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कविता

श्रम करो – पुरुषार्थ करो

– डॉ॰ राकेश कुमार आर्य

संघर्ष करो – संघर्ष करो,
जीवन ज्योति प्रदीप्त करो।
संग्राम क्षेत्र यह जीवन है,
यहां अपने को उद्दीप्त करो ।।

रुक जाना नहीं जीवन होता,
जीवन चलते जाना है।
काम पथिक का चलते रहना,
रुकना ही मिट जाना है ।।

श्रम करो – पुरुषार्थ करो ,
यही सनातन कहता है।
विश्राम नहीं, थकने से पहले ,
ज्ञान पुरातन कहता है।।

प्रमादी बन जीवन जीना ,
पुरुषार्थी का काम नहीं ।
अलसी चादर ओढ़े रहना,
उद्यमी जन का काम नहीं।।

प्रमाद और आलस्य त्याग,
जिसने उद्यम अपनाया।
उसे जगत ने नायक माना,
आदर्श समझकर है गाया।।

अचानक कविता फूट पड़ी,
कवि ने लिख दी रामायण ।
राम का उत्तम चरित्र काव्यमय,
बतलाती हमको रामायण।।

थे वाल्मीकि जी ज्ञानी तपसी ,
और उत्कृष्ट धनी लेखनी के।
वे पथ – प्रदर्शक मानवता के,
श्लोक रचे उत्तम और नीके ।।

आदि कवि हम उनको कहते ,
था ऋषि तुल्य जीवन उनका।
दी अद्भुत रचना हम सबको ,
सारा संसार ऋणी है उनका।।

जब उनको कविता आती न थी,
तब हमने रची थी रामायण।
जब वह भटके थे झगड़ों में,
तब हम गाते थे रामायण ।।

हमने ही कविता दी वसुधा को,
गीत दिया – संगीत दिया ।
हमने ही भवपार उतरने का,
मंत्र जगत को मीत दिया।।

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