हमारे देश के विद्यार्थियों को स्कूली पाठ्यपुस्तकों मे कांग्रेस के दीर्घ शासन में स्वतन्त्रता आन्दोलन का जो इतिहास पढ़ाया जाता है , वह इतिहास लेखन के सिद्धान्तों की पूर्णत: अवहेलना करता है।इतिहास लेखन का सिद्धान्त होता है — तथ्य पवित्र होते हैं , पर उनकी व्याख्या अलग – अलग हो सकती है। कांग्रेसी राज में इतिहास लेखन का काम दिया गया अति मुस्लिम साम्प्रदायिक वामपंथी प्राध्यापकों को। उन्होंने इस प्रकार के तथ्यों को स्थापित करने का प्रयास किया है कि यहाँ इस्लामिक आक्रान्ताओं के आगमन के पहले हिन्दु राजाओं का कोई अस्तित्व ही नहीं था ।
इन तथाकथित विद्वान इतिहास लेखकों के द्वारा इस्लामिक आक्रान्ताओं को इस तरह महिमामण्डित किया गया है कि वे अविजित थे। ज़बकि सच्चाई यह है कि औरंगजेब की मृत्यु के मात्र ३० बर्षो मे मराठा सरदारों ने मुग़ल साम्राज्य को तहस – नहस कर दिया था।मुग़ल शासक मराठों की पेंशन पर पलने लगा था। उसका सिक्का सिर्फ़ लाल क़िले से कुतुब मीनार और पालम गांव तक चलता था। उसी का परिणाम था १९४७ में जब देश मे ५६४ रियासतों का विलय हुआ तो उसमें ५६१ हिन्दू रियासतें थीं । हैदराबाद,भोपाल,जूनागढ़ – ये 3 मुस्लिम रियासतें थी। देश की स्वतन्त्रता की लड़ाई का इतिहास तो इतिहास लेखन के नाम पर मनगढ़न्त कहानीकारों ने कॉंग्रेस नेताओं की नौकरी करते हुये इतना घृणित लिखा कि लिखने मे शर्म महसूस हो रही है। ऐतिहासिक सन्दर्भो को ग़लत पेश करना इन तथाकथित इतिहास लेखकों की एक सामान्य प्रवृत्ति है ।ये देश को स्वतन्त्रता देने का कारण लिखते है,एटली भारत को स्वतन्त्रता देने का पक्षधर था। उसकी जब सरकार बनी तो उसने भारत को स्वतन्त्र कर दिया। जबकि ऐसा कहना एकदम सरासर झूठ है।
१८ फ़रवरी १९४६ को हुये नौसेना विद्रोह, फिर वायु सैनिकों के हड़ताल पर जाने से ब्रिटीश सरकार थर्रा गई थी, थल सेना में यह विद्रोह फैले उसके पहले २३ अक्टूबर १९४६ को यह घोषणा कर दी कि आज़ाद हिन्द फ़ौज के सेनापतियों की सज़ा माफ होगी तथा अन्य सैनिकों पर कोई कार्यवाही नही होगी। साथ ही साथ भारत को आज़ादी दे दी जायेगी। ब्रिटेन की संसद में जब इन्डिया ईन्डिपेन्डेन्टस एक्ट पर चर्चा चल रही थी तो चर्चिल के प्रश्न का उत्तर देते हुये प्रधान मन्त्री एटली ने कहा,हम भारत को स्वाधीन करने को मजबूर हैं। वहाँ की सेना सिर्फ़ रोटी के लिये हमारी वफ़ादार नहीं रही तथा ब्रिटेन के पास वह ताक़त नहीं कि अब उनको नियन्त्रण में रख सके।अपने भारत प्रवास के समय लार्ड एटली ने यह स्वीकार किया था कि आज़ाद हिन्द फ़ौज के आन्दोलन व सुभाष चन्द्र बोस के चलते भारत को स्वाधीन करना पड़ा । चूंकि ये नेता कॉंग्रेस के नहीं थे , इसलिये एटली के मुँह से झूठ लिखा इन वामपंथी इतिहासकारों ने। बल्कि छात्रों को यह पढ़ाकर कि सुभाष बोस ने भारत पर हमला किया जो असफल रहा – उनकी छवि को ख़राब किया।इसी प्रकार सुभाष बाबू को कॉंग्रेस से निकाले जाने के बाद जापान में जाकर रास बिहारी बोस से मिलकर भारत को स्वतन्त्र करने की लड़ाई आरम्भ करने की सलाह देने वाले वीर सावरकर की छवि ख़राब करने का गणित प्रयास भी इन तथाकथित लेख इतिहास लेखकों के द्वारा किया गया है । सबूत के अभाव में सावरकर गॉधी हत्या मामले मे छूट गये। जबकि जज आत्माचरण ने अपने निर्णय में लिखा है कि यह दुर्भाग्यजनक है कि वीर सावरकर का नाम इस मामले मे घसीटा गया।वीर सावरकर पर यह भी झूठा आरोप पढ़ाते हैं कि उन्होंने १९१२ मे अंग्रेज़ों से माफ़ी मॉगी। तब वे १९११ से १९३७ तक अन्दमान की १० वर्ष कठोर काला पानी का सज़ा से लेकर ३ वर्ष जेल,फिर राजनीति नही करने की शर्त के साथ १३ वर्ष रत्नागिरी में बन्दी जीवन जीने को मजबूर सावरकर क्यों थे ? भारत का विभाजन अंग्रेज़ों की डिवाइड एन्ड रूल पोलिसी का परिणाम था। जबकि सच यह है इसको पाने के लिये मुस्लिम लीग व कॉंग्रेस के ख़िलाफ़त वाले नेताओं ने १९२७ से १९४७ तक लम्बी लड़ाइयों लड़ी।लार्ड माउन्टबैटन ने ३ जून १९४७ भारत विभाजन की घोषणा की । १५ अगस्त १९४७ से भारत दो औपनिवेशिक राष्ट्रों मे बँट जायेगा – यह नही पढ़ाकर १५ अगस्त १९४७ भारत का स्वतन्त्रता दिवस बना देते है। जबकि २६ जनवरी १९५० देश का स्वतन्त्रता दिवस है। १५ अगस्त १९४७ देश विभाजन का दिवस है। कॉंग्रेस ने देश की सत्ता १९४५ के चुनावों को जीत कर पाई थी।हमें इन तथ्यों से भरपूर इतिहास चाहिए और ऐसे इतिहास के ही लेखन की आज आवश्यकता भी है । जब तक हम तथ्यात्मक जानकारी अपने युवाओं को नहीं देंगे तब तक प्रचलित इतिहास से कोई लाभ होता नहीं दिखाई देगा।