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विद्यादान को व्यवसाय के रूप में नहीं, अपने धर्म के रूप में अपनाया: हरिबल्लभ आरसी

‘ उगता भारत ‘ के संपादक डॉ राकेश कुमार आर्य को पुष्पगुच्छ प्रदान कर स्वागत करते डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा संस्थान के महासचिव व सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री हरिबल्लभ आरसी जी । साथ में हैं वीर सावरकर फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री प्रहलाद खंडेलवाल , जनरल सेक्रेटरी श्री श्यामसुंदर पोद्दार , राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री धर्मचंद पोद्दार व ‘ उगता भारत ‘ के वरिष्ठ सह संपादक श्रीनिवास आर्य ।

विद्यादान को व्यवसाय के रूप में नहीं , अपने धर्म के रूप में अपनाया है : हरिवल्लभ आरसी

हरि बल्लभ आरसी एक ऐसे हस्ताक्षर हैं जो साहित्य के क्षेत्र में अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । मौलिक स्वरूप में साहित्य प्रेमी होने के कारण श्री आरसी विद्यादान को अपना धर्म मानते हैं । यही कारण है कि वह आज लगभग 13000 छात्र-छात्राओं की 4 संस्थाओं का एक साथ संचालन कर रहे हैं। 89 वर्ष की अवस्था में भी युवाओं जैसे ऊर्जा और उत्साह के साथ वह प्रातः काल नियत समय पर अपने विद्यालय पहुंच जाते हैं और देर शाम तक लोगों के साथ मिलना जुलना सब बनाए रखते हैं ।
पिछले दिनों श्री आरसी जी से ” उगता भारत ” की उनके कार्यालय डॉक्टर श्री कृष्ण संस्थान जमशेदपुर झारखंड में एक विशेष बातचीत हुई । जिसके कुछ अंश हम यहां पर आपको लिए सांझा कर रहे हैं । — श्रीनिवास आर्य ( वरिष्ठ सह संपादक : उगता भारत )

उगता भारत : आपने साहित्य के साथ-साथ विद्यादान के क्षेत्र को क्यों चुना ?

आरसी जी : देखिए , साहित्य से मेरा जन्मजात लगाव है । साहित्य ही किसी समाज को संस्कारित बनाता है । इसलिए शिक्षाप्रेमी होना भी मेरे लिए स्वाभाविक है । यही कारण रहा कि मैंने संस्कारित समाज के निर्माण के लिए विद्यादान को अपना धर्म स्वीकार किया । मैंने जो भी विद्यालय यहां स्थापित किए हैं , उन सबका उद्देश्य संस्कारित जन निर्माण करना है, न कि पैसा कमाना । मेरी जो भी संपत्ति है उसे मैं पब्लिक की संपत्ति मानता हूं और स्वयं एक निवासी के रूप में इसकी संरक्षा और सुरक्षा करता हूँ।

उगता भारत : आप डॉ श्रीकृष्ण सिन्हा संस्थान के जनरल सेक्रेटरी हैं , स्वाभाविक है कि लोगों का मिलना आपसे अधिक रहता होगा । क्या इससे आपको असुविधा नहीं होती ?

आरसी जी : मैं यह दावे के साथ कह सकता हूं कि संपूर्ण भारतवर्ष में केवल हमारे ही शैक्षणिक संस्थान हैं जहां पर जनरल सेक्रेटरी , प्रिंसिपल या किसी भी पदाधिकारी से मिलने की सरल सुविधा सहज उपलब्ध है। इसके पीछे मेरा उद्देश्य केवल यह है कि हम अभिभावक के साथ जुड़ें और अभिभावक हमारे शैक्षणिक संस्थानों का अभिभावक होने के नाते यहां पर बिना किसी संकोच के आ सके । मैं हमेशा अभिभावकों के साथ मिलजुल कर रहने में विश्वास करता हूं । इसी से हम एक अच्छे युवा का निर्माण कर सकते हैं । मैं चाहता हूं कि विद्यालय से बाहर जब हमारा कोई विद्यार्थी जाए तो उसके जीवन में संस्कार इतने प्रबल हों कि वह जीवन भर विद्यालय के प्रति कृतज्ञ भाव बनाए रखे ।

उगता भारत : आपके स्वस्थ और दीर्घायु होने का रहस्य क्या है ?

आरसीजी : मैं यह मान कर चलता हूं कि कम अन्न ग्रहण करने से शरीर स्वस्थ और जीवन लंबा होता है। अधिक खाने से शरीर जल्दी रोगी हो जाता है। मेरा मानना है कि यदि आपको 10 मन अनाज जीवन भर में खाना है तो उसे जितनी देर में समाप्त करेंगे उतनी ही देर आपका जीवन अच्छा बना रहेगा।
मैं समय का पाबंद रहने का प्रयास करता हूं । सुबह एक सही समय पर बिस्तर छोड़ देता हूं और खाने-पीने आदि के विषय में भी अपने सही समय का ध्यान रखता हूं ।

उगता भारत : आप ‘ उगता भारत ‘ के पाठकों से क्या कहना चाहेंगे ?

आरसी जी : ‘ उगता भारत ‘ समाचार पत्र एक राष्ट्रवादी समाचार पत्र है । इसका मैं नियमित पाठक हूं । इसमें छपे लेखों का मैं नियमित पठन करता हूं । इसमें नकारात्मक चिंतन को न परोसकर सकारात्मक राष्ट्रवादी चिंतन को परोसने का प्रयास किया जाता है। यदि पाठक नियमित इस समाचार पत्र से जुड़ने का प्रयास करें तो उन्हें अद्भुत और अनोखी जानकारी प्राप्त होती रहेगी । मैं समझता हूं कि पत्रकारिता का धर्म भी यही है कि वह सकारात्मक , अनोखी और अद्भुत जानकारी लोगों को उपलब्ध कराये । इस सब के लिए पत्र और पत्र परिवार बधाई और धन्यवाद का पात्र है । मैं पाठकों से यही अपील करूंगा कि ऐसे सकारात्मक चिंतन धारा से ओतप्रोत समाचार पत्र का वह अध्ययन अवश्य करें।

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