सबसे अधिक मूल्यवान और उत्तम योनि मनुष्य की है

“संसार में लाखों योनियां हैं। उनमें से सबसे अधिक मूल्यवान और उत्तम योनि मनुष्य की है।” क्योंकि मनुष्य जीवन में बहुत सारी सुख सुविधाएं हैं, जो अन्य प्राणियों को ईश्वर ने लगभग नहीं दी। जैसे कि “ईश्वर ने मनुष्यों को ‘विशेष बुद्धि’ दी। बोलने के लिए ‘भाषा’ दी। कर्म करने के लिए ‘दो हाथ’ दिए। कर्म करने की ’24 घंटे की स्वतंत्रता’ दी। और ‘चार वेदों का ज्ञान’ दिया।” ये पांच सुविधाएं अन्य प्राणियों को ईश्वर ने लगभग नहीं दी। “बंदर लंगूर चिंपांजी गोरिल्ला वनमानुष आदि 5/7 प्राणियों को मनुष्यों जैसे हाथ तो दिए, परंतु बाकी सुविधाएं न होने के कारण ये प्राणी हाथ होते हुए भी उनका कोई विशेष लाभ नहीं उठा पाए।”
कहने का सार यह है कि “इतनी उत्तम सुविधाएं सुख साधन स्वतंत्रता आदि जो मनुष्य को मिली हैं, यह मुफ्त में नहीं मिली। यह अनेक उत्तम कर्मों का फल है।” “अब तो सौभाग्य से आपको मनुष्य जन्म मिला है, यह पूर्व जन्म के शुभ कर्मों का फल है। और यह फल ईश्वर की कृपा से प्राप्त हुआ है, अर्थात मनुष्य योनि प्राप्त करने में जहां आपका पुरुषार्थ कारण है, वहां ईश्वर की कृपा भी एक बहुत बड़ा कारण है।”
यदि ईश्वर आपके कर्मों का हिसाब न रखे, और समय आने पर आपको ठीक-ठीक फल न दे, तो आप ईश्वर पर मुकदमा नहीं कर सकते, कि “हे ईश्वर! आप हमारे कर्मों का फल क्यों नहीं देते ?” “ऐसी भाषा तो उस व्यक्ति के लिए बोली जा सकती है, जिसने आपसे कुछ ऋण ले रखा हो और वह ऋण चुकाता न हो। तब आप ऐसी भाषा उस व्यक्ति के लिए बोल सकते हैं।” “परंतु ईश्वर के लिए ऐसी भाषा नहीं बोल सकते। क्योंकि ईश्वर ने आपसे कोई ऋण नहीं ले रखा। ईश्वर का स्वभाव दयालु एवं परोपकारी होने से वह अपनी उदारता एवं दयालुता के कारण आपके कर्मों का पूरा-पूरा हिसाब भी रखता है, और समय आने पर आपके कर्मों का ठीक-ठीक फल भी देता है। इसलिए उसकी कृपा (उपकार, एहसान) स्वीकार करनी चाहिए।”
“तो अब पिछले कर्मों और ईश्वर की कृपा से इस बार तो आपको अच्छा मनुष्य जन्म मिल गया। क्या आप आगे भी ऐसा ही उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त करना चाहेंगे?” “यदि हां, तो सभ्यता नम्रता परोपकार दान दया ईश्वर भक्ति यज्ञ संध्या माता-पिता की सेवा गौ आदि प्राणियों की रक्षा करना आदि उत्तम कर्मों का आचरण करें। अन्यथा अगला जन्म मनुष्य योनि में नहीं मिलेगा। और संसार में शेर भेड़िया सांप बिच्छू वृक्ष वनस्पति आदि लाखों योनियां हैं, उनमें कहीं नंबर लगेगा।”
“यदि उन योनियों में कहीं नंबर लग गया, तो हो सकता है, कुछ लोग आपको डिस्कवरी चैनल पर भी देखें, और अपना मनोरंजन करें। इसलिए मनुष्य जीवन का मूल्य समझें, और इसका सदुपयोग करें। बुराइयों से बचें तथा उत्तम कर्मों का आचरण करें, तभी आपका भविष्य सुरक्षित होगा।”
स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक
निदेशक दर्शन योग महाविद्यालय रोजड़, गुजरात।