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वित्त मंत्री द्वारा कॅारपोरेट को छूट देने के कारण क्या रहे?

वित्त मंत्री सीतारमण ने कॉरपोरेट जगत की निराशा को असम बदलते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लिया है । वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कॉरपोरेट जगत को करों में ज़बरदस्त रियायत दी है । अब कॉरपोरेट जगत को दी गई छूटों की वजह से उन्हें वार्षिक 1.45 लाख करोड़ रुपए का लाभ होगा। इस घोषणा का परिणाम यह हुआ कि शेयर बाज़ार में 10 वर्ष की तेजी देखी गई, बंबई स्टॉक एक्सचेंज का संवेदनशील सूचकांक 1900 अंक तो नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का सूचकांक निफ़्टी 1100 अंक उछला। परिणाम यह हुआ कि सेंसेक्स 37,000 तो निफ़्टी 11,000 अंक पार कर गया।

जबसे केन्द्र की नई सरकार का बजट आया था तभी से कॉरपोरेट जगत में एक निराशा की भावना देखी जा रही थी । जिसकी क्षतिपूर्ति करने के लिए केंद्र सरकार ने अहम निर्णय लिया । कॉरपोरेट जगत में छाई निराशा के कारण शेयर बाज़ार बुरी तरह टूट रहा था और सूचकांक गोते लगा रहा था। 3 जून के बाद से अब तक शेयर बाज़ार के निवेशकों को लगभग 17.60 अरब रुपये का नुक़सान हो चुका था। इन सब परिस्थितियों के चलते सरकार के लिए भी यह आवश्यक हो गया था कि वह कारपोरेट जगत में छाई निराशा को दूर करे । अमेरिकी फ़ेडरल रिज़र्व में कटौती करने के अनुमान और घरेलू संस्थागत निवेशकों को घाटे की वजह से विगत 20 सितम्बर को सेंसेक्स 470.41 अंक टूट कर 36,093.47 पर आ गया था। निफ़्टी 135.85 अंक गिर कर 10,704.80 पर पहुँच गया था।

विश्लेषकों का कहना है कि बाज़ार से जुड़े लोगों को अर्थव्यवस्था को लेकर घनघोर निराशा थी, वे अपना हाथ खींच रहे थे, अपने पैसे निकाल रहे थे और इस वजह से शेयर बाज़ार बुरी तरह टूट रहा था। सरकार ने कर उगाही में 17.5 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद की थी, पर पहली छमाही में उसे सिर्फ़ 4.7 प्रतिशत ज़्यादा राजस्व ही मिला।

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने शुक्रवार को अपनी रिपोर्ट में रियल इस्टेट पर चिंता जताई थी, इससे भी शेयर बाजार परेशान था। बैंक और वित्तीय संस्थानों से जुड़ी कंपनियों के सूचकांक निफ़्टी बैंकिंग में गिरावट हुई थी, यस बैंक का सबसे बुरा हाल हुआ था। विदेशी और घरेलू संस्थागत निवेशकों ने ज़ोरदार बिकवाली की थी, घरेलू संस्थागत निवेशकों ने तीन दिन में 1,850 करोड़ रुपये निकाल लिए थे।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि इन सारी बातों के ऊपर सरकार की ओर से किसी तरह का समर्थन नहीं मिलना था। सरकार अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए कुछ नहीं कर रही थी और निवेशकों को लग रहा था कि जब सरकार ही कुछ नहीं कर रही है तो उनके पास खुश होने को कुछ नहीं है।

इन स्थितियों की वजह से सरकार को लगा था कि उसे कुछ न कुछ करना ही होगा , जिससे कि निवेशकों को राहत मिले और उनका सरकारी नीतियों में टूटा हुआ भरोसा फिर स्थापित हो। सरकार के लिए यह भी आवश्यक था कि विदेशी संस्थागत निवेशक भी उसके साथ हर स्थिति परिस्थिति में जुड़े रहें और वह छिटकने न पाएं , अर्थात सरकार विदेशी संस्थागत निवेशकों को खुश करना चाहती थी , क्योंकि वे बड़ी मात्रा में पैसे निकाल रहे थे। जिस समय देश की वित्त मंत्री सीतारमण ने यह निर्णय लिया , उसी समय प्रधानमंत्री मोदी विदेश जाने की तैयारी में भी हैं । अमेरिका जाकर वहां के उद्योगपतियों को भी प्रसन्न करना था , इसलिए इन परिस्थितियों में सरकार के लिए अनिवार्य हो गया था।

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