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कविता पर्व – त्यौहार

वसंत हृदय में धार ले, कहती है नव भोर

मधुमय यह वसंत है शुभ हो मंगल मूल।
उल्लसित हैं सब दिशा खिल रहे प्यारे फूल।।

सरसों फूली खेत में, बिखर गया है रंग।
प्रकृति बतला रही, जीने का नया ढंग।।

सरस रस हृदय पीओ, करो सदा आनंद।
ओ३म नाम सिमरा करो कट जाएंगे फंद।।

घृणा की ठिठुरन गई, प्रेम है भावविभोर।
वसंत हृदय में धार ले, कहती है नव भोर।।

कड़वाहट से जीभ को, क्यों देता है कष्ट।
मधुमय जिव्हा को बना, संकट होंगे नष्ट।।

प्रेमपूर्ण शुभकामना वसंत बनो तुम स्वयं।
जीवन प्रेरक धारिए, अपने धारक स्वयं।।

तप:पूत हो राष्ट्र के , भारत मां के लाल।
विश्व गुरु भारत बने, जिओ अनंता काल।।

डॉ राकेश कुमार आर्य

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