प्रयागराज महाकुंभ में अंतर्निहित है – समावेशी सांस्कृतिक दृष्टि

- गौतम चौधरी
विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक समागम, महाकुंभ मेला, आध्यात्मिकता, आस्था और सांस्कृतिक विरासत का शानदार उत्सव है। यह आयोजन, जो पवित्र गंगा यमुना और पौराणिक सरस्वती के मिलन स्थल, प्रयागराज के संगम पर प्रत्येक बारह वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और संगठनात्मक कौशल के प्रति श्रद्धांजलि है। इस पवित्र अवसर को सांप्रदायिक रंग देकर इसका राजनीतिकरण करने का प्रयास करना भ्रामक और हानिकारक है।
महाकुंभ मूलतः आस्था से जुड़ा है। कुंभ मेला, जो चार अलग-अलग स्थानों – प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक – में अमृत की बूंदों के आकस्मिक छलकने की किंवदंती पर आधारित है, हिंदुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि मेले के दौरान पवित्र नदियों में स्नान करने से मानव के संचित पाप धुल जाते हैं और श्रद्धालु जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं।
अपने आध्यात्मिक महत्व के अलावा, यह मेला एक सांस्कृतिक समागम भी है, जो दुनिया के सामने भारतीय परंपराओं, कला, वाणिज्य और शिक्षा का प्रदर्शन करता है। यूनेस्को के तहत अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए अंतर-सरकारी समिति ने 2017 में दक्षिण कोरिया के जेजू में आयोजित अपने 12वें सत्र के दौरान मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में ‘कुंभ मेला’् को शामिल किया है। ऐसा कहा जाता है कि यह हिन्दू धार्मिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण परिष्करण स्थल भी बनता रहा है। महाकुंभ एक सामाजिक अनुष्ठान और उत्सव है, जो भारत की अपनी इतिहास और स्मृति की धारणा से निकटता से जुड़ा हुआ है।
दुनिया इसे एक चमत्कार के रूप में देखती है जिसमें एक विशेष स्थान पर लाखों लोगों का वर्ग-विहीन और जाति-विहीन सामाजिक जमावड़ा बिना किसी भौतिक सूचना के प्रदर्शित होता है। इस बार के प्रयागराज कुंभ में कई प्रकार के विवाद भी देखने को मिले। उन विवादों में से एक महत्वपूर्ण विवाद में आरोप लगाया गया कि मुसलमानों को प्रवेश से रोका गया है। महाकुंभ में प्रवेश करने के बारे में जो भी दावे किए जा रहे हैं, वे निराधार हैं और उन लोगों द्वारा प्रेरित हैं जो तुच्छ लाभ के लिए साम्प्रदायिक विभाजन को महत्व देने पर तुले हैं। मेले में आने या भाग लेने वाले समुदायों पर कोई प्रतिबंध नहीं है। महाकुंभ लाखों लोगों को आस्था और भक्ति के साझा अनुभव में एक साथ लाकर धर्म से परे चला जाता है। इस घटना को राजनीतिक या सांप्रदायिक बनाने के प्रयास न केवल निराधार हैं, बल्कि भारत की समावेशी भावना का अपमान भी हैं।
कुंभ के बारे में यदि कहा जाए तो यह अन्य किसी धर्म के खिलाफ बिल्कुल नहीं है। इसमें हिन्दुओं के सभी संप्रदाय के संत तथा श्रद्धालु हिस्सा लेते हैं हालांकि इस महा धार्मिक मेला में वे तमाम लोग आ सकते हैं जो भारत के पारंपरिक सांस्कृतिक मान्यताओं में अपनी आस्था रखते हैं। इसके अलावा, इसकी तुलना कुछ लोग हज यात्रा से भी करने लगे हैं। मसलन, हज, मुसलमानों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन है, जो केवल मुसलमानों के लिए ही होता है। इस धार्मिक विशिष्टता का विश्व भर में सम्मान किया जाता है। यहां तक कि मुसलमानों के कई ऐसे पंथ हैं, जिन्हें भी मक्का के पवित्र स्थल पर इन दिनों जाना मुमकिन नहीं है। इस्लाम के एक आलिम मौलवी यूट्यूब पर बता रहे थे कि हज बिना कलमा पढ़े संभव नहीं है। यानी इसका साफ संदेश है कि मक्का वही जा सकता है जो इस्लाम के धार्मिक चिंतन में अपनी आस्था रखता है।
यदि महाकुंभ की बात करें तो इसमें ऐसी कोई बात नहीं है। सनातन हिन्दू मान्यता के अनुसार महाकुंभ में किसी को भी शामिल होने का अधिकार है क्योंकि हिन्दू चिंतन यह मानता है कि जो जीव इस पृथ्वी पर जन्म लिया है उनको मोक्ष का अधिकार प्राप्त है। वह सभी मोक्ष को प्राप्त होगा। सभी को अपने पापों से मुक्ति का अधिकार है। इसमें ऐसा बिल्कुल नहीं है कि जो हिन्दू नहीं है वह कभी मोक्ष प्राप्त नहीं करेगा। हिन्दू चिंतन में कहा गया है कि किसी भी आस्था और मान्यता वाले व्यक्ति को मोक्ष का अधिकार है। इसलिए महाकुंभ में हर कोई जा सकता है। इसमें हिंदू और मुसलमानों का कोई बंधन नहीं है। कुंभ में हर किसी का स्वागत है। इस चिंतन को मान कर कई अन्य धर्म के लोगों ने भी प्रयागराज के इस वर्तमान कुंभ में स्नान किया है। अन्य हिंदुओं की तरह ही इस आयोजन में मुसलमान व ईसाई सबका स्वागत है। इस समावेशिता का सम्मान कुछ आवश्यक परंपराओं का पालन करके किया जाना चाहिए। छिटपुट घटनाओं को बहुमत का दृष्टिकोण बताना भारत और खासकर हिन्दुओं के समावेशी चरित्र का अपमान है।
इस मामले में थोड़ी सतर्कता तो जरूरी है ही। महाकुंभ में 40 करोड़ से अधिक लोगों के आने की उम्मीद जताई जा रही है। इसका मतलब यह हुआ कि कम से कम भारत की जनसंख्या का एक चौथाई हिस्सा इस बार के कुंभ में डुबकी लगाने वाला है। इससे इसका प्रबंधन एक बहुत बड़ा कार्य बन जाता है। सावधानीपूर्वक तैयारी, असाधारण कार्य और अनेक सरकारों के बीच समन्वय, विभिन्न प्रकार की एजेंसिया का समन्वयं, स्थानीय प्राधिकरण का प्रबंधन और इतने बड़े आयोजन के सुचारू संचालन के लिए स्वयंसेवकों की आवश्यकता है। सरकार ने सार्वजनिक सुविधाओं के साथ टेंट सिटी स्थापित करने से लेकर सुरक्षा बनाए रखने और रसद प्रबंधन तक हर मामले में उल्लेखनीय संगठनात्मक कौशल का परिचय दिया है। इस परिप्रेक्ष्य में देखें तो हज यात्रा का आयोजन, जिसमें लगभग 40 लाख मुसलमान शामिल होते हैं, एक कठिन कार्य है। कल्पना कीजिए कि महाकुंभ में आपको सौ गुना बड़ी भीड़ का प्रबंधन करना पड़े, तो कितने इंतजाम करने होंगे? इस आयोजन का सुचारू संचालन और अपेक्षित समापन, विश्व मंच पर भारत की संभावित नेतृत्वकारी स्थिति को उजागर करता है, जो न केवल हिंदुओं के लिए, बल्कि सभी भारतीयों के लिए गर्व का विषय है।
महाकुंभ समुदाय, संस्कृति और धर्म का सम्मान करने वाला त्योहार है। यह विभाजनकारी चर्चा या राजनीतिक एजेंडे को साधने का मंच नहीं है। भारतीय नागरिक होने के नाते हमें इस आयोजन के त्रुटिहीन क्रियान्वयन पर गर्व होना चाहिए, जो भारत की प्रशासनिक और सांस्कृतिक क्षमता को दर्शाता है। बेबुनियाद अफवाहों और ध्रुवीकरण के आगे झुकने के बजाय नकारात्मक प्रचार-प्रसार से हटकर, आइए हम महाकुंभ के वास्तविक अर्थ पर ध्यान केंद्रित करें, जो आध्यात्मिकता और पारस्परिक संबंधों का उत्सव है।
यह एकजुटता, आत्मनिरीक्षण और हमारे साझे इतिहास पर गर्व का अवसर है। आइए हम यह सुनिश्चित करें कि इस आयोजन की पवित्रता बरकरार रहे और यह दुनिया भर के लोगों में आश्चर्य और विस्मय पैदा करता रहे, भारत ने एक बार फिर दिखा दिया है कि उसके पास इतनी बड़ी सभा को संभालने के लिए संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व का गुण हैं। एक सुसंगत राष्ट्र के रूप में, आइए हम इस अद्भुत उपलब्धि का जश्न मनाएं तथा एक-दूसरे के प्रति शांति और सम्मान की भावना को कायम रखें, जो हमारे बहुसांस्कृतिक देश की केवल विरासत ही नहीं विशेषता भी है।

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