भारतीय धरोहर संगठन के छठे वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए जब ‘निशंक’ होकर नहीं कह पाए रमेश पोखरियाल निशंक अपने ‘मन की बात’
नई दिल्ली ।( विशेष संवाददाता ) यहां पर ‘भारतीय धरोहर ‘ संगठन की ओर से आयोजित किए गए एक विशेष कार्यक्रम में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘ निशंक ‘ उस समय ‘ सशंक ‘ नजर आए जब वह संस्कृत भाषा को डंके की चोट पर विश्व की सभी भाषाओं की जननी नहीं कह पाए । उन्होंने बात को चबाते हुए और तथ्य को छुपाते हुए , साथ ही अपने भीतर की बात रोककर यह कहने का प्रयास किया कि विश्व की सभी भाषाओं की जननी ‘ संस्कृत हो सकती है।’ इतना ही नहीं ऐसा कहने से पहले केंद्रीय मंत्री यह कहने से भी नहीं चूके कि यह उनका व्यक्तिगत मत है । बात साफ थी कि इस बात को देश का मानव संसाधन विकास मंत्री नहीं बोल रहा था , अपितु एक ‘ व्यक्ति ‘ बोल रहा था।
अब प्रश्न यह है कि हमारे केंद्रीय मंत्री के लिए ऐसी कौन सी समस्या थी कि वह स्पष्टत: अपना मत संस्कृत के विषय में नहीं रख पाए ? यदि इस प्रश्न का उत्तर टटोला जाए तो बात साफ होती है कि वह इस भय से ग्रस्त थे कि यदि उन्होंने संस्कृत को विश्व की सभी भाषाओं की जननी भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री की हैसियत से कह दिया तो अगले ही दिन उनके बयान को ‘ विवादित बयान ‘ कहकर न प्रकाशित कर दिया जाए।
जब देश के मंत्री ‘ भारतीय धरोहर ‘ पर बोल रहे हों और उस समय उनके भीतर इतनी शंका आशंकाएं घुसी हों कि वे उन्हें ‘ निशंक ‘ होकर न् बोलने के लिए प्रेरित कर रही हों , तब कैसे माना जा सकता है कि ऐसे मंत्री ‘ निशंक ‘ होकर सारे कार्य कर सकते हैं ?
दूसरी बात इन्हीं केंद्रीय मंत्री महोदय के वक्तव्य में यह देखने को मिली कि उन्होंने भारत को 1000 वर्ष तक विदेशी दासता में रहने वाला देश माना । यदि एक साहित्यकार व्यक्ति जो देश का शिक्षा मंत्री भी हो देश के इतिहास के इस बड़े झूठ को ही तोते की भान्ति रटकर लोगों के सामने प्रकट कर रहा हो तो यह भी देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा । यद्यपि श्री निशंक ऐसी पृष्ठभूमि से हैं जहां यह समझाया जाता है कि भारत 1000 वर्ष तक विदेशी आक्रामक शासकों से लड़ते रहने वाला देश है । उसने कभी भी गुलामी को स्वीकार नहीं किया और स्वाधीनता की रक्षा के लिए सदैव संघर्ष करता रहा । दूसरे यदि भारत में 1206 में गुलाम वंश की स्थापना के साथ ही विदेशी शासन स्थापित हो गया था तो भी 1947 तक इस विदेशी शासन को 741 वर्ष से ही होते हैं , तब भी यह कैसे कहा जा सकता है कि भारत 1000 वर्ष तक गुलाम रहा ? उन्हें यह बताना चाहिए था कि विदेशी शासकों के गुलामी के इस तथाकथित काल में भी भारत के अनेकों ऐसे क्षेत्र या प्रांत रहे जहां पर विदेशी शासक एक दिन भी शासन स्थापित नहीं कर पाए ।श्री निशंक को यह जानकारी होनी चाहिए कि कोई भी देश यदि 1000 वर्ष तक निरंतर मौन रहकर किसी दूसरे देश की गुलामी स्वीकार कर लेता है तो फिर उसका अस्तित्व नहीं रह सकता। भारत का अस्तित्व केवल इसीलिए है कि उसने गुलामी को कभी मन से स्वीकार नहीं किया और विदेशियों को यहां से भगाने के लिए एक-एक क्षण एक-एक पल लड़ता रहा। ‘भारतीय धरोहर ‘ के कार्यक्रम में हमारे शिक्षा मंत्री को इसी तथ्य और सत्य को सत्यापित और स्थापित करना चाहिए था।
श्री रमेश पोखरियाल निशंक के भाषण की तीसरी निराशाजनक बात यह यह थी कि उन्होंने देश के मानव संसाधन विकास मंत्री की हैसियत से या शिक्षा मंत्री की हैसियत से एक भी ऐसी बात नहीं कही जिससे यह कहा जा सके कि वह ‘ भारतीय धरोहर ‘ के प्रति गंभीर हैं और उसकी संरक्षा और सुरक्षा को लेकर किसी योजना पर कार्य कर रहे हैं ?
इसके विपरीत केंद्रीय मंत्री एक आम आदमी की भांति उपदेशात्मक शैली में बोलते रहे और अपने विद्वान होने का प्रदर्शन मात्र करते रहे।
‘भारतीय धरोहर ‘ के संदर्भ में सभी उपस्थित जनों को यह अपेक्षा थी कि देश के केंद्रीय मंत्री के रूप में श्री निशंक कोई महत्वपूर्ण घोषणा करेंगे और उसकी संरक्षा और सुरक्षा के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए जो कुछ कहेंगे डंके की चोट कहेंगे । वास्तव में प्रगतिशील लेखक मंच के तथाकथित विद्वानों और उनके द्वारा स्थापित की गई धारणाओं को ढहाने का साहस करने के लिए सचमुच 56 इंची सीने की आवश्यकता है । लेकिन अपने केंद्रीय मंत्री के भाषण को सुनकर लगा कि वह लकीर के फकीर बने रहने में ही भलाई समझते हैं । कल को उन पर तथाकथित प्रगतिशील लेखक किसी तरह का आरोप ना लगाएं या उनके बयानों को विवादित न् कहें , इसलिए सत्य को लपेटकर करते रहने की कांग्रेसी प्रवृत्ति भाजपा के नेताओं के भीतर भी देखने को मिल रही है । उसी का प्रमाण श्री निशंक ने अपने इस भाषण में दिया।पेज 3 की टॉप
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भारतीय धरोहर संगठन के छठे वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए
जब ‘निशंक ‘ होकर नहीं कह पाए रमेश पोखरियाल निशंक अपने ‘मन की बात ‘
नई दिल्ली ।( विशेष संवाददाता ) यहां पर ‘भारतीय धरोहर ‘ संगठन की ओर से आयोजित किए गए एक विशेष कार्यक्रम में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘ निशंक ‘ उस समय ‘ सशंक ‘ नजर आए जब वह संस्कृत भाषा को डंके की चोट पर विश्व की सभी भाषाओं की जननी नहीं कह पाए । उन्होंने बात को चबाते हुए और तथ्य को छुपाते हुए , साथ ही अपने भीतर की बात रोककर यह कहने का प्रयास किया कि विश्व की सभी भाषाओं की जननी ‘ संस्कृत हो सकती है।’ इतना ही नहीं ऐसा कहने से पहले केंद्रीय मंत्री यह कहने से भी नहीं चूके कि यह उनका व्यक्तिगत मत है । बात साफ थी कि इस बात को देश का मानव संसाधन विकास मंत्री नहीं बोल रहा था , अपितु एक ‘ व्यक्ति ‘ बोल रहा था।
अब प्रश्न यह है कि हमारे केंद्रीय मंत्री के लिए ऐसी कौन सी समस्या थी कि वह स्पष्टत: अपना मत संस्कृत के विषय में नहीं रख पाए ? यदि इस प्रश्न का उत्तर टटोला जाए तो बात साफ होती है कि वह इस भय से ग्रस्त थे कि यदि उन्होंने संस्कृत को विश्व की सभी भाषाओं की जननी भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री की हैसियत से कह दिया तो अगले ही दिन उनके बयान को ‘ विवादित बयान ‘ कहकर न प्रकाशित कर दिया जाए।
जब देश के मंत्री ‘ भारतीय धरोहर ‘ पर बोल रहे हों और उस समय उनके भीतर इतनी शंका आशंकाएं घुसी हों कि वे उन्हें ‘ निशंक ‘ होकर न् बोलने के लिए प्रेरित कर रही हों , तब कैसे माना जा सकता है कि ऐसे मंत्री ‘ निशंक ‘ होकर सारे कार्य कर सकते हैं ?
दूसरी बात इन्हीं केंद्रीय मंत्री महोदय के वक्तव्य में यह देखने को मिली कि उन्होंने भारत को 1000 वर्ष तक विदेशी दासता में रहने वाला देश माना । यदि एक साहित्यकार व्यक्ति जो देश का शिक्षा मंत्री भी हो देश के इतिहास के इस बड़े झूठ को ही तोते की भान्ति रटकर लोगों के सामने प्रकट कर रहा हो तो यह भी देश का दुर्भाग्य ही माना जाएगा । यद्यपि श्री निशंक ऐसी पृष्ठभूमि से हैं जहां यह समझाया जाता है कि भारत 1000 वर्ष तक विदेशी आक्रामक शासकों से लड़ते रहने वाला देश है । उसने कभी भी गुलामी को स्वीकार नहीं किया और स्वाधीनता की रक्षा के लिए सदैव संघर्ष करता रहा । दूसरे यदि भारत में 1206 में गुलाम वंश की स्थापना के साथ ही विदेशी शासन स्थापित हो गया था तो भी 1947 तक इस विदेशी शासन को 741 वर्ष से ही होते हैं , तब भी यह कैसे कहा जा सकता है कि भारत 1000 वर्ष तक गुलाम रहा ? उन्हें यह बताना चाहिए था कि विदेशी शासकों के गुलामी के इस तथाकथित काल में भी भारत के अनेकों ऐसे क्षेत्र या प्रांत रहे जहां पर विदेशी शासक एक दिन भी शासन स्थापित नहीं कर पाए ।श्री निशंक को यह जानकारी होनी चाहिए कि कोई भी देश यदि 1000 वर्ष तक निरंतर मौन रहकर किसी दूसरे देश की गुलामी स्वीकार कर लेता है तो फिर उसका अस्तित्व नहीं रह सकता। भारत का अस्तित्व केवल इसीलिए है कि उसने गुलामी को कभी मन से स्वीकार नहीं किया और विदेशियों को यहां से भगाने के लिए एक-एक क्षण एक-एक पल लड़ता रहा। ‘भारतीय धरोहर ‘ के कार्यक्रम में हमारे शिक्षा मंत्री को इसी तथ्य और सत्य को सत्यापित और स्थापित करना चाहिए था।
श्री रमेश पोखरियाल निशंक के भाषण की तीसरी निराशाजनक बात यह यह थी कि उन्होंने देश के मानव संसाधन विकास मंत्री की हैसियत से या शिक्षा मंत्री की हैसियत से एक भी ऐसी बात नहीं कही जिससे यह कहा जा सके कि वह ‘ भारतीय धरोहर ‘ के प्रति गंभीर हैं और उसकी संरक्षा और सुरक्षा को लेकर किसी योजना पर कार्य कर रहे हैं ?
इसके विपरीत केंद्रीय मंत्री एक आम आदमी की भांति उपदेशात्मक शैली में बोलते रहे और अपने विद्वान होने का प्रदर्शन मात्र करते रहे।
‘भारतीय धरोहर ‘ के संदर्भ में सभी उपस्थित जनों को यह अपेक्षा थी कि देश के केंद्रीय मंत्री के रूप में श्री निशंक कोई महत्वपूर्ण घोषणा करेंगे और उसकी संरक्षा और सुरक्षा के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह करते हुए जो कुछ कहेंगे डंके की चोट कहेंगे । वास्तव में प्रगतिशील लेखक मंच के तथाकथित विद्वानों और उनके द्वारा स्थापित की गई धारणाओं को ढहाने का साहस करने के लिए सचमुच 56 इंची सीने की आवश्यकता है । लेकिन अपने केंद्रीय मंत्री के भाषण को सुनकर लगा कि वह लकीर के फकीर बने रहने में ही भलाई समझते हैं । कल को उन पर तथाकथित प्रगतिशील लेखक किसी तरह का आरोप ना लगाएं या उनके बयानों को विवादित न् कहें , इसलिए सत्य को लपेटकर करते रहने की कांग्रेसी प्रवृत्ति भाजपा के नेताओं के भीतर भी देखने को मिल रही है । उसी का प्रमाण श्री निशंक ने अपने इस भाषण में दिया।
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