दार्शनिकों का अनोखा संसार यूनानी दार्शनिक’ डायोजिनीज’

Diogenes

लेखक – आर्य सागर

भारतीय दार्शनिक हो या पश्चिमी दार्शनिक उनका अपना अनोखा ही संसार रहा है। मान -अपमान ,लाभ -हानि,गरीबी- अमीरी से दूर स्वतंत्र शांत निर्भीक जीवन उनका रहा है। दार्शनिकों के इसी अनोखे संसार में एक यूनानी दार्शनिक थे डायोजिनीज, ईसा से 320 वर्ष पूर्व इनका काल माना जाता है ।यह वही काल है जब अपने प्यारे भारत वर्ष में चंद्रगुप्त मौर्य व आचार्य चाणक्य की जोड़ी अखंड भारत की सीमाओं का विस्तार कर रही थी खंड-खंड आर्यावर्त को एकीकृत कर रही थी।उसी दौरान यूनान का वीर युवक सिकंदर भारत फतह का साहसिक सपना देख रहा था। यूनान के इतिहास में यह पहली बार था भारत की ओर किसी ने नजरे गड़ाई हो यह भी उल्लेखनीय ऐतिहासिक तथ्य है महाभारत काल से ही यूनान भारत के कुरुवंशी राजाओं के अधीन रहा था।महाभारत के आदिपर्व में इसका उल्लेख है महाराजा शांतनु के पूर्व जितने भी राजा हुए उनके सफल सैन्य अभियान यूनान में रहे हैं खैर इस प्रसंग को यही छोड़ना होगा सम्राटों का इतिहास तो उथल-पुथल से भरा रहा है और खुद सम्राट भी दार्शनिकों से भयभीत होते रहे हैं हमारी समस्त ऋषि महर्षि दार्शनिक ही थे राजा महाराजाओं की सभा में जब-जब वह प्रवेश करते थे तो सभाएं शांत सजग हो जाती थी सिंहासन डोल उठते थे।

डायोजिनीज का जन्म तुर्की के सिनोप में हुआ था। जब यह किशोर थे तो उनके पिता को वहां एक मुद्रा संबंधी अपराध में दोषी पाए जाने पर दोनों पिता पुत्र को वहां से अपमानित कर निर्वासित कर दिया गया। इस घटना ने किशोर डायोजिनीज का जीवन बदल कर रख दिया ।यह सूचक है इस बात का वियोग से ही नहीं अपमान से भी वैराग्य जागृत हो जाता है।

डायोजिनीज यूनान के कोरिंथ शहर में आ गये फिर यूनान के ही होकर रह गए कोई उन्हें सनकी बूढ़ा कहता तो कोई उन्हें पागल फकीर कहता। डायोजिनीज की हरकतें बेहद अजीबोगरीब थी उनकी सबसे अजीबोगरीब हरकत थी वह दिन के भरे उजाले में लालटेन लेकर यूनान के बाजारों में घूमते थे लोगों के चेहरे पर लालटेन लगाते । जब लोग पूछते यह आप क्या कर रहे हैं दिन में भला लालटेन की क्या आवश्यकता? तो वह कहते में एक सच्चा इंसान को ढूंढ रहा हूं ।आप लोग अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और हो। तुम्हारा शिष्टाचार ढकोसला है। जो अपने आप को जितना बड़ा शिष्टाचारी सिद्ध करता है वह उतना ही बड़ा पाखंडी होता है ऐसा डायोजिनीज का मानना था।

कुछ लोग जब डायोजिनीज को चिढ़ाते हुए कहते कि तुम्हें सिनोप तुर्की से निर्वासित कर वहां के लोगों ने ठीक किया तो वाककुशल डायोजिनीज कहता में उनका आजीवन कर्जदार रहूंगा यदि वह ऐसा ना करते तो मैं आत्म ज्ञान कैसे हासिल कर पाता और रहा मेरे निर्वासन का विषय उन लोगों ने मुझे निर्वासित नहीं किया अपितु मैंने उन्हें उसी एक स्थान शहर में रहने का दंड दिया है।

डायोजिनीज जब युवक थे तो यूनान के किसी भी प्रसिद्ध दार्शनिक ने उसे अपना शिष्य नहीं बनाया। लेकिन धुन के धनी डायोजिनीज कहां हार मानने वाले थे उन्होंने अनेक वर्षों तक यूनान के उस काल के एक और महान दार्शनिक प्लूटो के प्रतिस्पर्धी दार्शनिक एंटिसथनेस से मिन्नतें की एक बार तो उस बुढ़े दार्शनिक ने क्रोधित होकर डंडों से डायोजिनीज को पीटा लेकिन शिष्य की जिद के आगे वह हार मान गए इस प्रसंग ने कठ उपनिषद के उस प्रसंग को स्मरण करा दिया जहां यम नाम का शिष्य नचिकेता आचार्य से मृत्यु के बाद के जीवन को लेकर अपने प्रश्नों के समाधान की जिद कर बैठता है और अपने आचार्य के घर द्वार पर डेरा डाल देता है जब तक उसकी जिज्ञासाओं का समाधान नहीं होता। शिष्य की जिद के सामने हारकर आचार्य नचिकेता उसे उपनिषदों के गूढ दार्शनिक तत्वज्ञान का उपदेश करते हैं।

डायोजिनीज यूनान के दर्शन में निंदकवादी दार्शनिक विचारधारा के दार्शनिक माने जाते हैं। प्लूटो ने एक बार मनुष्य को परिभाषित करते हुए कहा कि- मनुष्य बगैर पंखों का दो पैर का प्राणी है। मनुष्य की इस परिभाषा को सुनकर डायग्नोसिस वहीं पहुंच गए जहां प्लूटो अपने शिष्यों को पढ़ा रहे थे एक मुर्गी को अपने साथ ले गए और उस मुर्गी के पंखों को नोच डाला और कहा कि यह देखो प्लूटो का मनुष्य। प्लूटो के शिष्य हंस पड़े प्लूटो खींज कर रह गए।

डायोजिनीज व्यक्तिगत व सामाजिक संपत्ति अर्जित करने के खिलाफ थे उनकी मान्यता थी धन व प्रतिष्ठा की इच्छा अप्राकृतिक है यह हमें कमजोर मानव बनाती है यह हमें अमानवीय स्वार्थी बनाती है। हमें जो कुछ मिलता है वह खुद से ही मिलना चाहिए जैसे आत्मविश्वास खुशी आदि।उनके अनुसार यदि व्यक्ति संपत्ति अर्जित करता है तो कहीं ना कहीं उसके स्वार्थ उसके आगे आ जाएंगे ऐसे में वह गलत की निंदा नहीं कर पाएगा जबकि एक सच्चे निंदक को बिना किसी डर के बोलना चाहिए चाहे एक सम्राट हो या एक आम व्यक्ति या शासन। सामाजिक रुढियों को लेकर उनका विचार यह था कि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता को छीन लेती है व्यक्ति ना चाहते हुए भी इनका पालन करता है।

डायोजिनीज वस्त्र के नाम पर एक कपड़ा जो बहुत फटा मेला होता था उसे अपने शरीर पर लपेट कर रखते थे उनका कोई घर नहीं था जहां उन्हें नींद आ जाती तो वह खुले आसमान में तारों की छांव पर रेत पर समुद्र के किनारे कब्रिस्तानों के आसपास कहीं भी सो जाते खाने को उन्हें भिक्षा में जो भी मिल जाता उन्हें खा लेते चार-पांच आवारा कुत्ते उनके पास हमेशा रहते थे। एक शराब का बड़ा सा पीपा वह अपने साथ रखते थे जिसमें वह कभी-कभी घुसकर सो जाते थे एक शरारती युवक ने जब उस पीपे को तोड़ दिया तो डायोजिनीज ने कहा अच्छा हुआ मुझे इस पीपे से मुक्ति मिल गई ।पानी पीने के लिए वह अपने पास एक प्याली रखते थे लेकिन एक बार एक नदी के किनारे जब उन्होंने एक बच्चों को हाथों से पानी पीते हुए देखा तो उन्होंने उसे प्याली को तोड़ दिया उन्होंने कहा मैं कितना मूर्ख था जो इस प्याली को आज तक अपने साथ ढो रहा था।

डायोजिनीज को लेकर एक प्रसिद्ध किस्सा है जो विश्व विजेता सिकंदर से जुड़ा हुआ है सिकंदर ने जब पूरे यूनान मिश्र फारस को जीत लिया तो वह भारत फतह करने का आशीर्वाद लेने के लिए डायोजिनीज की प्रसिद्धि सुनकर उनके पास आया डायोजिनीज समुद्र के किनारे रेत पर लेटे हुए थे जैसे ही विश्व विजेता सिकंदर उसके पास पहुंचता है तो वह डायोजिनीज से कहता है डायोजिनीज में यूनान का सम्राट हूं और सिकंदर उसको अपनी उपलब्धि बताने लगा जब सिकंदर ने डायोजिनीज से यह कहा कि तुम्हें क्या चाहिए तुम्हें कुछ आवश्यकता तो नहीं है तो डायोजिनीज ने केवल इतना कहा मेरे सामने से हट जाओ है तुम मेरी धूप को रोक रहे हो। सिकंदर ने जब डायोजिनीज की आंखों को देखा उसके चेहरे को तेज को देखकर सिकंदर अचानक दंग रह गया।

सिकंदर खुद हैरान था जिसके सामने बड़े-बड़े योद्धा भी आंख उठाकर बात नहीं कर सकते थे उसके सामने एक नंगा फकीर निश्चितता से आनंदित होकर पड़ा हुआ है सिकंदर ने जब दूसरा प्रश्न पूछना चाहा तो डायोजिनीज ने कहा तुम डरे हुए इंसान हो मौत से डरे हुए हो इसलिए तुम दुनिया जीतना चाहते हो लेकिन याद रखना जब तुम्हारा मौत से सामना होगा तुम्हारा यह वहम टूट जाएगा तुम्हें भी एक दिन खाली हाथ जाना होगा बताया जाता है सिकंदर ने जाते-जाते डायोजिनीज से कहा था कि यदि इस जीवन में मुझे मौका मिला तो में डायोजिनीज बनना चाहुंगा क्योंकि तुम फकीर होकर भी बादशाह हो।

इसके बाद बताया जाता है सिकंदर की जानलेवा आंतों के संक्रमण दस्त के कारण मृत्यु हो गई बताया जाता है सिकंदर ने अपने सैन्य अधिकारियों कर्मचारियों से कहा था जब उसका जनाजा निकले तो उसके दोनों हाथ जनाजे से बाहर निकाल देना जिससे यह दुनिया भी देख ले की दुनिया को जीतने वाला भी दुनिया से खाली हाथ जा रहा है ।

डायग्नोज सिकंदर के बाद भी जीवित रहा 90 वर्ष का उसने लंबा जीवन पाया चलते-चलते डायोजिनीज की एक और अजीबोगरीब हरकत के विषय में आपको बता दूं डायोजिनीज सार्वजनिक स्थानों पर खुले में पेशाब कर देते थे लोग उनकी इस कृत्य की जब आलोचना करते तो वह कहता जब कोई कार्य एकांत में करना निंदक नहीं है तो वह सार्वजनिक तौर पर करने से कैसे निन्दित घृणित हो जाता है, यह कोई मुझे बतायेगा।

डायोजिनीज का यह तर्क कितना उचित या अनुचित है इसका निर्णय में आप पाठको पर छोड़ता हूं।

दार्शनिकों के संसार की यह लेखमाला आगे भी जारी रहेगी।

लेखक – आर्य सागर
तिलपता ग्रेटर नोएडा

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