अमर उजाला में छपी एक खबर के अनुसार रबींद्रनाथ टैगोर की बहन की बेटी से हो गया था गांधी को प्रेम, मानते थे ‘आध्यात्मिक पत्नी’।
राष्ट्रपिता और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी को सरला देवी चौधरानी से प्रेम हो गया था। सरला देवी चौधरानी प्रगतिशील महिला थीं और उस वक्त लाहौर में अपने पति के साथ रहती थीं। महात्मा गांधी, सरला देवी चौधरानी के आकर्षक व्यक्तित्व की तरफ आकर्षित हो गए थे। प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब में इस बात का जिक्र किया है।
ज्ञात रहे कि प्रगतिशील महिला उसे ही कहा जाता है जो भारत की परिवार की शालीन परंपराओं में विश्वास नहीं रखती हो अर्थात पति के प्रति समर्पित न रहकर अन्यत्र भी संबंध बनाने में विश्वास रखती हो । भारत की परंपरा जिसे रूढ़िवाद दिखाई देती हों और पशु पक्षियों की भांति इधर-उधर संबंध बनाना अच्छा लगता हो । आधुनिक साहित्यकारों ने प्रगतिशीलता का अर्थ कुछ ऐसा ही लिया है । समाज में ऐसे तथाकथित प्रगतिशील लोगों या लेखकों के कारण अव्यवस्था फैलती है । फिर कहते हैं कि सामाजिक मूल्यों का पतन हो रहा है जबकि शब्द स्वयं ऐसे गढ़ गढ़ कर देते हैं कि उससे अस्त व्यस्तता और सामाजिक अव्यवस्था फैलनी निश्चित होती है।
उक्त समाचारपत्र के अनुसार सरला देवी चौधरानी, गुरुदेव रबींद्रनाथ टैगोर के बहन की बेटी थीं। रबींद्रनाथ टैगोर की ही तरह उनकी भांजी सरला देवी चौधरानी भी कविताएं लिखती थीं। उनकी आवाज भी बेहद मधुर थी और अक्सर अंग्रेजों से आजादी दिलाने के लिए होने वाली बैठकों के दौरान वह गाना गाया करती थीं।
महात्मा गांधी ने भी सरला देवी चौधरानी को गाते हुए सुना था। रामचंद्र गुहा ने अपनी किताब ‘गांधी- द इयर दैट चेंज्ड द वर्ल्ड’ में बताया है कि सरला देवी चौधरानी इंडिपेंडेंट माइंडेड थीं और उनका व्यक्तित्व करिश्माई था।
सरला देवी चौधरानी की रुचि- भाषा, संगीत और लेखन में बेहद गहरी थी। महात्मा गांधी लाहौर में सरला के घर ही रुके थे। उस वक्त सरला देवी के पति स्वतंत्रता सेनानी रामभुज दत्त चौधरी जेल में थे। गांधी और सरला दोनों एक दूसरे के करीब रहे हैं। यहां तक कि गांधी सरला को अपनी ‘आध्यात्मिक पत्नी’ बताते थे। हालांकि बाद के दिनों में गांधी ने ये भी माना कि इस रिश्ते की वजह से उनकी शादी टूटते-टूटते बची।
कई अन्य विद्वानों ने भी इस पर खुलकर लिखा है कि गांधी जी के अनेकों महिलाओं से संबंध थे । उनकी महिला मित्रों के साथ होने वाली उनकी चर्चाओं से कस्तूरबा गांधी बहुत दुखी रहती थीं ।
यह भी कहा जाता है कि सुई तक को किसी को चुभाने में हिंसा देखने वाले गांधी ने कस्तूरबा गांधी की कई बार पिटाई भी की थी। इसका कारण यही था कि कस्तूरबा गांधी उनकी ‘ अनीति ‘ और ‘प्रेम ‘ का विरोध करती थीं ।
जिसे भारत के साहित्य में अनीति या अनैतिकता मानकर ‘ अवैध संबंध ‘ कहा जाता है उसे हमारे यहां बड़े नेताओं ने अपने लिए ‘ प्रेम ‘ में बदल दिया । इसका समाज पर इतना घातक प्रभाव पड़ा यह अब सब देख रहे हैं , जिस समाज में ‘प्रगतिशील ‘ लोग अनैतिकता नित्य प्रति बढ़ावा देते जा रहे हैं। इस देश में अनेकों बेतुकी परिभाषाएं स्थापित की गई हैं । उनमें एक यह भी है कि तथाकथित बड़े लोग अनीति करें तो वह ‘ प्रेम ‘ कहलाती है और गरीब करें तो वह ‘ अवैध संबंध ‘ होकर अपराधिक मामला बन जाता है।
देश के ‘चाचा ‘ और ‘ बापू ‘ का सार्वजनिक जीवन और निजी जीवन अलग अलग हो सकते हैं । उनके अनुयायियों पर भी यही बात लागू होगी , लेकिन आम आदमी का सार्वजनिक जीवन और निजी जीवन पवित्र होना अनिवार्य है । लगता है यह चाचा व बापू किसी और मिट्टी के बने हुए देवदूत थे , तभी तो इन्हें विशेष छूट प्रदान की गई ।
भारत के प्राचीन संविधान मनुस्मृति के अनुसार देश के शासक वर्ग का या समाज को दिशा दर्शन देने वाले लोगों का व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन बहुत पवित्र होना चाहिए । यदि वह निजी जीवन में अपवित्र है , अनैतिक है तो उसे सार्वजनिक जीवन में रहने की अनुमति नहीं होती थी ।
मित्रो ! आप कौन सी व्यवस्था से सहमत हैं, चाचा और बापू की व्यवस्था से या मनु स्मृति की व्यवस्था से ? ईमानदारी से बिना किसी लाग लपेट के टिप्पणी करें।
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत