waqf amendment bill
  • डॉ राकेश कुमार आर्य

सचमुच 2 अप्रैल 2025 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखे जाने योग्य है। क्योंकि इस दिन देश की संसद ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को पारित कर दिया है। ध्यान रहे कि इस विध्वंसकारी और देश विरोधी कानून को देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1954 में देश की संसद से पारित करवाया था। नेहरू जी ने इस बात पर तनिक भी विचार नहीं किया था कि सांप्रदायिक आधार पर देश का विभाजन करने वाली मुस्लिम लीग की नीतियों और विचारों को अब देशहित स्वीकार नहीं किया जा सकता?

उसके बाद 1995 में इस कानून को और भी अधिक मजबूत बनाकर देश विरोधी लोगों को नई ऊर्जा प्रदान की गई। देश के संविधान की मूल भावना के विपरीत जाकर एक वर्ग विशेष या संप्रदाय विशेष को उसकी धार्मिक मान्यताओं को बलवती करने के लिए प्रोत्साहित करना पूर्णतया असंवैधानिक कृत्य था। परंतु कानून बनाकर इसे संवैधानिक घोषित कर दिया गया। इस विषय में प्रारंभ में नेहरू जी ने अंग्रेजों की नीति का अनुकरण किया। जी हां, उन्हीं अंग्रेजों की नीतियों का जिन्होंने मुगल काल में अनैतिक ढंग से काटी जाती रही गायों की हिंदुओं के द्वारा जब आलोचना होते हुए देखी तो 1707 में इस संबंध में एक विशेष कानून लाकर देश में गायों का कत्लगाह बनाने का कानून पारित किया। जिसमें प्रतिदिन 32 से 35000 गाएं काटी जाती थीं, इस प्रकार उन्होंने एक अनैतिक कार्य को वैधानिक बना दिया। नेहरू जी ने भी मुस्लिमों की सांप्रदायिक मान्यताओं के आधार पर उनके द्वारा दूसरों की जमीन पर जबरन कब्जा करने के अधिकार प्रदान कर पूर्णतया अनैतिक परंतु वैधानिक कदम उठाकर देश विरोधी शक्तियों को मजबूत करने का काम किया। अनैतिक कार्य को वैधानिक बनाकर राष्ट्र निर्माता बनना कोई नेहरू जी से सीख सकता है।

इस देश विरोधी कानून में 2013 में संशोधन किया गया, जिससे वक्फ बोर्डों को मुस्लिम दान के नाम पर संपत्तियों का दावा करने के लिए असीमित अधिकार प्रदान किए गए। संशोधनों ने वक्फ संपत्तियों की बिक्री को असंभव बना दिया।
कातिल को ही मुंसिफ बना दिया गया। जिसके चलते यह बोर्ड रेलवे के बाद सबसे अधिक संपत्ति रखने वाला बोर्ड बन गया।

जिस प्रकार इसकी शक्ति में दिन प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही थी, उसके चलते किसी को भी इसकी ओर आंख उठा कर देखने का साहस नहीं हो रहा था। मुस्लिम समाज के भी अनेक लोग इस देश विरोधी कानून की चपेट में आए और उन्हें अपनी संपत्ति से ना चाहते हुए भी हाथ धोना पड़ा। यही कारण है कि इस कानून में संशोधन के समर्थन में अनेक प्रगतिशील मुस्लिम भी मोदी सरकार के साथ खड़े हुए दिखाई दिए हैं। मुस्लिम समाज के अनेक बुद्धिजीवी इस कानून में संशोधन की मांग करते आ रहे थे, जिस पर मोदी सरकार ने काम करने का निर्णय लिया। सरकार ने निर्णय लिया कि इस कानून के उन सभी प्रावधानों को संशोधित किया जाए, जिनसे समाज विरोधी और देश विरोधी शक्तियों को बल प्राप्त होता है। इस प्रकार इस नए संशोधन अधिनियम का उद्देश्य वर्तमान वक्फ अधिनियम के देश विरोधी खण्डों को रद्द करना रहा है, जिससे कि इस बोर्ड के अधिकारों को सीमित किया जा सके। ज्ञात रहे कि वर्तमान में बोर्ड को अनिवार्य सत्यापन के बिना किसी भी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित करने की अनुमति इस प्रचलित कानून के माध्यम से रही है।

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सी0ए0ए0 जैसे कानून का विरोध करने वाला सेकुलर गैंग इस नए संशोधन बिल का भी विरोध करता हुआ दिखाई दिया। यद्यपि संयुक्त संसदीय समिति के समक्ष विपक्ष के द्वारा उठाए गए सभी बिंदुओं पर भली प्रकार विचार किया गया और यथासंभव उन्हें स्वीकार भी किया गया, किंतु इसके उपरांत भी वोटो की राजनीति सेकुलर विपक्ष पर हावी रही। जिसके चलते देश के सभी धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों ने इस विधेयक का भरपूर विरोध किया।

भारत के हिंदू समाज की अनेक परंपराओं को अवैज्ञानिक और सृष्टि नियमों के विरुद्ध घोषित कर उन्हें पानी पी पीकर कोसने वाले धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों के किसी भी नेता ने कभी यह कहने का साहस नहीं किया कि वक्फ बोर्ड को किसी मुस्लिम द्वारा दान की जाने वाली संपत्ति अल्लाह की कैसे हो जाती है ? देश के दूसरे सबसे बड़े संप्रदाय को अवैज्ञानिक और अंधविश्वासों से भरी परंपराओं में जीने और उसी परिवेश में घुट घुटकर मरने के लिए धर्मनिरपेक्ष राजनीति ने भरपूर प्रयास किया।

यह बात भी ध्यान देने वाली है कि यह बोर्ड भारत में 9. 4 लाख एकड़ में फैली अपनी 8.7 लाख संपत्तियों का नियंत्रण करता है। जिनकी अनुमानित कीमत लगभग 1.2 लाख करोड रुपए आंकी गई है। अब नए कानून के अनुसार वक्फ बोर्ड की सभी संपत्तियों के लिए सत्यापन की प्रक्रिया से गुजरना अनिवार्य कर दिया गया है। देश का संविधान अथवा कानून कहता है कि आप किसी की भी संपत्ति को अपनी संपत्ति घोषित नहीं कर सकते हैं । यदि इस कार्य को कोई व्यक्ति नहीं कर सकता तो कोई बोर्ड इसे किस आधार पर कर सकता है ? इसी प्रकार कोई संप्रदाय भी ऐसा क्यों कर सकता है अथवा उसे ऐसा करने की छूट क्यों दी जाए ? ये ऐसे प्रश्न हैं जो संवैधानिक भी हैं, नैतिक भी हैं, सामाजिक भी हैं और देश हित में उठाए जाने योग्य भी हैं। यदि एक बार यह कहा जाए कि भारत का संविधान धर्मनिरपेक्ष है, जिसमें किसी भी संप्रदाय का पक्ष पोषण नहीं किया जा सकता तो भी वक्फ बोर्ड का गठन अपने आप में असंवैधानिक ही माना जाएगा। कानून बनाकर उसे दिए गए असीमित अधिकार तो मानो तानाशाही प्रवृत्ति को बढ़ावा देने का स्पष्ट प्रमाण ही है।

इस नये एक्ट के माध्यम से धारा 9 और 14 में संशोधन किया गया है, जिसके द्वारा महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व को बहुत ही जिम्मेदारी के साथ सम्मिलित किया गया है। प्रत्येक प्रकार के विवाद से निपटने के लिए वक्फ बोर्ड द्वारा दावा की गई संपत्तियों का नया सत्यापन अनिवार्य किया गया है । इसके दुरुपयोग को रोकने के लिए जिले के जिलाधीश वक्फ संपत्तियों की निगरानी में सम्मिलित हो सकते हैं।

सरकार की ओर से अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरण रिजिजू, गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री श्री मोदी ने चर्चा में भाग लेते हुए मजबूती से अपना पक्ष रखा है। केंद्रीय गृहमंत्री और प्रधानमंत्री ने अपना पूरा होमवर्क पूरी सावधानी के साथ संपन्न किया। यही कारण रहा कि एनडीए के जो सदस्य दल प्रारंभ में कुछ अलग भाषा बोलते हुए दिखाई दे रहे थे, वह सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हो गए और यह विधेयक पारित हो गया। वोटों की राजनीति करते हुए विपक्ष ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि उसके पास ऐसा कुछ भी नहीं था, जिसे विशेष कहा जा सके। वही घिसी पिटी चर्चा और आलोचना विपक्ष की ओर से बोलने वाले लगभग प्रत्येक वक्ता ने दिखाई।

अब सोशल मीडिया पर कई ऐसे कथित हिंदूवादी मुखर हो गए हैं जो यह कहकर केंद्र की मोदी सरकार की आलोचना कर रहे हैं कि यह विधेयक जब एक कानून के रूप में परिवर्तित हो रहा है तो इसे मजबूत कानून नहीं कहा जा सकता। ऐसा कानून लाकर केंद्र की मोदी सरकार अपनी कमजोरी ही दिखा रही है ? ऐसे लोगों से यह प्रति प्रश्न किया जा सकता है कि क्या आपने एक मजबूत मोदी को इस बार संसद में भेजा है ? यदि नहीं तो अभी एक मजबूत कानून की निर्मिती के लिए थोड़ा धैर्य रखते हुए प्रतीक्षा कीजिए। अपने आप को सुधारिए, अपने आप को मजबूत कीजिए, फिर मजबूत और सुधरे हुए कानून की अपेक्षा कीजिए। फिलहाल इस बात पर संतोष कीजिए कि एक कमजोर मोदी भी इस समय मजबूत निर्णय लेने का साहस दिखा रहा है।

– डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं)

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