- डॉ राकेश कुमार आर्य
( ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया की डिस्कवरी’ )
मार्क्सवादी नेहरू और भारतीय इतिहास
नेहरू जी की मान्यता थी कि ” मार्क्स और लेनिन की रचनाओं के अध्ययन का मुझ पर गहरा असर पड़ा और इसने इतिहास और मौजूदा जमाने के मामलों को एक नई रोशनी में देखने में बड़ी मदद पहुंचाई । ”
मार्क्सवादियों के लिए भारत के वेद कभी भी स्वीकार्य नहीं रहे। कम्युनिस्ट लोगों ने भारत के वेदों को ग्वालों के गीत कहकर अपमानित किया है। उन्होंने अपने इसी दृष्टिकोण के चलते भारत और भारतीयता को जीवन के लिए कभी उपयोगी नहीं माना। उनकी संकीर्ण मानसिकता के चलते भारत की वैदिक संस्कृति को मिटाने का हर संभव प्रयास किया गया। यह कटु सत्य है कि यदि सत्ता संवैधानिक आधार पर एक बार कम्युनिस्ट लोगों के हाथों में आ गई तो वह लेनिन के अत्याचारों को भारत में दोहराने में तनिक भी देर नहीं करेंगे। उन्होंने रक्तपात में विश्वास व्यक्त करते हुए क्रांति की बात की और अपनी इस क्रांति के लिए लाखों करोड़ों लोगों के प्राण ले लिए।
माना कि नेहरू अपने गुरु महात्मा गांधी जी के विचारों से सहमत होते हुए हिंसा में उस सीमा तक विश्वास नहीं करते थे, जिस सीमा तक मार्क्सवादी करते हैं, परंतु इसके उपरान्त भी उन्होंने मार्क्सवादी समाजवादी विचारों को भारतीय संविधान के अनुकूल बनाने या भारतीय शासन व्यवस्था में कहीं ना कहीं स्थापित करने का अतार्किक प्रयास किया। इस प्रकार के वैचारिक दोगलेपन के कारण नेहरू जी अपने आप को कम्युनिस्ट दिखने में ही लगे रहे। समाजवाद की ओर नेहरू जी के इस झुकाव के कारण ही उनकी मृत्यु के पश्चात जब उनकी बेटी इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्हें अपनी सरकार बचाने के लिए कम्युनिस्टों का साथ लेने में किसी प्रकार का संकोच नहीं हुआ। यहां तक कि अपने पिता नेहरू से समाजवाद के प्रति झुकाव की मिली विरासत को संभालते हुए इंदिरा गांधी ने कम्युनिस्ट दलों के कहने पर नुरुल हसन को देश का शिक्षा मंत्री बना दिया। जिन्होंने भारतीय इतिहास में इतना बड़ा घपला किया कि उसकी क्षतिपूर्ति आज तक नहीं हो पाई है। इसे आप यूं भी कह सकते हैं कि देश का पहला शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद को बनाकर नेहरू ने भारतीय इतिहास के विकृतिकरण या इस्लामीकरण की जिस परंपरा का शुभारंभ किया था, नूरुल हसन को इसी पद पर बैठाकर उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने कम्युनिस्ट दलों के सहयोग से इस परंपरा को और आगे बढ़ाने का काम किया।
खूनी क्रांतियों के माध्यम से दुनिया को नई राह दिखाने के लिए जिद करने वाले मार्क्स और लेनिन के बारे में अहिंसा के पुजारी गांधी के शिष्य नेहरू लिखते हैं ( पृष्ठ 31 ) ” मार्क्स और लेनिन की रचनाओं के अध्ययन का मुझ पर गहरा असर पड़ा और इसने इतिहास और मौजूदा जमाने के मामलों को एक नई रोशनी में देखने में बड़ी मदद पहुंचाई , इतिहास और समाज के विकास के लंबे सिलसिले में एक मतलब और आपस का रिश्ता जान पड़ा और भविष्य का धुंधलापन कुछ कम हो गया। सोवियत यूनियन के अमली कारनामे कुछ कम बड़े न थे । कुछ बातें वहां जरूर ऐसी दिखाई दीं , जिन्हें मैं नहीं पसंद कर पाता था या नहीं समझ पाता था और मुझे ऐसा मालूम हुआ कि वक्ती बातों में से फायदा उठाने की या महज ताकत के बल पर मकसद हासिल करने की कोशिश से इसका ताल्लुक है …..।”
रूस के जिस लेनिन की प्रशंसा नेहरू जी करते हैं, उसके बारे में भी कुछ जानना आवश्यक है।
study.com के अनुसार “लेनिन के नरसंहार में लगभग 3.7 मिलियन नागरिक मारे गए। लेनिन ने दुश्मनों को सामूहिक रूप से मौत के घाट उतारने का आदेश दिया, जिसके परिणामस्वरूप 100,000 से 500,000 लोगों की मौत हो गई, अमानवीय परिस्थितियों में जबरन श्रम शिविरों में 50-70,000 लोगों की मौत हो गई, तथा विद्रोही किसान वर्ग पर सामूहिक भुखमरी थोपी गई, जिसके कारण कम से कम 3 मिलियन लोग मारे गए। उच्च अनुमानों के अनुसार, लेनिन ने सोवियत संघ पर अपने शासनकाल के दौरान 10 मिलियन से अधिक लोगों की हत्या की होगी।”
बड़ी अटपटी बात है कि लेनिन जैसे क्रूर शासक के द्वारा लाखों नहीं करोड़ों लोगों को मौत के घाट उतारा जाना नेहरू को स्वीकार है, जबकि अपने ही देश के सरदार भगत सिंह अथवा नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे अनेक क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजों को मारा जाना स्वीकार नहीं। भारत पर जबरन अपना शासन थोपने वाले ब्रिटिश सत्ताधारियों को हमारे क्रांतिकारी मारकर भगाएं, इसमें गांधी जी और नेहरू जी को हिंसा दिखाई देती थी, जबकि लेनिन द्वारा अपने शासनकाल के दौरान 10 मिलियन से अधिक लोगों को मारे जाने पर भी वह उनके लिए आदर्श है ? वास्तव में, यही मानसिकता नेहरू की मुगल बादशाहों के प्रति भी है, जिन्होंने जीवन भर हिंदुओं का नरसंहार किया था।
मार्क्सवादियों के अत्याचारों को इतिहास में ” लाल आतंक ” के नाम से जाना जाता है। ” लाल आतंक ” वास्तव में मानवता पर एक काला धब्बा है, जिसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया सकता। देश के पहले प्रधानमंत्री के द्वारा ‘ लाल आतंक ‘ के नेताओं की मानसिकता से सहमत होना देश के लिए बहुत घातक सिद्ध हुआ। भारतवर्ष में कालांतर में जिस प्रकार आतंक ने अपना काला रूप दिखाया, उसके पीछे एक कारण यह भी था कि देश की मौलिक संस्कृति से विरोध भाव रखने वाले नेताओं ने इस प्रकार के आतंक को किसी न किसी प्रकार अपने मानस में स्थान दिया था। निश्चित रूप से नेहरू उनमें सबसे ऊपर थे। मानवता के लिए कलंकित व्यक्तित्वों, शक्तियों और उनकी मानसिकता को भारत ने प्रारंभ से नकारा है, ललकारा है। यही बात नेहरू के लिए अपेक्षित थी।
” साम्यवादी शासन ने कितने लोगों की हत्या की ?” इस पर आर0 जे0 रुमेल नामक लेखक की मान्यता है कि ” साम्यवादियों ने संभवतः 110,000,000 लोगों की हत्या की है, या 1900 से 1987 तक सभी सरकारों, अर्ध-सरकारों और गुरिल्लाओं द्वारा मारे गए लोगों का लगभग दो-तिहाई। बेशक, दुनिया का कुल योग ही चौंकाने वाला है। यह इस सदी के सभी अंतरराष्ट्रीय और घरेलू युद्धों में मारे गए 38,000,000 युद्ध-मृतकों से कई गुना अधिक है। फिर भी अकेले सोवियत संघ द्वारा हत्याओं की संभावित संख्या – एक साम्यवादी देश – युद्ध की इस लागत को पार कर जाती है। और साम्यवादी चीन की हत्याएं लगभग इसके बराबर हैं।”
जब साम्यवादियों के द्वारा इतने व्यापक स्तर पर किए गए नरसंहारों पर दृष्टिपात करते हैं तो हृदय चीत्कार कर उठता है, परन्तु इधर हमारे नेहरू जी हैं, जो लिखते हैं कि ” इसमें मुझे शक नहीं रहा है कि ” सोवियत इंकलाब ” ने हमारे समाज को बल्लियां आगे बढ़ाया है और एक ऐसी चमकीली ज्योति पैदा की है, जिसे दबाकर बुझाया नहीं जा सकता और यह कि इसने एक नई तहजीब की, जिसकी तरफ दुनिया का तरक्की करना लाजमी है, बुनियाद डाली है। मैं इस तरह की व्यक्तिवादी और शख्सी आजादी में यकीन करने वाला आदमी हूं और बहुत ज्यादा बंदिशें पसंद नहीं कर सकता।”
ऐसा कहकर नेहरू जी ने लेनिन और उसके उत्तराधिकारियों को क्षमा पत्र प्रदान कर दिया। मानवता के लिए इतने बड़े आतंकवादियों को नेहरू जी की नरमदिली देख नहीं पाई ?
पृष्ठ 33 पर नेहरू जी लिखते हैं कि ” मार्क्स का समाज का साधारण विश्लेषण अद्भुत रूप से सही जान पड़ता है, लेनिनवाद के विकास में जो सूरतें उसने अख्तियार की वे वैसी नहीं हैं ,जैसा कि निकट भविष्य के लिए उसने अनुमान किया था। ….मैंने समाजवादी सिद्धांत की बुनियादी बातों को कबूल कर लिया।”
ऐसा कहकर नेहरू जी ने अपने आपको कम्युनिस्ट घोषित कर दिया। कम्युनिस्ट का अर्थ है देश, धर्म और संस्कृति के प्रति उदासीनता का भाव प्रकट करने वाला और अवसर मिले तो इनको मिटाने के लिए भी काम करने वाला। कम्युनिस्ट का अर्थ है – भारत विरोधी हो जाना। कम्युनिस्ट का अर्थ है – वेद और वैदिक धर्म का विनाश करने वाला।
धर्मनिरपेक्ष बनकर नेहरू ने , किया धर्म का नाश।
स्वरूप धर्म का समझ सके ना, किया देश निराश।।
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– डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं )
लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है