सासाराम। यहां पर स्थित अमलतास कॉलेज ऑफ़ एजुकेशन तिलौथू में स्वर्गीय विपिन बिहारी सिंह जी की स्मृति में आयोजित की गई संगोष्ठी में ‘ सभ्यता संस्कृति और राष्ट्रवाद’ विषय पर मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने कहा कि भारतीय राष्ट्रवाद का प्रमुख मूल्य मानवतावाद है। भारत की संस्कृति का निचोड़ मानवतावाद है। यही भारत का धर्म है । इस प्रकार भारतीय संस्कृति धर्म और राष्ट्रवाद का गहरा संबंध है। भारत के इसी सनातन मानवतावादी धर्म का समन्वय भारत के राष्ट्रवाद के साथ है । यही कारण है कि प्राचीन काल से लेकर अब तक कोई भी भारत का आर्य/ वैदिक/ हिंदू शासक ऐसा नहीं हुआ जिसने मजहब के नाम पर लोगों के नरसंहार किये हों। उन्होंने कहा कि मानवतावाद में प्रेम की वास्तविक अभिव्यक्ति है। इस प्रकार प्रेम की पराकाष्ठा का नाम ही धर्म है और धर्म का नाम ही मानवतावाद है। भारतीय राष्ट्रवाद में संवेदनाओं का सम्मान है। उन्हीं के सम्मेलन से हम परस्पर एक दूसरे के साथ जुड़ते हैं। इस मिलाव के सामने हमारे लिए प्रांत या भाषा सभी गौण हो जाते हैं।
डॉ आर्य ने अपना गंभीर चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि वेदों ने मानवतावाद को प्रोत्साहित करने के लिए प्राचीन काल से ही राजनीति को धर्म के साथ संबध करने का अद्भुत संदेश दिया है। राजनीति का धर्म के साथ समन्वय स्थापित होने का अभिप्राय है कि राजनीति में मानवतावादी लोगों को स्थान दिया जाए। देश लूटने वाले, चोर उचक्के या दूसरे के अधिकारों का हनन करने वाले लोगों को राजनीति में जिस दिन स्थान नहीं मिलेगा उस दिन भारत की राजनीति सचमुच धर्म प्रेरित राजनीति हो जाएगी। जिसकी नितांत आवश्यकता है। भारतीय राष्ट्रवाद की यही खूबसूरत विशेषता है कि इसे धर्म के साथ जीने में ही आनंद मिलता है। यह भारत का दुर्भाग्य है कि भारत को धर्मनिरपेक्ष राजनीति की ओर खींचने का अनैतिक दुराचरण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आज हम प्रयाग में जी महाकुंभ का आयोजन कर रहे हैं। यह भारत की प्राचीन परंपरा है। जिसमें 6 वर्ष में विद्वान लोग भारतीय धर्म और राष्ट्र की व्याख्या और व्यवस्था के लिए एकत्र हुआ करते थे और लोगों को वास्तविक धर्म और राष्ट्रवाद की प्रेरणा दिया करते थे। जबकि 12 वर्ष में संपूर्ण भूमंडल के विद्वान लोग सनातन के शाश्वत मूल्यों की व्याख्या को लेकर संसार के कोने कोने से आकर भारतवर्ष के किसी पवित्र स्थान पर अर्थात नदी के किनारे बैठकर चिंतन मंथन किया करते थे। उसके बाद भारतीय संस्कृति के मूल्यों के प्रचार प्रसार के लिए संसार में सर्वत्र फैल जाया करते थे। इस परंपरा के चलते कहीं पर भी सनातन विरोधी कार्य नहीं हो पाता था।
उन्होंने कहा कि अमलतास कॉलेज आफ एजुकेशन जैसे संस्थान भारत में अन्यत्र भी स्थापित होने चाहिए। जिनसे भारत के मानवतावादी दृष्टिकोण का संदेश संसार के कोने कोने में फैलाने में सहायता मिल सकेगी। भारत प्राचीन काल से ही नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय गुरुकुलों का देश रहा है। जिसे भारत की मानवतावादी संस्कृति का प्रचार प्रसार करने में सहायता प्राप्त होती थी। आज भी हमें इस व्यवस्था को लागू करना होगा । तभी हम भारत को विश्व गुरु के गौरवशाली पद पर विराजमान करने में सफल हो पाएंगे। हमें किसी भाषा से कोई आपत्ति नहीं है, परंतु जब विदेशी भाषा में विदेशी संस्कार हमारी पीढ़ी को परोसे जा रहे हों तो आपत्ति पैदा होना स्वाभाविक है। हमारी धरती पर विदेशी संस्कार एक सुनियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत प्रस्तुत किए जा रहे हैं, जिससे हमारी वर्तमान पीढ़ी बर्बाद हो रही है। जिन लोगों ने भारत की संस्कृत को मृत भाषा घोषित करने का अपराध किया है , उन्होंने भारत के राष्ट्रवाद के साथ घोर अन्याय किया। आज आवश्यकता है देश में वैदिक धर्म प्रेरित पाठ्य पुस्तकों को सम्मिलित करने की। इसके साथ ही मनुस्मृति की समाज और राजनीति संबंधी चिंतन शैली को भी विद्यालयों में लागू किया जाए। इसके अतिरिक्त उपनिषद,रामायण, गीता, महाभारत ,दर्शन शास्त्र सहित भारत के आर्ष ग्रन्थों को बच्चों को विद्यालयों में पढ़ाया समझाया जाए।
उपरोक्त विद्यालय के चीफ पैट्रन श्री रणजीत सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की वैदिक संस्कृति जीवन की एक पूर्ण विधा है। जिसे आज के संदर्भ में हिंदुत्व के नाम से जाना जाता है। वास्तव में इसका मूल वैदिक संस्कृति ही है, जो हमें परस्पर जोड़ने का काम करती है। उन्होंने कहा कि डॉ राकेश कुमार आर्य भारतीय सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रणेता और प्रचेता के रूप में अपना प्रमुख स्थान रखते हैं। इससे पूर्व श्रीमती रतना के द्वारा श्री विपिन बिहारी सिन्हा के जीवन पर विशेष प्रकाश डाला गया और बताया गया कि उन्होंने किस प्रकार लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ मिलकर भारतीय राष्ट्रवाद की चेतना को विस्तारित करने का महान कार्य किया ? उनके दिए गए संस्कार ही हम सब का मार्गदर्शन कर रहे हैं। इस अवसर पर श्री शशि कुमार शेखर द्वारा कौटिल्य के अर्थशास्त्र पर अपना गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया गया। जिन्होंने स्पष्ट किया कि कौटिल्य का अर्थशास्त्र संबंधी चिंतन ही हमारा कल्याण कर सकता है । उसके सामने वर्तमान में अर्थशास्त्र संबंधी जितनी भी अवधारणाएं हैं, वे सभी निरर्थक सिद्ध हो चुकी हैं।
इस अवसर पर इशिता भूषण व निरुपमा सहित अनेक प्रतिभाओं ने कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोगों का मन मोह लिया। विद्यालय के बच्चों ने भी कई मनमोहक प्रस्तुतियां दीं।