जब नभ में सूरज चढ़ता हो,
मौन रह , करते सब वंदन।
भूमंडल की सभी शक्तियां,
शीश झुकाए करें अभिनंदन।।
उत्थान काल में बढ़ती गर्मी,
विस्तार दिलाती है तुमको।
जैसे नभ में चढ़ा सूर्य,
हर लेता है सारे तम को।।
उत्थान काल में बढ़ते रहना,
विनम्र और सहज बनकर।
सत्व – भाव में जीते रहना,
प्रभु के भक्त बने रहकर।।
उत्थान ही लिखा करता है,
मानव का उत्कर्ष सदा।
उत्थान ही लिखा करता है,
मानव का अपकर्ष सदा।।
समभाव में जीते रहना ही,
मानव के लिए हितकर होता।
उदय काल और अस्तकाल में,
जैसे दिव्य दिवाकर होता।।
– राकेश कुमार आर्य

लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है