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बिखरे मोती

बिखरे मोती

आँसुओं के संदर्भ में दो शब्द एवम् ‘शेर’ : –

“ठहरो मनुष्य की कान्ति के अमर मोतियो !” आँखों में ही ठहरो । आँखो से बाहर निकलकर अपना अपमान क्यों कराना चाहते हो ? संसार में आँसुओं का मोल पत्थर – हृदय क्या जाने ? इनकी परख तो वहीं समझता है जिसका हृदय करुणा और प्रेम से भरा हो। इसलिए मेरा कवि हृदय बोल उठा : –

‘शेर’

दर्द – ए- दिल !
जब आँसू बनकर ढुलकता है।
इन्सान तो क्या ,
ख़ुदा का भी दिल पिघलता है॥
आँसू मनुष्य को कान्ति के,
वे अनमोल मोती हैं।
जिनकी क़शिश को,
कोई ख़ुदा का प्यारा ही समझता है॥2760॥

रात्रि की शोभा चन्द्र से,
हाथ की शोभा दान।
स्त्री की शोभा शील से ,
मनुज की शोभा मान॥2761॥

ज्ञान कर्म और भक्ति में,
जो रखता है मेल।
उसका जीवन सफल है,
उसी का बनता खेल॥2762॥

तत्त्वार्थ :- भाव यह है कि मनुष्य जीवन तभी सार्थक होता है, जब वह अपने जीवन में ज्ञान, कर्म और भक्ति मे सामंजस्य बनाकर रखे क्योंकि ज्ञान के बिना कर्म अन्धा है और कर्म के बिना ज्ञान लंगड़ा है तथा प्रभु की भक्ति के बिना मानव जीवन निरर्थक है। इसलिए मानव- जीवन को सफल बनाना है, तो ज्ञान, कर्म और भक्ति में जीवन पर्यन्त संतुलन बनाकर रखिए। ऐसे साधकों का दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत होता है। भगवान कृष्ण ने गीता में ज्ञान, कर्म, भक्ति पर विशेष बल देते हुए ज्ञानयोग,कर्मयोग और भक्तियोग के अर्जुन को विशेष रूप से प्रेरित किया है।
क्रमशः

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