प्रधानमंत्री मोदी और ‘वटवृक्ष’ आरएसएस

- डॉ राकेश कुमार आर्य
देश का सबसे बड़ा अराजनीतिक संगठन अर्थात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश के प्रमुख शहर नागपुर से संचालित होता है। प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनने के पश्चात पहली बार संघ के नागपुर स्थित कार्यालय का दौरा किया है। प्रधानमंत्री का यह दौरा इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि इसी समय देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल अर्थात भाजपा का अगला राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनेगा ? इस बात को लेकर कई नाम चर्चाओं में उछाले जा रहे हैं। इसी समय औरंगज़ेब और ‘ छावा ‘ फिल्म को लेकर भी समाचार पत्रों में कई प्रकार के लेख प्रकाशित हो रहे हैं । राणा सांगा के लिए गद्दार कहने का बयान भी अच्छी सुर्खियों में है। इसके अतिरिक्त संभल विवाद भी अभी ज्यों का त्यों बना हुआ है।
पिछले वर्ष मई माह में संपन्न हुए लोकसभा चुनावों के समय भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य दूरियां बनने की खबरें बार-बार समाचार पत्रों में छपती रही थीं। उसका एक कारण यह भी था कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने चुनावों के दौरान अपने एक भाषण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से दूरी बनाने के स्पष्ट संकेत दे दिए थे। उसके बाद हरियाणा ,महाराष्ट्र और दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ अपनी दूरियों और मतभेदों को मिटाने में सफलता प्राप्त की है। जिसका एक अच्छा परिणाम यह निकला है कि तीनों ही प्रान्तों में भाजपा की सरकार स्पष्ट बहुमत के साथ गठित हो गई हैं । ऐसी परिस्थितियों में प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ नागपुर में जाकर मिलना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है।
प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत कि इस भेंट के कई अर्थ निकाले जा रहे हैं। उपरोक्त सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं से इस भेंट को जोड़कर देखा जा रहा है। हमारा विचार है कि देश का सांप्रदायिक परिवेश बिगाड़ने के लिए कई शक्तियां पर्दे के पीछे षड्यंत्रपूर्ण कार्य कर रही हैं । पूरे सेकुलर गैंग की गतिविधियों को समझने की आवश्यकता है।
कई ऐसी शक्तियां है जो देश को गृह युद्ध में ले जाना चाहती हैं। उन्हें बड़े राजनीतिक दलों और बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं का प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त है। सत्ता के लिए उतावले विपक्ष के कई नेता किसी भी स्थिति तक जा सकते हैं। अतः हमारा मानना है कि इन दोनों शीर्ष पुरुषों के मध्य देश के सांप्रदायिक माहौल को बिगाड़ने में सक्रिय शक्तियों के षडयंत्रों और तदजनित भावी परिस्थितियों पर विचार नहीं हुआ हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री एक चुनाव जीत कर अगले चुनाव की तैयारी पहले दिन से ही आरंभ कर देते हैं। इसलिए 2029 के लोकसभा चुनावों के समय भगवाधारी चिंतनधारा की दिशा क्या होगी ? इसे लेकर उनका चिंतन निश्चय ही चल पड़ा है। अतः जो लोग यह मान रहे हैं कि इस बैठक में दोनों शीर्ष नेताओं ने 2029 के चुनावों की पटकथा पर भी चिंतन मंथन किया होगा – वह गलत नहीं सोच रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री मोदी ने भी माधव नेत्रालय का शिलान्यास करते हुए स्पष्ट कहा है कि संघ भारत की अमर संस्कृति का वटवृक्ष है।
जो लोग प्रधानमंत्री के इस कथन से सहमत नहीं हैं ,उन्हें समझना चाहिए कि संघ अखिल भारत हिंदू महासभा का कभी एक आनुषंगिक संगठन था। इसने पहले दिन से ही यह निश्चय कर लिया था कि राजनीति से दूर रहकर वह सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्र जागरण का कार्य करेगा। इसका उद्देश्य था कि देश ,धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए नए दीवानों को जन्म दिया जाए । इसका कारण केवल एक था कि हिंदू महासभा और क्रांतिकारी संगठनों के अनेक नेताओं और क्रांतिकारियों की अंग्रेज निर्ममता से हत्या करते जा रहे थे । अतः नए क्रांतिकारियों की फसल उगाना उस समय की आवश्यकता थी। इसी कार्य को आर्य समाज भी कर रहा था। जिसने आरएसएस की तर्ज पर ही आर्य वीर दल की स्थापना कर स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे बलिदानी नेताओं की हत्या से शिक्षा लेते हुए अपनी सुरक्षा अपने आप करने के लिए आगे बढ़ने का निर्णय लिया था। पिछले 100 वर्ष के इतिहास में आरएसएस ने देश की मुस्लिम सांप्रदायिकता का डटकर सामना किया है और इसके लिए अपने अनेक कार्यकर्ताओं का बलिदान दिया है। इस प्रकार सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक नई क्रांति को जन्म दिया है । इसलिए प्रधानमंत्री मोदी का इसके संबंध में यह कहना कि यह संस्कृति का अमर वटवृक्ष है, अतिशयोक्ति नहीं है। कई बिंदुओं पर इस संगठन ने आर्य समाज की विचारधारा को आगे बढ़ाने का काम किया है। सर सैयद अहमद खान 1887 – 88 में जिस प्रकार द्विराष्ट्रवाद अर्थात एक मुस्लिम राष्ट्र और एक हिंदू राष्ट्र की बातें करके देश के सांप्रदायिक परिवेश को दुर्गंधयुक्त कर रहे थे, उसी को लेकर मुस्लिम लीग ने आजादी मिलने के काल तक देश के कई क्षेत्रों में भयंकर नरसंहार किए थे या उसके इशारे पर देश के विभिन्न क्षेत्रों में मुस्लिम लोगों ने देंगे किए थे। उन सब की पोल खोलने में आर्य समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मिलकर कार्य किया था या कहिए कि एक ही दिशा में एक ही चिंतन से प्रेरित होकर कार्य किया। मोपला कांड को जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस भूलने की कोशिश कर रहे थे, तब आर्य समाज ने उसे प्रमुखता से उछाला था। अपने जन्म के पश्चात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कांग्रेस के दोगले आचरण और दोगली नीतियों का विरोध किया।
1925 में जन्मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपनी यात्रा के पिछले 100 वर्षों में देश के सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में अतुलनीय कार्य किया है। हम सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक प्रेरक और मार्गदर्शक के रूप में सदा समादरणीय रहा है और रहेगा।
नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक से आगे बढ़ते – बढ़ते भाजपा में वर्तमान स्थिति में पहुंचे हैं । उन्होंने गुजरात में संघ के प्रांतीय नेता के रूप में भी कार्य किया। 2001 में जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री बने तो उस समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें अपना भरपूर सहयोग और आशीर्वाद प्रदान किया था। अत: यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री श्री मोदी भली प्रकार जानते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय राष्ट्रीय चेतना किस प्रकार एक दूसरे के पूरक हैं ? इसीलिए वह संघ की ‘ वटवृक्ष के रूप में पूजा’ करते हैं।
– डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)

लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है