काम, क्रोध और लोभ से छुटकारा कैसे मिले

लोभ छटै संतोष से,
काम छटै कर त्याग ।
लोभ-काम के त्याग से,
बुझे क्रोध की आग ॥2765॥

भावार्थ :- प्राय देखा गया है कि मनुष्य काम, क्रोध और लोभ के भँवर-जाल में डूबता ही चला जाता है और मानव – जीवन बड़ा ही कष्टकर हो जाता है। लोभ ऐसी व्याधि है, जो जीवन भर समाप्त नहीं होती है। क्रोध भयंकर अग्नि है, महाविनाश की जननी है, जिसकी चपेट में व्यक्ति, परिवार, समाज अथवा बड़े राष्ट्र पतन के गर्त में चले। जाते है। अन्ततोगत्त्वा सिवाय पश्चाताप कुछ नहीं बचता है। कामनाएँ आकाश की तरह अनन्त हैं, जिनकी कभी किसी पर पूर्ति नहीं होती है।

अब प्रश्न पैदा होता है कि काम, क्रोध और लोभ से छुटकारा कैसे मिले ? सबसे पहले इनके मूल कारण को खोजा जाय। लोभ और काम का कारण अतृप्ति, अधिक से अधिक संचय की प्रवृत्ति है और क्रोध तभी आता है, जब इनमें कोई अवरोध पैदा करता है। इसलिए लोभ का निदान संतोष से होता है और काम का निदान सेवा, त्याग और बलिदान से होता है। यदि मनुष्य लोभ और काम को त्याग दे, तो क्रोध से मुक्ति सहज और सरल मिल जाती है। भाव यह है कि क्रोध की अग्नि स्वतः बझ जाती है। हो सके तो इनका प्रयोग आचरण में करके देखें ।

यदि मोक्ष की चाह है,तो :-

समय बहुत थोड़ा रहा,
मोक्ष – धाम है दूर।
प्रभु-कृपा का पात्र बन,
मिले नूर से नूर॥2766॥

शरणागति की महिमा: –

अग्नि में कोयला रहे,
तब तक रहता लाल।
शरणागति में जीव के,
मल मिटते तत्काल ॥2767॥

क्रमशः

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