें शत-शत नमन करते हैं ।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक ; उगता भारत