स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती का आर्य वैदिक साहित्य के प्रणयन एवं सम्पादन में प्रशंसनीय योगदान

– मनमोहन कुमार आर्य
हमने आर्यजगत के विख्यात संन्यासी स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी की वर्षों पूर्व मृत्यु होने पर एक लेख लिखा था। उनकी मृत्यु के बाद से किसी आर्य पत्र-पत्रिका में हमने उन पर कोई लेख नहीं देखा है। आज स्वामी जी की संन्यास दीक्षा की वर्षगांठ है। स्वामी जी ने 16 फरवरी 1975 को 50 वर्ष पूर्व ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे संन्यास लिया था। उन्होंने ब्रह्मचर्य एवं संन्यास इन दोनों आश्रमों का आदर्श रूप में पालन किया था। उनका सारा जीवन देश विदेश में वैदिक धर्म के प्रचार तथा वैदिक साहित्य के लेखन एवं सम्पादन में व्यतीत हुआ। आज उनके 50 वें संन्यास दीक्षा पर्व पर उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए हम उनका परिचय एवं वैदिक साहित्य में योगदान का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह परिचय डा. भवानीलाल भारतीय जी की पुस्तक ‘आर्य लेखक कोश’ से साभार लिया गया है।
स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी का जन्म 10 जनवरी, सन् 1931 को गुड़गांव जिले की नूह तहसील के एक गांव अलावलपुर में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला ग्यासीराम तथा माता जी का श्रीमती भगवती देवी था। सन् 1966 में आपने दिल्ली विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। 16 फरवरी 1975 को वसन्त पंचमी के दिन आपने अपने ब्रह्मचर्य आश्रम से सीधे संन्यास की दीक्षा ली। आपने विदेशों में धर्म प्रचार किया और सुरिनाम, गायना, ट्रिनिडाड, हालैण्ड, फिजी, श्रीलंका आदि देशों का भ्रमण किया।
स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी ने वेद एवं आर्यसमाज विषयक निम्न ग्रंथ लिखे हैंः
वेद विषयक ग्रन्थ:
1- चारों वेदों के शतक सन् 1961 में
2- चतुर्वेदसूक्ति संग्रह
3- प्रार्थनाप्रकाश सन् 1963 में
4- प्रार्थना लोक सन् 1957 में
5- वेद सौरभ सन् 1964 में
6- वैदिक उदात्त भावनाएं सन् 1963 में
7- प्रभात वन्दन एवं
8- ऋग्वेद का अक्ष सूक्त।
शास्त्रों के व्याख्या ग्रन्थः
1- ईशोपनिषद् 1966
2- षड्दर्शनम्
3- वाल्मीकि रामायण
4- महाभारत
5- शुक्रनीति 1983
6- चाणक्य-नीति दर्पण 1985
7- भर्तृहरिशतकम् एवं
8- विदुरनीति
ऋषि दयानन्द विषयक ग्रन्थः
1- स्वामी दयानन्द सरस्वती (जीवनी) 1971
2- दयानन्द सूक्ति और सुभाषित
3- दिव्य दयानन्द
4- सत्यार्थ सुधा भाग-2 1970
5- बाल सत्यार्थप्रकाश (संक्षिप्त) 2033 विक्रमी
आर्यसमाज विषयक साहित्यः
1- स्वर्ण सिद्धान्त (आर्यसमाज के दस नियमों की व्याख्या)
महापुरुषों के जीवन चरितः
1- अमर स्वामी श्रद्धानन्द 1967
2- मर्यादा पुरुषोत्तम राम 1964
3- भगवान श्रीकृष्ण 1960
4- जीवन यात्रा – पं. बुद्धदेव मीरपुरी 1965
5- स्वामी वेदानन्द 1981
खण्डन-मण्डन के ग्रन्थः
1- राधास्वामी मत दर्पण 1961
2- ब्रह्माकुमारी मत दर्पण 1961
3- विष्णुपुराण की आलोचना
कर्मकाण्ड विषयक ग्रन्थः
1- वैदिक विवाह पद्धति
अन्य ग्रन्थः
1- आदर्श परिवार 1973
2- वैदिकसंस्कृति के दो प्रतीक
3- अनमोल मोती
4- स्वर्ण पथ 1971
5- ब्रह्मचर्य गौरव
6- विद्यार्थियों की दिनचर्या
7- कुछ करो कुछ बनो
हमने स्वामी जगदीश्वरानन्द जी के अनेक स्थानों पर दर्शन किए और उनके प्रवचनों को सुना है। स्वामी जी को हमने निम्न स्थानों पर देखा और प्रवचनों को सुनाः
1- ऋषि दयानन्द जन्म भूमि स्मारक न्यास, टंकारा, गुजरात। स्वामी जी के साथ हमने टंकारा/राजकोट से दिल्ली तक की रेलयात्रा भी की थी।
2- पं. लेखराम बलिदान समारोह, कादियां-पंजाब वर्ष, 1997 ई.। यहां समारोह में एक दिन अत्यधिक वर्षा हुई थी और ओले भी पड़े थे। हमने स्वामी जी के साथ एक छोटे से टैण्ट में आश्रय लेकर ओलो से अपनी रक्षा की थी।
3- पं. लेखराम बलिदान शताब्दी, हिण्डोन सिटी वर्ष 1997
4- वेद मन्दिर – गीता आश्रम, ज्वालापुर-हरिद्वार। यहां हमने स्वामी जी की वार्षिकोत्सव पर रामायण की कथा भी सुनी थी।
5- मानव कल्याण केन्द्र, देहरादून। यहां स्वामी जी वार्षिकोत्सव में पधारे थे। स्वामी जी के श्रीमुख से यहां हमने उनका एक प्रवचन सुना था।
6- एक बार हम सामवेद भाष्यकार आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी से मिलने ज्वालापुर-हरिद्वार वेद मन्दिर गये थे। उस अवसर पर स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जो कि इस वेदमन्दिर के प्रधान थे, यहां पधारे हुए थे। इस अवसर पर स्वामी जी से विस्तार पर अनेक विषयों पर चर्चा हुई थी।
आर्यसमाज में स्वामी जगदीश्वरानन्द जी एक ऐसे विद्वान थे जिन्होंने समस्त 18 पुराणों का अध्ययन किया था। स्वामी जी ने अपने जीवन में दयानन्द संस्थान, दिल्ली द्वारा संचालित आश्रम में निवास किया। स्वामी जी दिल्ली से गोविन्दराम हासानन्द प्रकाशन संस्थान द्वारा प्रकाशित मासिक पत्रिका ‘वेद प्रकाश’ के सम्पादक थे। हम जून 1976 में इस पत्रिका के सदस्य बने थे। तब से हमें यह पत्रिका निरन्तर प्राप्त हो रही है। आर्यसमाज की सबसे कम मूल्य मात्र 30 रुपये वार्षिक में यह पत्रिका अपने पाठकों को आज भी प्राप्त हो रही है। स्वामी जी के अनेक ग्रन्थ ‘गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली’ से प्रकाशित हुए। स्वामी जी का अपना भी एक प्रकाशन था जो भगवती प्रकाशन के नाम से जाना जाता था। स्वामी जी की माताजी का नाम श्रीमती भगवती देवी था। उन्हीं के नाम पर स्वामी जी ने अपने प्रकाशन को भगवती प्रकाशन नाम दिया था। स्वामी जी ने अनेक छोटे बड़े ग्रन्थों का प्रकाशन भगवती प्रकाशन से कराया था।
पं. हरिशरण सिद्धान्तालंकार जी ने चारों वेदों का आर्यभाषा हिन्दी में भाष्य किया है। पं. हरिशरण जी इन चारों वेदभाष्यों की पाण्डुलिपि स्वामी जगदीश्वरानन्द जी को प्रकाशनार्थ दे गये थे। स्वामी जी वर्षों तक इसके प्रकाशन के लिए प्रयत्नशील रहे थे। बाद में उनका सम्पर्क हितकारी साहित्य प्रकाशन, हिण्डोनसिटी के संचालक कीर्तिशेष श्री प्रभाकरदेव आर्य जी से हुआ। उन्होंने लगभग 13 खण्डों में इस वेदभाष्य का प्रकाशन किया था। आज भी यह भाष्य भव्य साज सज्जा के साथ हिण्डोनसिटी से ‘श्री घूडमल प्रहलादकुमार आर्य धर्मार्थ न्यास’ से प्राप्तव्य है। यह भी बता दें कि स्वामी जी ने चतुर्वेद संहिता का दो खण्डों में सम्पादन कर सन् 1997 में विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, दिल्ली से प्रकाशित किया था। बाद में हमारी प्रार्थना पर इन दोनों खण्डों को एक जिल्द में भी इसके यशस्वी प्रकाशक श्री अजय आर्य जी ने प्रस्तुत किया था। स्वामी जगदीश्वरानन्द सरस्वती जी की 50 वीं संन्यास-दीक्षा पर्व के अवसर पर हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। स्वामी जी ने जो साहित्य साधना की, वैदिक वा आर्य ग्रन्थों का लेखन, सम्पादन व प्रकाशन किया है, उसके लिए उनको सदैव स्मरण किया जायेगा और वह सदा अमर रहेंगे। ओ३म् शम्।
