पहलगाम की घटना और मज़हबी तालीम

- देवेंद्र सिंह आर्य
विगत 22 अप्रैल को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने जिस प्रकार कश्मीर के पहलगाम में 28 पर्यटकों की नृशंस हत्या कर खून की होली खेली है, वह सारे देश के लिए हतप्रभ करने वाली घटना है। इस घटना को केंद्र सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया है। जिसके चलते पाकिस्तान से सारे राजनयिक संबंध समाप्त करते हुए केंद्र सरकार ने सिंधु जल समझौता भी रद्द कर दिया है। सारा देश पाकिस्तान से प्रतिशोध की मांग कर रहा है। लोग विभिन्न प्रकार से केंद्र सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि देश की सामान्य इच्छा के दृष्टिगत केंद्र सरकार यथाशीघ्र कठोर निर्णय ले। लोगों की एक ही इच्छा है कि पाकिस्तान को इस बार मुंह तोड़ जवाब दिया जाए।
यह हमला उस समय हुआ जब हमारे प्रधानमंत्री जेद्दा सऊदी अरब की यात्रा पर गए हुए थे और अमेरिका के उपराष्ट्रपति वैंस भारत की यात्रा पर आए हुए थे। प्रधानमंत्री को अपना सऊदी अरब दौरा बीच में छोड़कर आना पड़ा ।यहां यह बात ध्यान देने योग्य है कि जब भी कोई विदेशी बड़ा नेता भारत भ्रमण पर आता है तब तब पाकिस्तान बहुत बड़ी आतंकी वारदात कर देता है। इसके अनेक उदाहरण हैं जो भूतकाल में घटित हुए हैं। इसके पीछे पाकिस्तान का एक ही उद्देश्य होता है कि भारत भूमि पर आने वाले विदेशी नेताओं के आगमन पर यदि ऐसी घटना होगी तो विश्व समुदाय का ध्यान कश्मीर समस्या की ओर जाएगा। जिससे पाकिस्तान को इस समस्या को विश्व मंचों पर उठाने का बहाना मिलेगा। भारी जन आक्रोश को देखते हुए प्रधानमंत्री श्री मोदी द्वारा पहलगाम हमले के दृष्टिगत बुधवार को नई दिल्ली में राष्ट्र की सुरक्षा पर कैबिनेट समिति की बैठक आहूत की गई। जिसमें पाकिस्तान को कड़ा संदेश दिया गया तथा यह भी कहा गया है कि पहलगाम हमले के सूत्रधारों को सजा दी जाएगी और साजिश कर्ता पर भी कार्रवाई होगी।
जहां तक सिंधु जल समझौते की बात है तो इस संदर्भ में हमें ध्यान रखना चाहिए कि वर्ष 1960 में उन तीन पश्चिमी नदियों का पानी तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने पाकिस्तान को दिया था तथा शेष तीन पूर्वी नदियों का पानी भारतवर्ष को दिया था। इस समझौते के तहत नेहरू ने 80% पानी पाकिस्तान को दिया और 20% पानी पर प्रयोग करने के लिए भारतीयों को अधिकार दिया। सिंधु जल समझौते की इस प्रकार की शर्त से यह स्पष्ट होता है कि नेहरू की नीतियां पाकिस्तान परस्ती की थीं । उन्हें भारतीय हितों के विपरीत पाकिस्तान के हितों की चिंता अधिक थी। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि कांग्रेस में उनकी विचारधारा के उनके उत्तराधिकारी आज भी इसी प्रकार की नीतियों पर चल रहे हैं।
नेहरू और उसके उत्तराधिकारियों का पाकिस्तान के प्रति झुकाव क्यों हैं ?इसके लिए श्री अरविंद घोष की पुस्तक पढ़ें जिसमें लिखा है कि नेहरू खानदान में मुगल वंश से संबंधित लोग हैं। नेहरू ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि’ मैं हिंदू दुर्घटनावश हूं’ । कांग्रेस सरकार में विदेश मंत्री रहे नटवर सिंह ने भी इस संदर्भ में लिखा है कि एक बार इंदिरा गांधी जब अफगानिस्तान की यात्रा पर थीं तो वह प्रोटोकॉल को तोड़ते हुए जबरन बाबर की कब्र पर जाकर बैठ गई थीं। वहां पर उन्होंने फातिहा पढ़ा था । फातिहा पढ़ते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। उन्होंने रोते हुए यह कहा था कि आज मुझे बहुत फक्र है कि मैं अपने पूर्वज की कब्र पर बैठी हूं। उन्होंने बाबर को यह विश्वास लाया था कि आपका वंशजों के हाथों में हिंदुस्तान की बागडोर है। बस यही कारण है कि राहुल गांधी जब भी विदेश यात्रा पर जाते हैं तो वह भी भारत के हितों के विरुद्ध बोलते हैं। उनका और उनकी मां सोनिया गांधी का भारत और भारतीयता के विरुद्ध दृष्टिकोण जगजाहिर है। हमारे प्रधानमंत्री द्वारा पहला निर्णय लिया गया है कि 6 नदियों के जल प्रबंधन के संबंध में किया गया समझौता रद्द किया जाता है ।दूसरा निर्णय है कि अटारी चेक पोस्ट को तत्काल प्रभाव से बंद किया जाए ।तीसरा निर्णय है कि पाकिस्तान के नागरिकों को तुरंत वीजा प्राप्त करने की सुविधा और छूट समाप्त की जाती है। जो 1992 से तत्कालीन शासन द्वारा लागू हुई थी। चौथा निर्णय है कि भारत पाकिस्तानी उच्च आयोग में तैनात पाकिस्तान सैन्य अधिकारियों ,नौसेना और वायु सेना के सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति घोषित कर भारत छोड़ने का आदेश दिया जाए।
सुरक्षा समिति का पांचवा निर्णय है कि पाकिस्तान के उच्च आयोग के कर्मचारियों की संख्या 55 से घटकर 30 कर दी जाए। इस संदर्भ में हमारा अनुरोध है कि चीन में एक प्रांत शिनजियांग है जिसमें मुस्लिम बाहुल्य है। चीन ने वहां पर इस्लाम मातावलंबियों के इस्लामी रीति रिवाजों को पूर्णतया समाप्त करने के दृष्टिकोण से और जिहादी विचारधारा को खत्म करने के उद्देश्य से गैर मुसलमान के प्रति मानवीय संवेदनाओं की रक्षा हेतु इस्लामी शिक्षा पर सरकारी नियंत्रण स्थापित कर दिया है। मुसलमानों के मस्जिद और मदरसों में इस्लाम की मान्यताओं का अथवा मजहबी शिक्षा के नाम पर कुछ भी पढ़ाये जाने की अनुमति नहीं है । क्योंकि जब उनको ऐसी शिक्षा ही नहीं मिलेगी तो वह मजहब के नाम पर अलगाववाद की बात नहीं कर पाएंगे। चीनी जनता के साथ एकत्व की भावना रखेंगे । भारतवर्ष को भी यही करना चाहिए। पाकिस्तान के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करना मुझे लगता है कि समस्या को और भी अधिक उलझा देना होगा। वर्तमान विश्व में कई देशों में हम मुसलमानों के कारण पैदा होने वाले तनाव को देख रहे हैं। जहां गृह युद्ध जैसी स्थिति बनी हुई है। मारकाट मच रही है, लेकिन लोग अपनी आतंकी आदतों से बाज नहीं आ रहे हैं। जिस प्रकार फलस्तीन इसराइलियों के द्वारा मारकाट करने तहस-नहस करने के बावजूद भी अपनी आतंकवादी और मुस्लिमपरस्ती से बाज नहीं आ रहे हैं ।इस प्रकार से भारतवर्ष की सैन्य कार्रवाई से भी बहुत अधिक लाभ मिलने वाला नहीं है बल्कि शिक्षा में परिवर्तन करना चाहिए। शिक्षा को सरकार अपने हाथ में ले। मदरसों और मस्जिदों में पढ़ाई जा रही अलगाववाद की भावनाओं पर रोक लगनी चाहिए। चीन ने अपने देश में अलगाववाद एवं आतंकवाद को ऐसा करके ही शांति स्थापित की हुई है। सारे मदरसे और मस्जिदों को सरकार नियंत्रित करे। इसमें विपक्षी नेताओं को भी राष्ट्र हित में सरकार का सहयोग करना चाहिए।
बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बलूच और पश्तो विद्रोहियों से पाकिस्तान की सेना परास्त हुई है। इससे उसकी खीझ बढ़ी है और वह अपने देश की जनता का ध्यान बंटाने के लिए भारतवर्ष पर आतंकवादी हमले कराती रही है। जो देश पहले मुसलमानों के प्रति उदारवादी रहते थे, उनमें फ्रांस और जर्मनी का उदाहरण आप ले सकते हैं। आज उन देशों ने मुस्लिम कट्टरपंथी मस्जिदों पर ताले लगाए हुए हैं, लेकिन भारतवर्ष में इस पर कोई विचार नहीं होता है। बर्मा ने अपने देश में क्या किया है? यह किसी से छुपा नहीं है । प्रत्येक प्रकार से पाकिस्तान को घेरना होगा। हमारे पूर्व में स्थित बांग्लादेश भी भारत को आंख दिखाने का प्रयास कर रहा है, जो चीन के प्रभाव में जा चुका है। चीन ,पाकिस्तान ,बांग्लादेश फिलिस्तीन,तुरकिए आदि भारत के विरुद्ध गतिविधियों में साजिश के तहत शामिल हैं। इस पहलगाम की घटना को इस दृष्टिकोण से भी हमें देखना और पढ़ना होगा कि पाकिस्तान के जिहादी आतंकवादियों के साथ फलस्तीन के आतंकवादी भी शामिल हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू कश्मीर के स्थानीय निवासी भी केंद्रीय सरकार को पूर्णतया समर्थन नहीं दे रहे हैं। जो लोग आतंकवाद की निंदा कर रहे हैं, उनमें ऐसे लोग ज्यादा हैं जो पर्यटकों से मुनाफा कमाकर रोजी-रोटी चलाते हैं। वह स्वार्थ वश कर रहे हैं । हमें गलतफहमी में नहीं रहना चाहिए क्योंकि उनका हृदय परिवर्तन नहीं हुआ है। हमने देखा है कि स्थानीय लोग आतंकवादियों की सहायता करते हैं और केंद्र सरकार द्वारा कश्मीर में सरकारी नौकरियों में जो विस्थापित हिंदू भेजे गए हैं, उनके विषय में जानकारी स्थानीय निवासी आतंकवादियों तक पहुंचाते हैं। ऐसे लोग भारतवर्ष को अपना देश नहीं मानते हैं। हमारी खुफिया एजेंसी, हमारी सेना , स्थानीय सरकार कैसे विफल हो गई ? वहां आतंकवादी पर्यटन स्थल पर आते हैं, गोली चलाते हैं, और मार कर भाग जाते हैं। खुफिया तंत्र को इसकी कोई जानकारी नहीं हो पाती । सीमा पार से आतंकवादियों के घुसपैठ जारी है। खुफिया तंत्र सुरक्षा बलों और केंद्र सरकार को और अधिक सतर्कता बरतनी होगी। भारत को चौकसी बढ़ानी होगी। हमें इस खोखले नारे पर ध्यान नहीं देना होगा कि आतंकवादियों का कोई मजहब नहीं होता।
पहलगाम की घटना ने स्थिति साफ कर दी है कि आतंकवादी का भी कोई मजहब होता है। उसके मजहब की तालीम का ही यह परिणाम होता है कि वह अधर्म के काम करता है। इसलिए उस मजहबी तालीम को यथाशीघ्र प्रतिबंधित करना समय की आवश्यकता है।
– देवेंद्र सिंह आर्य एडवोकेट
ग्रेटर नोएडा

लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।