लेखक – आर्य सागर
तिलपता ग्रेटर नोएडा
जब हम इस सवाल के जवाब में जुटते हैं तो पता चलता है दुनिया भर के विविध मनुष्य जो कुछ भी जानकर या मानकर कर रहे हैं ,उनके अनुसार वही जीवन का विविध रूप है। हमारे संस्कार, हमारा परिवार, जिस शहर में हमारा पालन पोषण हुआ है, हमारा स्कूल कॉलेज, हमारे साथी, शिक्षक यह सभी हमारे जीवन की दशा- दिशा को तय करते हैं।
कोई राजनेता है, कोई उद्योगपति है, कोई खिलाड़ी ह, कोई पत्रकार है, कोई नदी किनारे बैठा हुआ मछली पकड़ रहा है । कोई किसान है खेती कर रहा है ,कोई मजदूरी कर रहा है किसी के यहां, कोई सिपाही देश की सेवा कर रहा है, कोई अध्यापक है,कोई वैज्ञानिक एकांत में अपने थॉट एक्सपेरिमेंट कर रहा है। कोई पार्टी कर रहा है, कोई म्यूजिकल कंसर्ट में मग्न है। कोई अपने प्रिय संबंधी के बिछड़ने में बैठा रो रहा है, कोई आपस में लड़ रहा है, किसी का प्रेमी, तो किसी की प्रेमिका किसी को छोड़कर चली गई है, कोई ब्रेकअप से टूटकर अवसाद की आगोश में चला गया है कोई सब कुछ भूला कर फिर से नहीं शुरुआत कर रहा है। कोई अपनी पत्नी, पुत्र- पुत्री परिवार की चिंता में डूबा हुआ है। कोई पति-पत्नी झगड़ रहे हैं, कोई मां बगैर पति के अपने बच्चों की परवरिश कर रही है, कोई लिव इन रिलेशनशिप में रह रहा है, तो कोई इन सबको छोड़कर एकांतवास कर रहा है। कोई इंस्टाग्राम यूट्यूब रील बनाकर फेमस हो रहा है, तो कोई बदनाम हो रहा है कोई बड़ी-बड़ी गलतियों को नजरअंदाज कर रहा है तो कोई छोटी-छोटी गलतियां पर भी बखेड़ा खड़ा कर रहा है। कोई पारिवारिक संबंधों को महत्व देता है तो कोई इन संबंधों को कुछ भी महत्व नहीं देता। कुछ युवक- युवतियां काम वासना में जल रहे हैं तो कोई इन समस्त विकारों से ऊपर उठने की साधना में जुटा हुआ है । कोई ध्यान मेडिटेशन में रस लेता है, तो कोई भीड़ भाड़ में। कोई सुंदर आकर्षक दिखने के लिए जिम जॉइन कर रहा है तो कोई डाइटिंग कर रहा है,कोई अपने करियर सवारने में लगा हुआ है तो कोई सामाजिक कार्यों में ही अपना समय लग रहा है । कोई अपने को समझने के लिए गंभीर चिंतन कर रहा है , तो कोई इस दिखाई देने वाली दुनिया की चकाचौंध को ही सारा महत्व दे रहा है। कुछ महिलाएं खेत से भारी बोझ उठाकर बात करते हुए चली आ रही है ,तो कुछ महिलाएं घर पर बैठकर रंग-बिरंगे साज श्रृंगार में खुद को सजा रही हैं । कुछ हमेशा मन से शांत रहते हैं तो कुछ को झगड़ा किए बिना ऐसा लगता है जैसे आज कोई आवश्यक कार्य छूट गया है। कुछ का अपने मन वाणी पर कंट्रोल है तो कुछ पूरे स्वेच्छाचारी है। कोई अपने घर में भी असक्षित महसूस कर रहा है तो कोई अनजान पराये घर पराये शहर में भी खुद को सुरक्षित मान रहा है। कुछ सेल्फिश होकर अपने ही सुख की चिंता कर रहे हैं तो कुछ खुद कष्ट उठाकर दूसरों को अधिक सुख देना चाहते हैं। कुछ वृक्षारोपण में लगे हुए हैं, कुछ वन उपवन फल फूल प्रकृति के सौंदर्य में बहुत रुचि ले रहे हैं तो दूसरे कुछ ऐसे भी है जिसका इस सौंदर्य की तरफ कोई ध्यान नहीं है यही सब जीवन के अनेक रूप हैं।
जीवन को जिसकी जैसी जिसकी समझ थी उसने जीवन को उसी रुप में देखा सामान्य या विशेष, विकसित या अविकसित। एक सांसारिक व्यक्ति के लिए तो लग्जरियस लाइफ, बहुत सारी उपाधियां डिग्रियों से विभूषित होना, ऊंचे पदों पर प्रतिष्ठित रहना, मान सम्मान की प्राप्ति, लाखों करोड़ों फॉलोअर ,अच्छा भवन ,अच्छा व्यापार, अच्छे पढ़े लिखे बच्चे यह चीजें ही विकसित जीवन की श्रेणी में गिनी जाती है। यहां तक की इस विचार वाले लोग साधु महात्माओं के महत्व बड़प्पन का निर्धारण भी इन्हीं चीजों से देख करते हुए देखे जाते हैं कि महात्मा जी के लाखों शिष्य हैं राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री और बड़े-बड़े उद्योगपति उनके पास आते हैं, इनका इतना सुंदर बड़ा आश्रम है ,इनके पास चलने के लिए बहुत अच्छी-अच्छी गाड़ियां हैं अपार संपत्ति है इन्हें करोड़ों रुपए दान में मिलते हैं।
जिनकी दृष्टि बाहर की ओर खुली हुई है वह इन बाहरी चीजों ,बाहरी साधनों के द्वारा ही जीवन का मूल्यांकन किया करते हैं। पर सौभाग्य से कुछ लोग ऐसे भी होते हैं उनके लिए इन बाहरी स्थितियों के होने या ना होने का कोई महत्व नहीं होता क्योंकि वह अंदर की तरफ ही देखते हैं वह बाहर भी देखते हैं तो अंदर से ही देखते हैं।
जो जीवन काम क्रोध लोभ अहंकार आदि विकारों से भरा हुआ है प्रतिक्रिया में जिया जा रहा है। जिससे मन अशांत सदैव पैनिक कंडीशन बनी रहती है । डिप्रेशन जिस मन में डेरा डाले हुए हैं आशा निराशा हर्ष शोक जहां पीछा करते रहते हैं। इस प्रकार के जीवन को ज्ञानी पुरुष अविकसित अपूर्ण व सामान्य ही समझते हैं फिर बेशक वहां कितना भी धन, वैभव, उच्च पद या मान सम्मान योग्य, पुत्र -पुत्रियां, शिष्य- मंडली, फेन फॉलोइंग की अपार भीड़ ही क्यों ना लगी हुई हो।
सजग व्यक्ति अपने जीवन की पूर्णता को इस रूप में देखता है कि उसका अपने आप पर कितना अधिकार है। वह मन प्राण इंद्रियों विचारों का स्वामी है या गुलाम। दिन भर में उसके विचार थॉट एक क्षण के लिए भी कहीं अनकंट्रोल्ड तो नहीं हो जाते। सांसारिक व्यक्ति हमेशा जीवन में चकाचौंध , दिखावे, रूप रस स्पर्श गंध में ही उलझा रहता है। यह कल्पना से परे की बात मानी जाती है कोई व्यक्ति हमारा अपमान करें हमें हर्ट करें और हम कोई प्रतिक्रिया न दें। सुंदर रूप से उसके मन में कोई तरंग ना उठे। किसी के मान सम्मान प्रमोशन को देखकर उसका मन शांत बना रहे। मौज मस्ती शैर सपाटे टूरिज्म ट्रैकिंग में लीन इस संसार को देखकर उसके मन में सुख की इच्छा भी न जगे।
बहिर्मुखी जीवन एक्सट्रोवर्ट लाइफ में यह सब बातें इंपॉसिबल जैसी समझी जाती है लेकिन भगवान की बनाई इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं कि वह संसार की किसी भी घटना, परिस्थिति दिखावे से विचलित नहीं होते भले ही उनकी संख्या उंगलियों पर गिनने लायक हो । ग्लैमरस लाइफ उन्हें आकर्षित नहीं करती। बाहर कि यह सारी की सारी चीजें उनके मन में कोई प्रतिक्रिया उत्पन्न नहीं करती। यह सभी साधन उनके जीवन में हो या ना हो उनका मन हमेशा शांत तटस्थ बना रहता है। अपने मन को शांत बनाए रखने में ही वह अपनी सारी ऊर्जा को खर्च करता है इसके सिवाय उसका मन कहीं नहीं रमता, उसे जीवन का यही रूप उत्कृष्ट दिखाई देता है जो की यथार्थ रुप है। वस्तुत: ऐसा व्यक्ति कितना भाग्यशाली है जिसके जीवन में एक क्षण के लिए भी दुख, पीड़ा क्लेश, आकर्षक ,विकर्षण अज्ञान आदि ना हो ऐसे सुखी व्यक्ति के लिए मेरा शत् शत् प्रणाम।
लेखक
– आर्य सागर
लेखक सूचना का अधिकार व सामाजिक कार्यकर्ता है।